Samadhan Episode – 00086 Youth & Relationship Problems
CONTENTS :
1. कम्पेरिजन (Comparison) करने की आदत
2. माँ-बाप की दुआएँ लेना
3. सास-बहु, पति-पत्नी के संबध
रुपेश जी —— नमस्कार! आदाब! सत श्री अकाल!
मित्रो स्वागत है आप सभी का समाधान कार्यक्रम में !
मित्रो एक बार मैं बोम्बे (Bombay) के रेल्वे स्टेशन (Railway Station) पे खड़ा
हुआ था! मेरी ट्रेन (Train) थोड़ी लेट थी! मैंने एक भिक्षुक को देखा, जो भिक्षा मांग
रहा था! था तो वो भिक्षुक – एक हाथ भी नहीं था! एक पैर भी नहीं था! लेकिन उसके
चेहरे पे एक सुंदर मुस्कान थी! मुझसे रहा नहीं गया, मैं उसके पास गया और पूछा
कि तुम्हारा एक हाथ भी नहीं है, पैर भी नहीं है और तुम भिक्षा भी मांग रहे हो, फिर
भी इतने प्रसन्न क्यों हो? क्योंकि मैं देख रहा था कि जो लोग उसे कुछ दे रहे थे, उन्हें
भी वो दुआ दे रहा था और जो नहीं दे रहे थे उन्हें भी दुआ दे रहा था! मेरे इस प्रश्न को
सुन कर वो मुस्कुराया और उसने कहा कि मैं ये नहीं देखता कि भगवान ने मुझे क्या
नहीं दिया है, मैं ये देखता हूँ की भगवान ने मुझे क्या दिया है! उसकी इस बात ने मुझे
बहुत कुछ सिखा दिया! और हम सब के लिए भी बहुत कुछ सीखने के लिए है! वास्तव
मैं हम अप्राप्त के पीछे भागते भागते प्राप्त का सुख खो देते हैं! हमें ऐसी चीजों से अवश्य
बहुत कुछ सीखना चाहिए! इसी सुंदर घटना से आज के इस एपिसोड (Episode) की
शुरुआत करते हैं, आईये स्वागत करते हैं आदरणीय सूर्या भाईजी का! भ्राता जी आपका
बहुत बहुत स्वागत है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— शुक्रिया
रुपेश जी —— भ्राता जी! कई बार जीवन में ऐसी प्रेरक प्रसंग ऐसी घटनाएँ देखने
को मिलती है! जिनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, और उस एक लाईन (Line) में उस
भिक्षुक ने बहुत कुछ सिखा दिया, वास्तव में अप्राप्त के पीछे भागते भागते, शायद हमें जो
प्राप्त है उसका सुख हम खो देते हैं!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बिल्कुल, भगवान ने हरेक को बहुत कुछ दिया है लेकिन मनुष्य
की इच्छायें, कम्पेरिज़न (Comparison) करने की नेचर उसे सुखी नहीं रहने देती! उसे ये
आभास ही होने नहीं देती कि भगवान ने उसे बहुत कुछ दिया है! वास्तव में देखो आम रूप
से भी लोग ये कहा करते थे, हम सुनते थे बचपन से कि भगवान ने जिसे इस धरा पर भेजा है,
उसके भोजन का इंतजाम भी पहले ही कर दिया है! क्योंकि आखिर वो मेनेजर (Manager)
है ना! सुप्रीम मेनेजर (Supreme Manager)! अब उसका कोई बच्चा, उसका कोई कार्यकर्ता
भूखा रहे तो उसे कैसे लगेगा? लेकिन मनुष्य अपनी कमजोरियों के कारण, अपनी ज्यादा
इच्छाओं के कारण, लालसाओं के कारण और यह कम्पेरिज़न (Comparison) की आदत!
यह मनुष्य को सुखी नहीं रहने देती! लेकिन यदि अपने में मनुष्य संतुष्ट हो जाये, आत्म संतुष्टि
जिसे कहते हैं! तो उसके पास आता भी बहुत कुछ रहेगा और उसका जीवन बहुत सुखी हो जायेगा!
रुपेश जी —— बिल्कुल, बिल्कुल! अन्यथा तुलना करते करते व्यक्ति जो चीजे होती
है उसके पास, उस चीज का भी आनंद नहीं ले पाता! वो बचपन में भी भाईसाब हम वो कहानी
सुना करते थे कि किसीको कहा एक राजा ने कि सुबह से लेके रात तक तुम जितनी चाहो दौड़
कर जमीन तय कर लो, वह सब तुम्हारी हो जाएगी! और अंत तक वो दौड़ता रहा, सूर्यास्त तक!
और आखिर उसे तीन गज जमीन में ही दफ़न करना पड़ा! तो वैसे ही मनुष्य भागता रहता है!
इस भागदौड़ में शायद कहीं न कहीं अपने सुख को खो देता है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बिल्कुल, एक बहुत अच्छी चीज एक जगह लिखी हुई है की – एक
व्यक्ति यह देख कर परेशान था कि उसके जूते बहुत अच्छे मेरे जूते बिल्कुल कमजोर हैं,
ढीले–ढाले सस्ते हैं ! दुःखी, दुःखी, दु:खी! बस उसे उसके जूते दिखाई दे, अपना कुछ दिखाई
न दे! फिर उसने अचानक देखा एक व्यक्ति को एक टांग नहीं है, वह लंगड़ा है! तब उसे तुरंत
आभास हुआ “अरे! मुझे दोनों टाँगे हैं! जूते सस्ते है तो क्या हुआ!” तब उसकी ख़ुशी लौट आई!
