Samadhan Episode 906 | Experience Sharing | Dr. Heena (Global Hospital and Research Centre)

  1. मुंबई शहर की चकाचौंध वाली luxurious life को छोड़, माउंट आबू में शांति से सेवा करने का अनुभव |
  2. Spirituality ने सिखाया – अपनी वैल्यू करना कितना इम्पोर्टेन्ट है |
  3. Emergency Medical Services में अपनेआपको स्टेबल रखना |
  4. बिजी लाइफ में कैसे खुद के लिए टाइम निकाला जाए ?
  5. मैडिटेशन से टॉलरेंस पॉवर बढती है |
  6. मैडिटेशन से ब्लॉकेज, थाइरोइड, PCOD जैसी बीमारियों में लाभ |
  7. ख़ुशी हम साधनों में, बाहर ढूंढते हैं इसलिए खुश नहीं रह पाते |

 

रुपेश कईवर्त : नमस्कार, आदाब, सत श्री अकाल, मित्रों एक बार पुनः स्वागत है आपका, कर एक नयी समस्या का समाधान, हमारे साथ हैं एक खास मेहमान कार्यक्रम में | मित्रों कुछ सुंदर सी पंक्तियाँ किसीने कही कि यदि आपके चंद मीठे बोल किसीका खून बढ़ा देते हैं तो ये भी रक्तदान है |

यदि आप किसीकी पीठ थपथपा देते हैं और उसकी थकान दूर हो जाती है तो ये भी श्रमदान है | आप अपनी प्लेट में उतना ही भोजन लेते हैं जितना आपको चाहिए माना आप उसे व्यर्थ नहीं करते हैं तो ये भी अन्नदान है |

और इन दानों के साथ एक सबसे बड़ा दान होता है मित्रों वो है जीवनदान, जो एक डॉक्टर पेशेंट को देता है, मरीज़ को देता है और इस दान को करने वाले, और अपने जीवन का भी दान मानवता के सेवा अर्थ कर देने वाले |

डॉ. हिना हमारे साथ हैं, जो माउंट आबू के ग्लोबल हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में सीनियर क्लिनिकल एसोसिएट के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही हैं और साथ ही साथ ना केवल लोगों के तन को ठीक कर रही हैं लेकिन मैडिटेशन के माध्यम से लोगों के मन को भी तंदुरुस्त कर रही हैं,

तो आईये ऐसी डॉक्टर साहिबा का… जिन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा अर्थ अर्पित कर दिया है, ऐसे डॉक्टर का हम अभिनन्दन करते हैं आजके हमारे समाधान कार्यक्रम में… आपका पुनः डॉ हिना स्वागत और अभिनंदन है हमारे कार्यक्रम में |

डॉ. हिना : थैंक यू

रुपेश कईवर्त : एक प्रश्न मेरे जहन में कल से उठ रहा था जब हमारी चर्चा कल समाप्त हुई उसके पश्चात् से कि मुंबई और पुणे में आपकी पढाई हुई है परवरिश हुई, इतनी चकाचौंध वाली luxurious लाइफ को छोड़कर माउंट आबू, एक छोटा सा स्थान है, एक छोटा सा गाँव है, यहाँ आने का निर्णय आपने कैसे लिया ?

डॉ. हिना : जब हम पहली बार 7 साल पहले यहाँ आये थे तब सभी लोगों ने हमसे यही प्रश्न पूछा कि मुंबई छोड़कर आप यहाँ गाँव में आ गये ! जैसा आपने कहा, चकाचौंध, सुख-सुविधा | सुख-सुविधा actually क्या है, उसको जानना ज़रुरी है |

जब हम मुंबई में अपनी ड्यूटी करते थे तो travelling में ही इतना समय जाता था, और travelling में हमारी जितनी एनर्जी है वो सारी निकल जाती थी जो चीज़ हमको चाहिए वो चीज़ हमको नहीं मिलती थी, जो ख़ुशी हमको चाहिए, जो शांति हमको चाहिए वो हमको वहाँ नहीं मिली | हम ऐसा सोचते हैं कि मुंबई जैसा शहर, मल्टीप्लेक्स, माल्स(malls)..