कि देखो भगवान ने मुझे दो टाँगे दी, हाथ दिए, बुद्धि दी; आँख, नाक, कान, मुख दिए – तो ये
क्या कम सम्पति है? हम इसको एन्जॉय (Enjoy) करे, मेहनत करे! और थोडा अपना
स्प्रिचुअली (Spiritually) उत्थान करे! तो ऐसी कोई चीज नहीं, ऐसा कोई कारण नहीं कि हम
जीवन को एन्जॉय (Enjoy) न कर पाए!
रुपेश जी —— बिल्कुल, भ्राताजी हमारे पास जो फोन कोल्स (Phone Calls) आए थे,
अब मैं आपको उनकी ओर ले चलता हूँ! एक प्रथम जो फोन कोल (Phone Call) था, ये
बेंगलोर से था हमारे पास! और ये कहती हैं कि हमारा एक ही लड़का है! और हमने उसे
बी.टेक (B.Tech) कराया, अच्छी आई.टी कंपनी (IT Company) में वो नौकरी कर रहा है!
हमने उसकी शादी भी बहुत धूमधाम से कराई! लेकिन जो बहु हमारे घर आई, उसने हमारे
लडके को जैसे हमसे बिल्कुल दूर कर दिया! अब वो इन्सल्ट (Insult) भी करती है! और
एक बच्ची पैदा हुई है उसे देखने भी नहीं देती! और घर मैं भी नहीं आने देती! ऐसे सिचुएशन
(Situation) में हमें क्या करना चाहिए?
बी के भ्राता सूर्या जी —— ऐसे कई समाचार मिलते रहते हैं, मुझे भी फ़ोन कोल्स (Phone Calls)
आते रहते हैं! कि आजकल की जो बहुत हाई फाई (Hi-Fi) लड़कियाँ हैं, एक तो वो हाईली
एज्युकेटेड (Educated) है, नेचर (Nature) से बहुत हाई फाई (Hi-Fi) है! तो ये ऐसे काम उनके
द्वारा हो रहे हैं! देखिये मेरे पास जब ऐसे केसीस (Cases) आते हैं तो मैं सोचता हूँ कि “हाईली
एज्युकेटेड (Highly Educated)” –कितना सुंदर शब्द है! किसी का परिचय दिया जाता है,
भाई ये बहुत अच्छा पढा लिखा व्यक्ति है! तो मनुष्य उसे दूसरी नजर से देखते हैं कि ये वेल
मैनर्ड (Well Mannered) भी होगा! इसके आचरण भी बहुत सुंदर होंगे! इसके विचार भी
बहुत सुंदर होंगे! इसकी पर्सनालिटी, इसका चरित्र भी बहुत सुंदर होगा! लेकिन हमारी आज
की शिक्षा का ये दोष है की वो डिग्रियां तो दे रही हैं, वो इन्फोर्मेशन तो दे रही है! लेकिन मनुष्य
का निर्माण नहीं कर रही!
रुपेश जी —— जिसको हम दूसरे शब्दों में कहते हैं भ्राता जी कि शिक्षित तो कर रहे हैं,
लेकिन दीक्षित नहीं कर रहे हैं!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बिल्कुल दीक्षित नहीं कर रहे है, उन्हें यह सिखाया नहीं जा रहा है
कि तुम्हें जीवन कैसे जीना है! तुम्हें अपने बड़ों का सम्मान कैसे करना है! छोटों को प्यार कैसे
देना है! अब उसको बच्ची हुई है, देखीये कल यही बच्ची ऐसा ही व्यवहार इनसे करे, इसकी
शादी हो जाए और ये बिल्कुल माँ–बाप को आने न दे अपने घर में! और तुम मेरे शत्रु हो! दुश्मनी
पर उतर आये! इन्हें कैसा लगेगा? तो जो एज्युकेटेड (Educated) लड़कियाँ आजकल शादी हो
रही है जिनकी, उन्हें थोडा बुद्धिमान समझदार होना चाहिए! क्योंकि ये सिद्धांत इस सृष्टि का,
युनिवर्सल (Universal) सिद्धांत – किसी को नहीं भूलना चाहिए की जो व्यवहार हम दूसरों से कर
रहे हैं वही व्यवहार हमसे भी किया जायेगा! तब कैसा रहेगा? तो इस माँ को कैसा लगता होगा,
इस बाप को जिसका एक बच्चा, उन्होंने मेहनत करके उसे पढाया और अब वो बडे सिटी (City)
में रह रहा है – बेंगलोर में रह रहा है! ये थोड़े दूर रहते होंगे! अभी वो उनसे मिलने आते हैं, वो
उसको मिलने भी नहीं देती! इसको ये भूल गया कि यह बहुत बड़ा श्राप ले रही है! बड़ों की
दुआएँ अगर छोटों के साथ न हो तो उनकी जीवन यात्रा जटिल हो जाती है!
मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है – बिल्कुल सत्य घटना है दिल्ली की! हमारे पास एक युवक आता
है उसके बड़े भाई का केस है! उसकी भी ऐसी ही शादी कराई! लड़की वैसी ही हाई–फाई (Hi-Fi)
आई! और लडके को वही ले गई जहाँ उसकी नौकरी थी! और ग्यारह साल तक लड़के से माँ–बाप
का कोन्टेक्ट (Contact) नहीं होने दिया, फ़ोन (Phone) भी नहीं कर सकता था! इतनी मतलब
जालिम वो लड़की थी! फ़ोन (Phone) भी नहीं करने देती, और आने की तो बात ही नहीं रही!