रुपेश कईवर्त : सब लोग जाना चाहते हैं …

डॉ. हिना : हाँ सबलोग सोचते हैं कि मुंबई देखें.. मुंबई देखें.. लेकिन हमारा कुछ और ही था | मुंबई में ही हमारा जन्म हुआ, वहीं पले-बढ़े, सारी स्कूलिंग, कॉलेज सब हुआ वहाँ | लेकिन जैसे है ना कि किसीने नज़दीक से अगर उस दुनिया को देखा है तो उसे पता है

कि वहाँ के disadvantages क्या है ! वहाँ रहने के … हम जब माउंट आबू आए, तो यहाँ हमें इतना एकान्त मिला ! जो हमेंशा से हमें चाहिए था | एक solitude है यहाँ | यहाँ का जो नेचर है.. जैसे यहाँ हेडक्वार्टर(Headquarter) है ब्रह्माकुमारिस का |

मैडिटेशन सबसे पहले हमारे लिए बड़ा अट्रैक्शन था | और जैसे कि वो खुली हवा में बैठ के मैडिटेशन करना, तो ये सब हमारे लिए बहुत ही आकर्षण वाली चीज़ थी | और दूसरी बात, हमने यहाँ देखा था कि यहाँ ग्लोबल हॉस्पिटल है जोकि चैरिटेबल हॉस्पिटल है |

और बचपन से हमारी इच्छा थी कि हम गरीबों की सेवा करें | तो मुंबई तो बहुत कमर्शियल है तो वहाँ तो हमें ये चांस नहीं मिलता | तो यहाँ पर वो opportunity थी हमारी, एक सेवा भी होगी और जो हमें चाहिए था वो भी मिलेगा | इसलिए वो opportunity ग्रैब करके हम यहाँ पर आ गए |

रुपेश कईवर्त : सचमें, मानव सेवा तो सबसे बड़ी सेवा है, धन कमा लेना या फ़िर एक अच्छे औदे तक पहुँच जाना, वो भले ही अपनेआप में भौतिक जगत का एक सम्मान लगता है, लेकिन जब हम एक गरीब की, एक असहाय की सेवा करते हैं तो उसका सुख एक अलग ही होता है |

तो क्या इतने वर्षों में आपको ऐसा लगा कि मैं यहाँ आई हूँ तो ये मेरा सही निर्णय था ! कहीं वो चकाचौंध वाली बात आकर्षित तो नहीं करती! कि वहाँ जाऊँ, थोड़ा taste करूं |

डॉ. हिना : नहीं.. बिलकुल नहीं.. अभी भी जब हम मुंबई जाते हैं अपने परिवार से मिलने के लिए तो तीन चार दिन से ज़्यादा नहीं रुक पाते और हमें लगता है कि जल्दी से वापिस आओ | क्योंकि इच्छा होती है सेवा की और जो ख़ुशी मिलती है सेवा के बाद,

वो बहुत अच्छा लगता है | at the same time, हमें अपने लिए भी time मिलता है | और एक बात हमने सीखी spirituality में आकर कि वैल्यू इन the सेल्फ़ कितना इम्पोर्टेन्ट है | मुंबई जैसे शहर में आप भाग-दौड़ कर रहे हो, अपनेआप पर ध्यान नहीं दे रहे हो |

हम चाहते हैं कि ख़ुशी अपने घर पर लायें पर हम नहीं ला पाते हैं | हमने spirituality में सीखा कि पहले सेल्फ़-केयर इम्पोर्टेन्ट है, फ़िर दूसरों का केयर ! नहीं तो फ़िर दो पेशेंट्स हो जायेंगे | खुद भी और पेशेंट भी | तो ये हमने सीखा कि सेल्फ़ केयर, अपनेआप को वैल्यू करना |

रुपेश कईवर्त : जी.. बहुत सुंदर बात है कि दो पेशेंट एक-दूसरे को कैसे ठीक कर सकते हैं | पहले मैं खुद ही ठीक हो जाऊँ ! एक सुंदर और महत्वपूर्ण बात इस सन्दर्भ में जानना चाहूँगा.. लोग भागे तो जा रहे हैं चाहे आप वहाँ भी देखें, चाहे आप मेडिकल के प्रोफेशन में हों, या किसी और प्रोफेशन में हों, अपने आप को वक्त नहीं दे पाते हैं कि अपनेआप को समय दें |

कहते हैं कि हमें वक्त नहीं मिलता, कितना ज़रुरी आपको लगता है कि हम खुद को वक्त दें तो जीवन बेहतर हो सकता है सुख-शांति से सम्पन्न हो सकता है |

डॉ. हिना : एक्चुअली, हमसब रीज़न देते हैं कि हमारे पास वक्त नहीं है, लेकिन कहीं ना कहीं हम समय निकाल सकते हैं, और फ़िर हम बाहर क्यों जा रहे हैं ! ख़ुशी लाने के लिए जैसाकि मैंने कहा, तो आपको अगर ख़ुशी चाहिए तो अपनेआप को भी समय देना पड़ेगा | और हम हमेशा ऐसे नहीं कह सकते कि हम बहुत बिजी हैं, हमारे पास बहुत सारे पेशेंट्स हैं ! क्योंकि बॉम्बे जैसे शहर में एक डॉक्टर 5-6 हॉस्पिटल्स से अटैच होते हैं |

और रात को 12 बजे घर पहुँचते हैं, और ऐसे भी डॉक्टर्स हैं जो सुबह 8 बजे निकलेंगे और रात को 12 बजे पहुंचेंगे | तो कैसी लाइफस्टाइल जी रहे हो, आप एक डॉक्टर होकर नहीं समझ पा रहे हो तो पेशेंट को क्या कहेंगे !

अगर आप पेशेंट को कहेंगे कि वाकिंग करनी है, नींद अच्छी होनी चाहिए, तो ये सब हम पेशेंट्स को सिखाते हैं पर हम खुद ही नहीं कर पाते हैं | तो हम इस बात को समझें कि जो हम कह रहे हैं वो हम खुद करके दिखाएँ | तो हमें कहीं ना कहीं टाइम निकालना ही पड़ेगा |

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. अपने शरीर के साथ इतना अन्याय नहीं करना चाहिए इस कदर जैसाकि आपने कहा काफ़ी हेक्टिक लाइफ दिखाई देती है फ़िर एक समय के बाद देखने में आता है कि बहुत सारी बीमारियाँ हमारे खुद के अंदर आ जाती हैं, फ़िर परेशान होते हैं |

आप कैसे बैलेंस रखती हैं डॉ हिना ! आपकी प्रोफेशनल लाइफ में, स्पिरिचुअल लाइफ में | क्योंकि बैलेंस सभी नहीं रख पाते हैं | कभी कोई पलड़ा भारी हो जाता है … तो कैसे बैलेंस रखें ! आप अपने अनुभव से क्या कहना चाहेंगी !