बिचारी माँ दिल पे हाथ रखके, थाम के बैठ गई! एक लड़का घर में था वो हमारे यहाँ आता है, वो
बहुत अच्छा है! उसके सहारे माँ की ममता तो कहीं न कहीं युज (Use) होनी चाहिए ना! ग्यारह
साल हो गये, बारहवाँ साल आ गया! इसको संतान उत्त्पन्न नहीं हुई – ये परेशान परेशान! एक
ज्योतिषी के पास गई! ज्योतिषी ने सब कुछ देखा और ज्योतिषी ने तुरंत बताया कि तुमने किसी
बच्चे को उसकी माँ से अलग किया है ना? वो सोचने लगी कि हाँ किया तो है! कि अपने पति को
ही किया है ना! (किया है!) कहा उसकी सजा इस कर्मो के अनुसार यही है कि तुम नि:संतान
रहोगी! अब उसको अकल आ गई! कि पाप कर्म का फल उसे अभी ही मिल गया! बहुतों को
पाप कर्म का फल थोडा आगे मिलता है अगले जन्म में मिलता है या इस जन्म में भी थोडा
बीस–पच्चीस साल बाद मिलता है! लेकिन उसको अपने पाप कर्मों का फल अभी मिल गया!
वो नि:संतान! माँ कोई नि:संतान हो तो उसका जीवन तो बहुत दु:खी होता जब वो दूसरों के
बच्चों को देखती है – खेलते कूदते देखती है आंगन में, तो बहुत बुरा हाल होता है माताओं का!
तो मैं अपनी सभी छोटी बहनों को कहूँगा – बुद्धिमान बने! आप एज्युकेटेड (Educated) हैं!
समझदार बने! अपने सास ससुर की, अपने मात–पिता की भावनाओं को भी समझे, उनका
भी थोडा सन्मान करें! पहली बात तो मैं इन युवको को ये कहना चाहता हूँ कि आप एज्युकेटेड
(Educated) हो गये आपके पास पैसा आ गया है, अब माँ सास–ससुर को पैसा भी नहीं दे– वो
पैसा नहीं देने देती होगी, बिल्कुल देखने नहीं देती होगी! वैसे तो ये लडके की कमजोरी है
वो कायर है!
एक ऐसा ही दूसरा केस हुआ- बिल्कुल यही केस था! लड़की ने लड़के को कहा – पति को
माँ–बाप से कोई कनेक्शन (Connection) नहीं रखना है! उसने कहा माँ–बाप से कनेक्शन
(Connection) नहीं रखना!- उन्होंने मुझे जनम दिया! उन्होंने मुझे पढाया! उन्होंने मुझे सब
कुछ दिया है! कनेक्शन (Connection) कैसे नहीं रखूँ? मेरा पहला कनेक्शन (Connection)
उससे, दूसरा आपसे! रहना हो रहो, नहीं तो अपने घर जाओ! लड़की का दिमाग ठंडा हो
गया जरा! ऐसे लोग चाहिए! तो ये लड़का जरूर कायर है बहुत, अपनी पत्नी का गुलाम है!
मैं इसे भी कहूँगा ये कायरता छोड़े! उसका जो अपना कर्तव्य है अपने माँ–बाप के लिए उसे
भूलना नहीं चाहिए! आखिर माँ–बाप ने उसे प्यार दिया है, पालना की है, जनम दिया है!
पढाया है! माँ–बाप की भी कुछ एक्सपेक्टेशन (Expectation) होती है! चलो माँ–बाप को पैसा
नहीं चाहिए, तुम पैसा न दो लेकिन सम्बन्ध तोड़ना – ये बहुत बुरी चीज है!
रुपेश जी —— मुझे लगता है केवल उन्हें प्यार–सन्मान ही चाहिए होता है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बस!
रुपेश जी —— उससे ज्यादा कुछ नहीं! वो अपने बच्चों को अपने सामने देखना चाहते
हैं, इससे ज्यादा तो वो कुछ चाहते ही नहीं!
बी के भ्राता सूर्या जी —— कुछ भी नहीं चाहते! न दो तुम कुछ उसे! वैसे तो देना भी चाहिए! ये
बच्चों का कर्तव्य है! क्योंकि बच्चों पर माँ–बाप का कर्ज होता है! उसे चुक्तू नहीं करेंगे तो चुक्तू
करना पड़ेगा! उनकी दुआएँ भी नहीं मिलेगी!
मुझे एक ओर केस याद आ रहा है! किसी युवक ने बी.टेक (B.Tech) किया, उसे नौकरी
नहीं मिल रही थी! दो साल हो गये! किसी के पास गया वो, पूछा कि मुझे नौकरी नहीं मिल रही –
कोई विधि? उसने सब कुछ देखा और कहा– तुम्हारे साथ तुम्हारे माँ–बाप की ब्लेसिंग्स (Blessings)
नहीं है! मुझसे पूछा, मैंने कहा– भई क्यों नहीं है? तो टालमटोल के बाद उसने बताया– मैं गुस्सा
करता हूँ मेरे माँ–बाप पर! मेरे माँ–बाप थोड़े मुझसे तंग है! तो कैसे ब्लेसिंग (Blessing) मिलेगी?
ठीक है– बच्चा है, गुस्सा करता है! माँ–बाप सहन कर लेते हैं! लेकिन प्यार और दुआएँ तो ख़तम
हो जाएगी ना! कहा इसलिए तुम्हें नौकरी नहीं मिल रही है! अगर तुम्हें नौकरी चाहिए माँ–बाप
की दुआएँ प्राप्त करो! तो देखिए सूक्ष्म सायकोलोजी (Psychology)!
रुपेश जी —— एक गीत भी पुरानी है भ्राता जी की, “ले लो, ले लो दुआएँ माँ–बाप की” –
ये किसी ने ऐसे ही नहीं लिखा है! बहुत आवश्यक है– कि दुआएँ हमारे जीवन के लिए बहुत
आवश्यक है आगे बढ़ने के लिए!
बी के भ्राता सूर्या जी —— तो अभी इनका कर्तव्य तो इन्हें करना चाहिए बच्चों को! लेकिन
मैं इन दोनों माँ–बाप को कहूँगा जिन्होंने प्रश्न किया है कि आप अपनी मनोस्थिति को न बिगाड़े!
ठीक है, आप अपने प्यार को, अपनी ममता को परमात्मा की ओर ट्रांसफर (Transfer) करें!
प्यार भगवान से करें! तो भगवान जो है वो इस सृष्टि का बीज है! जो भगवान को प्यार करता है
उनका प्यार सारे संसार को पहुँच जाता है! और आपका प्यार निश्चित रूप से आपके बच्चे और
आपकी बहु को भी मिलेगा! आपको उसे रियलाईज (Realize) कराना– लड़की को कि वो गलत है!
देखिए यहाँ पहली जो आवश्यकता है जो प्राथमिकता जिसे हम देंगे कि इस एजुकेटेड (Educated)
लड़की को ये रियलाईज (Realize)हो कि वो गलत है! उसे ऐसा नहीं करना चाहिए! कहीं उसके
भाइयों के साथ ऐसा हो तो उसे कैसा लगेगा! उसके साथ कोई ऐसा करे तो उसे कैसा लगेगा! तो
ये मात–पिता को चाहिए कि रोज उस लड़की को गुड वायब्रेशन्स (Vibrations) दें! ब्लेसिंग्स
(Blessings) दें! दुआएँ दें! इसको सद्बुद्धि प्राप्त हो! ये भी महान आत्मा बनें! इसका भी कल्याण
हो! इसके चित्त में भी बड़ो के लिये प्रेम और सम्मान की भावना पैदा हो! रोज एक टाइम (Time)
फिक्स (Fix) करके! दो–तीन मिनट (Minute) इस लड़की को गुड वायब्रेशन्स (Good Vibration)
दें! और ऐसी दुआएं दें! –एक बात!
दूसरी बात– ये बिल्कुल निश्चित है कर्म गति के अनुसार कि इस सास–ससुर ने इस लड़की से
पूर्व जन्मों में गलत व्यवहार अवश्य किया है!
रुपेश जी —— क्योंकि हर जगह भ्राता जी ऐसा तो नहीं होता! कई जो बहुएँ होती हैं–
बिल्कुल लक्ष्मी की तरह होती हैं! सुशील होती हैं! सुंदर होती हैं! और माता–पिता की तरह ही
ट्रीट (Treat) करती है सास–ससुर से!
बी के भ्राता सूर्या जी —— नहीं, हम भी जानते हैं कई ऐसी नारीयाँ हैं, अभी मेरीज (Marriage)
हुई और बहुत महान है! उनके घर में आते ही घर में आनंद छा जाता है! ख़ुशी ही ख़ुशी चारों
ओर दिखाई देती है!
रुपेश जी —— बहुत सारे विघ्न नष्ट हो जाते है! बिजनेस (Business) में सफलता मिलती है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— विघ्न नष्ट हो जाते हैं! बिल्कुल, ऐसी बहुत महान आत्मायें घरों में
आती है! अभी अभी का केस है– किसी की शादी हुई! उसके आते ही सबकुछ बदलने लगा –
वो लडके को अच्छी नौकरी मिल गई! पहला लक्षण ये दिखाई दिया! तो सब कहने लगे भई
बहु बहुत सुलक्षणी आई है! आते ही एकदम ख़ुशी के समाचार मिलने लगे हैं! तो इन माँ–बाप
को क्या करना चाहिए कि एक टाइम (Time) फिक्स (Fix) करे सवेरे पांच बजे! और इस
आत्मा से इन्हें क्षमा याचना करनी है! मन ही मन! इसका इफ़ेक्ट (Effect) बहुत सुंदर होगा!
क्योंकि पूर्व जन्मों का जो बदले की भावना है इसके मन में! इन बड़ों ने इस छोटी आत्मा को
बहुत सताया था! तो इसके अंदर बदले की भावना है! क्योंकि बिना कारण के यहाँ कुछ हो
नहीं रहा है! चाहे कारण वर्तमान हो! अभी इनमें वर्तमान कारण तो कुछ था नहीं! कारण पूर्व
के हैं! तो इन्हें ये जो नेगेटिव वायब्रेशन्स (Negative Vibrations) उसके अंदर भरे हुए हैं!
क्रोध जो इसके अंदर, बदले की भावना जो उस आत्मा के सबकोंसियस माइंड (Subconscious Mind)
में भरी हुई है – उसे समाप्त करना होगा! तो रोज सवेरे एक टाइम (Time) फिक्स (Fix)
करके जैसे मैंने कहा– ये उसे दुआएँ देंगे! और उससे क्षमा याचना करेंगे! हमने कभी भी,
हजारों साल में भी कभी आपको कष्ट दिया हो, कडुवे वचन बोले हो, आपको हर्ट (Hurt)
किया हो! हम सच्चे मन से आपसे क्षमा याचना करते हैं! कमसे कम ७ दिन अवश्य करें!