डॉ. हिना : जैसे हमारी सेवा है ग्लोबल हॉस्पिटल में, हम इमरजेंसी में काम करते हैं, हम on कॉल होते हैं 24 hours, कभी हमें रात में 2 बजे कॉल होता है कभी 1 बजे होता है | कभी दुपहर में तो कभी रात में, कभी भी आ सकता है |

लेकिन हम रेडी रहते हैं उस चीज़ के लिए, क्योंकि हमने spirituality में सीखा है कि ये सारी चीज़े जो हैं ये हम दे रहे हैं किसी दूसरे को | और एक बहुत अच्छी भावना है कि देने में ही लेना है | तो बहुत ख़ुशी मिलती है जब हम यहाँ पर लोगों को समय देते हैं |

तो ये एक है | दूसरा हमने रिसेंटली एक स्पिरिचुअल एक्टिविटी की थी eisenhower मैट्रिक्स, उस एक्टिविटी में हमने सीखा कि कौनसी चीज़े आपके लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं जो आप को अभी करनी है, और कौनसी चीज़ आप बाद में कर सकते हो |

कौनसी चीज़ है जो आपको डेलिगेट करनी है दूसरे को, कौनसी चीज़ है जो आपको एलिमिनेट करनी है, जैसे whatsapp, youtube जिनमे हम इतना टाइम स्पेंड करते हैं, इसको एलिमिनेट कर सकते हैं | तो ये जो एक्टिविटीज हम करते हैं, छोटे-छोटे ग्रुप्स में | तो इनसे हमको सीखने को मिला, कि कैसे हम बैलेंस रख सकते हैं इन सब चीजों का | तो वो ध्यान में रखते हुए हम बैलेंस रखते हैं |

दूसरा, बहुत सारी challenges भी आते हैं जब आप क्रिटिकल केयर में काम करते हो | कभी-कबार मोब आ जाता है, वो हमको चिल्लाएगा, हम चुप बैठें | ऐसा होता है ना कि हम भी चिल्लाए ! बहुत समझ आ गई है अभी, जो रिलेटिव्स आते हैं ना वो बहुत दुःख में आते हैं |

कभी-कबार उनके पास पैसे नहीं होते और वो जिस तरह से बोलेंगे, कि हमारे पेशेंट को देखो, वो ठीक होना चाहिए, हम आगे कहीं लेकर जाएँ ! इसको बुलाओ, उसको बुलाओ | ये सब बहुत प्रेशर होता है माइंड पर उस समय | लेकिन spirituality से हमने सीखा कैसे अपनेआप को स्टेबल रखना उस समय, सामने वाले को जानना, सामने वाले को समझना कि वो ऐसा क्यों बोल रहा है |

ये  चीज़ हमें बहुत बैलेंस रखती है | और दूसरा, कि जैसे हमारे पास जब waste थॉट्स नहीं होते दिनभर, हम मनसे थकते नहीं हैं, इसलिए हमारी नींद भी रिकवर हो जाती है, क्योंकि जैसे ही हम बेड पर सोते हैं हमें नींद आ जाती है | लोग सोचते हैं ना कि इमरजेंसी में काम कर रहे हैं तो नींद ही नहीं ठीक से हो रही होगी |

रुपेश कईवर्त :  लेकिन लगता है कि सबकी दुआएँ इतनी मिलती होंगी, कि आपको इतनी सुंदर नींद आ जाती होगी | क्या लगता है ये जो आप अपनी दिनचर्या रखती हैं, क्या हम सुबह उठ कर के मैडिटेशन करें, या रात को करें, या बीच-बीच में ऐसा कुछ वक़्त आप निकालती हैं, क्योंकि जो एक बात हम लोगों की चल रही है, लोग समय की बात हमेंशा कहते हैं कि समय हमें नहीं मिल पाता है ! क्या suggest करेंगी आप, कहाँ से टाइम चुराया जा सकता है ! थोड़ा-थोड़ा मैडिटेशन किया जा सकता है |

डॉ. हिना : हमें एक बात याद आ रही है, हमारे पापा हमेशा ये कहते रहते थे.. कि बच्चे जब भी आप बस के लिए खड़े रहो, टैक्सी के लिए खड़े रहो, तो हमको दुआ पढने के लिए कहते थे वो, जिसको कहते हैं दरूद शरीफ़ | और हम वो पढ़ते थे |