२१ दिन करें तो ओर अच्छा! तो निश्चित रूप से उसके अंदर जो ये बदले की भावना है,
यानि उसका मुँह भी नहीं देखना चाहती! तो ये समाप्त हो जायेगी! और संबंधो में तेजी से
मिठास आ जायेगा! और ये बहुत अच्छी बात होगी – दो परिवार जुड़ जायेंगे! दो एक था,
दो हो गये! दो फिर एक हो जायेंगे!
रुपेश जी —— इससे अच्छी खुश–खबरी ओर कुछ होगी नहीं उस परिवार के लिए!
लेकिन भ्राता जी एक प्रश्न है! कई बार ये कहा जाता है कि ताली हंमेशा दो हाथों से बजती है!
तो कई बार हम केवल एक ही पक्ष को देखते हैं कि शायद यहाँ कमी है! क्या ये भी संभव
नहीं है की दूसरे पक्ष में भी कोई ऐसी बात हो जिसके कारण ये जो दूरी है वो बढ़ रही है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बिल्कुल! उसको भी हमें जरूर काउंट (Count) करना पड़ेगा!
नोटिस (Notice) में लेना पड़ेगा! और देखिए इस संसार में संबंधो में मधुरता तभी आ सकती
है – जब हर व्यक्ति अपनी गलती को रियलाईज (Realize) करें– स्वीकार करें! हम कैसे
बोलते हैं, उसको पहचाने! ऐसा तो नहीं हम घर के बड़े हैं, हम घर के मालिक हैं! कई बार
ऐसा होता है, नई बहु घर में आई और सास क्योंकि मालिक है! या सास की लड़की क्योंकि
घर की मालिक है तो बहु उससे दुर्व्यवहार करने लगती है!
रुपेश जी —— और वो ये सोचती है कि भई इससे अच्छा है कि हम थोडा सा अलग
हो करके रहें!
बी के भ्राता सूर्या जी —— ऐसे भी बहुत सारे केसीस (Cases) आते हैं कि वो अलग हो जाते
हैं थोड़े! क्योंकि इनका व्यवहार मधुर नहीं होता! इसलिये बड़ो को भी अपने व्यवहार को वैसा
ही करना चाहिए, बहु भी जैसे उसके बेटी के समान है! और एक चीज मैं ओर कहूँगा कि ये
जरुरी नहीं कि एक लड़की जो आपके घर में आई है वो सबकुछ सिखकर आई हो! हो सकता
है उसे रोटी बनानी न आती हो! वो उसने हॉस्टेल (Hostel) में खाई हो! बनी बनाई खाई हो! वो
रोटी जला देती हो!
रुपेश जी —— और आजकल तो भ्राता जी जो लड़कियाँ है पढ़ने के लिए भी बाहर
हॉस्टेल (Hostel) में रहती है, तो घर में शायद ये पूरी ट्रेनिगं (Training) नहीं भी ले पाती हो!
बी के भ्राता सूर्या जी —— तो इसलिए उन्हें माँ का काम है– सास का काम है कि वो अपनी
बहु को सबकुछ प्यार से सिखाये! अगर ये मेंटालिटी (Mentality) हर सास की हो जाए तो
ऐसी कोई बात नहीं कि सास और बहु के संबंध अच्छे न हो! दोनों में प्यार न हो, अपनापन
न हो! एक दुसरे को बिल्कुल सुख दु:ख में सहयोग न करें! बिल्कुल सबकुछ अच्छा हो जायेगा!
रुपेश जी —— बिल्कुल भ्राता जी मैंने इसीलिए ये पूछा क्योंकि जो अगला हमारे पास
फोन कोल था वो ठीक इसके रिवर्स (Reverse) था! ये हमारे पास भेजा है रिचाजी ने! डॉक्टर
(Doctor) रिचा है ये! कहती है कि मैं 33 साल की हूँ! पति भी मेरे डॉक्टर (Doctor) है, मैं भी
डॉक्टर (Doctor) हूँ! ससुर अब नहीं रहे हैं! दो बेटियाँ हैं! एक, एक साल की है और एक तीन
साल की! आठ साल हो गये हमारी शादी को! हमारी जो सास है वो पूरी तरह पति और परिवार
पर हावी रहती है! वो चाहती है की सबकुछ उसके अनुसार हो – हमारा उठना, सोना, खाना,
पीना, बोलना! यदि चीजे उनके अनुरूप नहीं होती हैं तो वो मेरे पति को इमोशनली ब्लैकमेल
(Emotionally Blackmail) करने लगती है! अपनी उपकार याद दिलाने लगती है कि मैंने
तुम्हारे लिए ये किया है, ये किया है, ये किया है आदि आदि! वो हंमेशा अपने आप को उदास
दिखाती है और कभी कभी बिमारी का नाटक भी करती है! ताकि मेरे पति का पूरा अटेंशन
(Attention) उन्हीं पर रहे! मेरे पति भी उन्हीं के प्रभाव में रहते हैं और चाहते हैं कि मैं और
बच्चे उनकी विधवा माँ का मनोरंजन करते रहे! मेरे पति भी मुझे नहीं समझते, जो मुझे बहुत
हर्ट (Hurt) करता है! मैं अपनी सास का डिसरिगार्ड (Disregard) नहीं करती लेकिन उनके
हाथ का पपेट (Puppet) बनकर रहना ये मुझे सफोकेट (Suffocate) करता है! खैर वो जैसी
भी है, मैं ये जानना चाहती हूँ कि ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे रहना चाहिए? क्या अपने सारे
अधिकार उसे दे दिए जाएँ? अपमानित होकर घुटकर जीते रहें? या अपने अधिकार के
लिए लड़ें? ये डॉक्टर (Doctor) रिचा है! तो ठीक विपरीत भ्राता जी ये बात है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— अभी बात यही है कि ये दोनों एज्युकेटेड (Educated) है और
संभव है सास इनकी बहुत कम पढ़ी लिखी हो या बिल्कुल अनएज्युकेटेड (Uneducated)
हो! लेकिन सास की समस्या ये है कि उसका पति नहीं रहा! इस बात को दूसरे लोग तो नहीं
महसूस करते कि किसी भी नारी का जब पति चला जाता है! इनकी आयु 30-35 साल है!
तो पति की आयु 60 तक रही होगी! 60-65 की! वो चला गया! इसकी आयु भी 60 के
आसपास होगी! तो एक नारी को अकेलापन बहुत महसूस होता है! और गिल्टी फिलिंग
(Guilty feeling) भी उसके अंदर बहुत रहती है! और इस निराशा को, अपने अंदर के दु:ख
को वो किसी न किसी रूप से दूसरों पर जरुर निकालती है! ये देखती होगी कि नारी में एक
चीज और भी है, जो सब नारीयाँ जानती है– जेलस नेचर(Jealous Nature)! ईर्ष्या बहुत होती
है! अब भले ही वो उसकी बहु है! अगर वो उसको बहुत प्यार देने लगे तो जो उसकी ईच्छा है
वो आपेही पूरी हो जाएँगी! लेकिन ये जो एक अधिकार से और जरा पावरफुल अथोरिटी से
“मैं मालकिन हूँ! सब मेरे अनुसार चले!” – ये जो व्यवहार है, तो पढ़े लिखे लोग उनको स्वीकार
नहीं करते! उनको सफोकेशन होता है! वो समझते हैं हम इस गुलामी में कब तक जियेंगे!
डॉक्टर लेडी का कहना बिल्कुल ठीक है! लेकिन माता को भी थोडा समझना चाहिए! अब
पति की दुविधा है– अब वो उसकी माँ है! बाप नहीं है! (रुपेश जी —— एक है, दो लोग
अधिकारी है!) अभी बच्चा होने के कारण उसका भी कुछ कर्तव्य है! और वो हो सकता
है उसके डिप्रेशन (Depression) को समझता हो कि यह अकेली है! इसलिए उसका
झुकाव थोडी उधर रहता है! तो इसकी पत्नी डॉक्टर (Doctor) को भी समझना चाहिए कि
कोई बात नहीं! वो भी हमारी माँ है! उसको भी साथ देने में कोई हर्जा नहीं! ये अगर हल्का
हो जाएगी तो वो भी हल्की हो जाएगी! ये एक बहुत सुंदर सायकोलोजिकल (Psychological)
सिद्धांत है– की हम जब संबंधो में दूसरे से हल्के हो जाते हैं, तो दूसरा व्यक्ति भी हल्का हो जाता
है! ये थोड़ी देर के लिए यही सोच ले “अच्छा मेरा पति माँ की ओर ध्यान देता है! उस पर ज्यादा
केयर करता है, सबकुछ करता है! ठीक है बहुत अच्छा – वो अकेली है उसको चाहिए! मेरे साथ
तो बच्चे भी है, पति भी है, मेरा काम भी है! पेशेन्ट्स (Patients) भी मुझे देखने हैं!” अगर ये इस
तरह हल्की हो जाएगी तो ये पाएगी कि कुछ दिनों में वो भी हल्की हो जाएगी! ये एक चीज है!
बाकी इसको सफोकेशन (Suffocation) में तो नहीं जीना चाहिए! लेकिन ऐसा भी नहीं कि
लड़ाई में जीना चाहिए! क्योंकि इसका दूसरा पहलू ये हो जायेगा कि वो कुछ कहेगी, इसको
दबाव महसूस होगा और लड़ाई होगी! लेकिन इनका कर्तव्य है सास कुछ कहे, मुस्करा के
पूरा कर दे! कुछ बातें उनकी हाँ कर दें!
रुपेश जी —— लेकिन भ्राता जी यदि लगातार अगर सुबह से रात तक ये चलता रहे
तो एक व्यक्ति के लिए, एक सामान्य व्यक्ति के लिए बहुत कठिन हो जाता है! कि वो कैसे
ऐसे में मुस्कुराता रहे, सबकुछ सहता रहे! क्योंकि उसे अपनी डिस्पेन्सरी (Dispensary)
भी जाना है, हॉस्पिटल (Hospital) भी जाना है, जॉब (Job) भी करना है, बच्चों को भी
संभालना है, घर का काम भी करना है! ऊपर से ये सारी बातें भी सुननी है! तो इट्स रिअली
वेरी डिफिकल्ट (It’s very difficult)!