और वो आदत हमको अभी भी है | हम अगर बस के लिए, टैक्सी के लिए खड़े रहेंगे, या चल रहे होंगे, तो पापा ने हमको सिखाया था कि वो टाइम भी waste नहीं करना है और खुदा को याद करना है | तो ये हमारे में बचपन से था |

जब हम यहाँ भी आये, तो जैसे कि यहाँ भी मैडिटेशन करने को कहते हैं, ऐसा है कि कोई समय नहीं है उसका | लेकिन फ़िर भी हमारे पास एक मोर्निंग का समय और एक शाम का समय फ़िक्स होता है | जब हम साथ में ग्रुप में बैठ कर मैडिटेशन करते हैं |

परन्तु हम समय को चुरा सकते हैं जैसा कि मैंने कहा ना कि जैसे हम बस के लिए खड़े हैं या दो पेशेंट के बीच में थोडा सा समय होता है जब आप कुछ सेकंड फ़्री होते हो | उस समय आप मैडिटेशन.. पहले आपको बैठकर करना पड़ेगा | फ़िर आपको आदत होगी कि छोटे छोटे समय पर कर सकते हैं |

जैसे हम भोजन खा रहे हैं, जैसे हम कहते हैं ना कि भोजन मौन में खाओ | मेडिकल में भी सिखाया जाता है कि आपको इतने बार चिउ (चबाकर) खाना है | लेकिन आजकल ये सारी चीज़े भूल चुके हैं | तो वो समय है, उस टाइम पर भी आप मैडिटेशन कर सकते हो |

जैसे हम कहते हैं जैसा अन्न वैसा मन | वो एक समय है जब हम वाक कर रहे होते हैं, आजकल जब हम वाक(walk) कर रहे होते हैं तो ग्रुप्स में जाते हैं वाक करने, वो भी एक अच्छी बात है लेकिन कभी कबार हम अकेले खुदको समय दें |

रुपेश कईवर्त : ये तो आपने हमें बहुत सारे स्थान गिना दिए हैं, कि यहाँ यहाँ हम मैडिटेशन के लिए निकाल सकते हैं | अब तो लगता है कि हमारे पास बहुत वक़्त रहेगा मैडिटेशन के लिए | लम्बे समय से आप पेशेंट्स को देख रही हैं कुछ पेशेंट्स ऐसे भी होंगे

जो मैडिटेशन करते होंगे, कुछ नहीं भी करते होंगे | तो क्या आपको अंतर दिखाई देता है उन लोगों में जो मैडिटेशन करते हैं उनकी रिकवरी जल्दी हो रही है और जो मैडिटेशन नहीं कर रहे हैं उनको कहीं ज़्यादा तकलीफ़ या दर्द हो रहा है, आपका अनुभव क्या कहता है इसमें ?

डॉ. हिना : जैसे हम मैडिटेशन करते हैं तो हम हर परिस्थिति में खुश रहना सीख लेते हैं, कई ऐसी रिसर्च हैं जो ये बताती हैं कि जब आप खुश रहते हो तो आपकी बीमारी जल्दी ठीक होती है | कई रिसर्च बताती हैं कि जब आप खुश रहते हो तो आपका जो इम्यून सिस्टम है वो बूस्ट होता है |

और कई जैसेकि डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक है, हार्ट प्रॉब्लम हैं ये ठीक होते हैं जब आप खुश रहते हो, उन्होंने ग्रुप्स पर स्टडी करी है | तो यही हम देखते हैं, क्योंकि हम ग्लोबल हॉस्पिटल में काम करते हैं तो हमारे पास ऑप्शन है, कि हम दोनों प्रकार के लोगों को देखते हैं | तो देखते हैं कि कैंसर जैसी भी बीमारी अगर कोई बी.के. पेशेंट, ब्रह्माकुमारिस के follower को हो गई, तो फ़िर भी वो इतना खुश रहता है |