बी के भ्राता सूर्या जी —— निश्चित रूप से एक प्रेशर (Pressure) बना रहता है! मनुष्य की
ख़ुशी जाती रहती है! वो हर्ट (Hurt) फील (Feel) करता रहता है अपने को! इसमें हमारे
पास स्प्रिचुअली (Spiritually) एक बहुत अच्छा समाधान है कि एक तो हम हल्के तो हो ही
जाये दुसरे से! लेकिन हम बहुत अच्छा स्वमान का अभ्यास करें! एक स्वमान और एक दूसरे
के लिए आत्मिक द्रष्टि! तो उसको ये चाहिए कि ये स्वयं तो रहे स्वमान में कि “मैं एक महान
आत्मा हूँ!, मैं पूर्वज हूँ!, मैं विश्व कल्याणकारी हूँ!” और सास को देखे आत्मिक द्रष्टि से, ये भी
आत्मा है और ये बहुत अच्छी आत्मा है! एक बहुत अच्छा प्रयोग जो हम सबकोंसियस माइंड
(Subconscious Mind) का सिखा रहे है, सवेरे उठते ही ये कर लें – कि जैसे ही आँख खुले,
सात बार याद करें “मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ!” और अपनी सास को आत्मा देखे– ये आत्मा
मेरी बहुत सहयोगी है! ये आत्मा मुझसे बहुत प्यार करती है! ये आत्मा मेरा बहुत सम्मान
करती है! और दूसरे संकल्प दें– मैं भी इस आत्मा से बहुत प्यार करती हूँ! मैं भी इस आत्मा
का बहुत सम्मान करती हूँ! ये मेरी बड़ी है, मुझे इसके साथ बहुत प्यार से जीवन व्यतीत
करना है! तो सबकोंसियस माइंड (Subconscious Mind) स्वीकार करता जाएगा उसका!
अपने अंदर भी कुछ महानताएँ आती जाएगी और हम छोटी छोटी बातों को हम बड़े रूप से
नहीं लेंगे – कभी कभी दूसरे की बात छोटी होती है, हम उसे बहुत बड़े रूप से लेकर,
सीरियसली (Seriously) लेकर भारी हो जाते है! जैसे एक बहुत अच्छा सिद्धांत है कि बात
बड़ी नहीं होती, हम सोच सोच कर उसे बहुत बड़ा बना देते हैं! दूसरी चीज ये पायेंगे कि
जितना ज्यादा ये स्वमान में रहेंगी उतना ही दूसरों का सम्मान इनको प्राप्त होगा! तो सास भी
सम्मान करेगी, पति भी बहुत सम्मान करेगा! महान व्यक्ति का सम्मान सब करते ही है!
स्प्रिचुअलीटी (Spirituality) में एक सिद्धांत ओर है उसको भी ये अप्लाय कर सकती है कि
“जो जितना देह से न्यारे होने के अभ्यास करते है, वो सबके उतने ही प्यारे बन जाते है!” तो
इन डॉक्टर (Doctor) को ये चाहिए कि वो अपने प्रेक्टिस (Practice) में बीच बीच में अभ्यास
करे “मैं आत्मा अलग, ये देह अलग है!”
रुपेश जी —— लेकिन भ्राता जी क्या इसके लिए राजयोग सीखना पड़ेगा, ज्ञान लेना
पड़ेगा? क्योंकि आपने स्प्रिचुअल (Spiritual) बातें, स्वमान की बात कही, या शरीर से डिटेच
(Detach) होने की बात कही! तो मुझे लगता है की स्प्रिचुअल प्रेक्टिसीस (Spiritual Practices)
है जिन्हें शायद सामान्य व्यक्ति नहीं समझ पायेगा!
बी के भ्राता सूर्या जी —— नहीं समझ पायेगा! इसलिए इनको जरुरी है कि वो सेवन डेज कोर्स
(7 Days Course) कर लें! तो उन्हें काफी बातें क्लिअर (Clear) हो जाएगी! क्योंकि स्प्रिचुअलीटी
(Spirituality) इन समस्याओं का समाधान है! बिना स्प्रिचुअलीटी (Spirituality) के तो वो बोलती
जाएगी, ये प्रेशर (Pressure) फील (Feel) करती जाएगी! संबंधो में दूरी और टकराव बढ़ता जायेगा!
और इसका कहीं अंत नहीं होगा, और उसका जो पति इनका डॉक्टर है उसके लिए बहुत भारी
समस्या बनती जाएगी! अब वो माँ का साइड (Side) ले या पत्नी का साइड (Side) लें! दोनों ही
उसके लिए इम्पोर्टेन्ट (Important) है! तो स्प्रिचुअली (Spiritually) इसको हल करना ज्यादा
अच्छा रहेगा! हल करने में कठिनाई भी नहीं होगी! हल करने में कुछ लोस (Loss) जैसा नहीं
होगा! सुख बहुत मिलेगा!
रुपेश जी —— भ्राता जी कितना समय लगेगा परिस्थियों को ठीक होने में! क्योंकि कई
बार व्यक्ति ये सोच के भी बहुत भारी होता रहता है कि अरे यार, पूरी लाईफ (Life) मुझे यही
झेलना पड़ेगा क्या? ऐसे ही लाईफ (Life) जीनी पड़ेगी क्या? यही सुनते रहना पड़ेगा क्या? मेरी
जो इतनी पढाई है वो सब ऐसे ही वेस्ट (Waste) हो जाएगी क्या? मतलब ये सोच सोच कर
व्यक्ति भारी होता जाता है! तो ये जो आपने प्रेक्टिसीस (Practices) बताई, कितना वक्त लगेगा
परिस्थितियों को सामान्य होने में?
बी के भ्राता सूर्या जी —— देखिए, अगर बहुत कोन्फीडेंटली (Confidently) और कुछ
स्प्रिचुअल पावर (Spiritual Power) अपने में भरी जाए तो जितनी हमारे अंदर पावर (Power)
होती है ये वायब्रेशन्स (Vibrations) उतनी ही पावरफुली (Powerfully) चारों ओर फैलते है!
देखिए, किसी के वायब्रेशन्स (Vibrations) यहीं तक जायेंगे, जिसमें पावर (Power) नहीं! किसी
के वायब्रेशन्स (Vibrations) इस पुरे हॉल (Hall) को पार कर जायेंगे, तो किसी के वायब्रेशन्स
(Vibrations) पुरे गाँव से बाहर निकल जायेंगे, किसी के शहर से बाहर निकल जायेंगे और किसी
के सारे संसार में फ़ैल जायेंगे! किसके अंदर कितनी पावर (Power) है मन में, उसपे डिपेंड
(Depend) करेगा! तो ये अपने अंदर थोड़ी स्प्रिचुअल पावर (Spiritual Power) भरें! और मुझे
विश्वास है कि अगर ये बहुत कोन्फीडेंटली (Confidently) और रेग्युलरली (Regularly), सिंसियरली (Sincerely) करेंगे तो सात दिन में उसमें इन्हें परिवर्तन दिखाई देगा, अपने में भी और सास में भी!
लेकिन २१ दिन में तो सम्पूर्ण परिवर्तन हो जायेगा! तो पहले ७ दिन करें, फिर २१ दिन करें और फिर
इसको कंटीन्यू (Continue) रख सकते है तीन मास तक! बस! इससे ज्यादा समस्या नहीं चलेगी!
रुपेश जी —— क्योंकि जो चीज मुझे महसूस हो रही थी की व्यक्ति यही सोच के सचमुच
बहुत भारी हो जाता है और ये पुरे जीवन के लिए हम कहाँ नर्क में आ गये, या जेल में आ गये अब
हमारा क्या होगा? फ्यूचर भी बिल्कुल अंधकारमय दिखाई देता है! और वो वातावरण इतना भारी
हो जाता है कि व्यक्ति के लिए थोड़े समय भी वहाँ पे रहना कठिन महसूस होता है!
बी के भ्राता सूर्या जी —— बिल्कुल ऐसा केस (Case) अनेक परिवारों में हो रहे हैं! अब लड़की
की शादी हो के वो इस घर में आ गई! अब किसी को पति ठीक नहीं मिला, अब वो सोचती है इस
पति के साथ पूरा जीवन? क्या होगा! किसी को सास ठीक नहीं मिली तो किसी सास को बहु ठीक
नहीं मिली! किसी को ओर कुछ ठीक नहीं मिला! कहीं जॉब (Job) अच्छी नहीं मिली, साथी अच्छे
नहीं! तो नैचुरली (Naturally) मनुष्य सोचता है कि इस तरह से जीवन जीना पड़ेगा क्या? लेकिन
अगर अपने को बदलेंगे, अगर एटीट्युड्स (Attitudes) को बदलेंगे! अगर अपने वायब्रेशन्स
(Vibrations) को बदलेंगे तो 7 दिन में बहुत चेंज आयेगी! 21 दिन में सम्पूर्ण आ जाएगी! और
कोई बड़ा ही केस है तो 3 मास से ज्यादा नहीं चलेगा!
रुपेश जी —— ये तो बहुत सुंदर बात भ्राता जी आपने कही है! घर घर की आज लगभग
ये कहानी हो गई है हर घर में इस प्रकार की खिट–खिट चलती रहती है और यदि इन स्प्रिचुअल
प्रेक्टिसीस (Spiritual Practices) को सास या बहु अपना लें तो निश्चित रूप से जो समस्याएँ हैं
वो दूर हो जाएगी! आपका बहुत बहुत शुक्रिया भ्राता जी!
मित्रो परिवार एक ऐसी जगह है, घर एक ऐसी जगह है जहाँ व्यक्ति आ करके सुकून
चाहता है, शांति चाहता है और यदि घर का माहोल थोडा भी अशांत हो तो व्यक्ति वहाँ जा करके
बिल्कुल अशांत हो जाता है, चाहता है कि घर जाए ही ना! ऐसे में सास और बहु की जो आज बात
हमने ली है, हम तो यही कहेंगे कि– सास माँ की तरह अपने बहु से ट्रीट (Treat) करें और बहु भी
जैसे अपने माँ के साथ प्रेम पूर्वक रहा करती थी वैसे ही सास को भी माँ का दर्जा दें! तो यदि माँ
और बेटी का ये रिलेशन (Relation) बन जाए तो निश्चित रूप से बहुत सुंदर घर का माहोल हो
जाएगा! आप जानते है कि कोई भी माँ अपनी बेटी की कमजोरी को मोहल्ले में निकल के ढिंढोरा
नहीं पीटती! साथ ही कोई भी बेटी यदि माँ में कोई भी कमी है तो वो भी बाहर निकल के बाहर
प्रचार प्रसार तो नहीं करती है ना? लेकिन घर में आपसी समझ–बुझ से उसे दूर करते हैं ताकि
परिवार का माहौल बहुत सुखमय और शांतिमय बना रहे! आवश्यकता है आपसी समझ की,
आवश्यकता है प्रेम की – जहाँ प्रेम है वहाँ सब कुछ सरल और सहज हो जाता है! हमारी ढेर
सारी शुभकामनाएँ कि आपके परिवार में ऐसा ही प्रेम का वातावरण बनें! सास और बहु ऐसे
रहे जैसे माँ और बेटी रहते हैं! तो वहाँ लक्ष्मी का भी वास होगा, सुख–शांति घर में रहेंगे! ताकि
सभी लोग सभी सदस्य बहुत आनंदित महसूस करें! हमारी ढेर सारी शुभकामनाएँ कि आपके
परिवार में ऐसी ही खुशहाली बनी रहें! नमस्कार!!!