रिसेंटली, हमारे पास एक भाई थे जिनको स्टोमक कैंसर हो गया था, और उनको पता था कि 6 महीने बाद वो ये शारीर छोड़ेंगे | लेकिन उनसे हमको इतना सीखने को मिला, वो इतना खुश रहते थे | यहाँ तक कि उनसे खाना भी नहीं खाया जाता था |

लेकिन वो खुश रहते थे, उनको देख के बाकी सब भी खुश रहते थे | ऐसे ही डायलिसिस पेशेंट होते हैं, कितने बीमार पड़ते हैं, बार-बार उनको कुछ ना कुछ इन्फेक्शन होता है | कभी उनका fistula, जहाँ से उनका डायलिसिस होता है, वो फ़ेल हो जाता है |

तो बहुत दुःख में होते हैं, रिलेटिव्स भी दुःख में होते हैं | ये ही जो मैडिटेशन करने वाले डायलिसिस पेशेंटस आये, हमने देखा, कितने स्टेबल.. कितने स्टेबल… इतनी complication के साथ इतने स्टेबल कि हमने भी सोचा ये कैसे… इतनी tolerant पॉवर थी उनके अंदर.. सुपर्ब !

रुपेश कईवर्त : मतलब ये जो मैडिटेशन है, ईश्वर का ध्यान है, उससे जब हम जुड़े रहते हैं ऊपर वाले से, खुदा से, तो शायद हममे उनसे शाक्तियाँ आने लगती हैं, और जो हमारे सोचने का तरीका है जो क्रिएट करने का तरीका है वो पूरी तरह से बदल जाता है |

डॉ. हिना : हमारी टॉलरेंस पॉवर बढ़ जाती है एक्चुअली | परिस्थिति हर किसी के जीवन में आती है, लेकिन जो टॉलरेंस पॉवर डेवेलोप हो जाती है वो इस मैडिटेशन से होता है |

रुपेश कईवर्त : क्या इस मैडिटेशन से बीमारियों को भी ठीक होते हुए देखा है आपने ! कोई ऐसी तकलीफ़ थी और फ़ास्ट इम्प्रूवमेंट तो होता ही है, वो तो हम देखते हैं, क्या पूरी तरह से, जहाँ से व्यक्ति निराश भी हो जाता है, उसे भी आपने ठीक होते हुए देखा है ?

डॉ. हिना : कई पेशेंट OPD में आते हैं और जो मैडिटेशन करते हैं वो अपने एक्सपीरियंस हमारे साथ शेयर करते हैं, कि थाइरोइड जैसी बीमारी थी उनको और उन्होंने मैडिटेशन किया और खुदा से वाइब्रेशन लिए, परमात्मा से वाइब्रेशन लिए  और उन्हें थाइरोइड ग्लैंड पर दिए और उन्होंने कहा कि उनकी जो रिपोर्ट्स हैं वो सब नार्मल हो गए|

ऐसी कई Disease (बीमारी) लाइक एक ने हमें कहा था PCOD था उनको, PCOD तक उनका ठीक हो गया और उनकी जो problems थी वो सारी नार्मल हो गई | ऐसे हमारे पास CAD प्रोग्राम होता है, कोरोनरी आर्टरी Disease का जो प्रोग्राम होता है, हार्ट ब्लॉकेज के साथ पेशेंट आते हैं और उनको भी एक लाइफस्टाइल सिखाई जाती है | सुबह से लेकर रात तक, उसमे मैडिटेशन भी एक पार्ट है | उससे कई ब्लॉकेज ऐसे खुल जाते हैं| ऐसे ही डायबिटीज पेशेंट्स भी आते हैं |

तो डायबिटीज पेशेंट्स को भी सिखाया जाता है | इसका मतलब एक्चुअली सिर्फ़ ये ही नहीं है कि बेठो ध्यान में और हम कहीं और हैं, ऐसे नहीं है | उस खुदा से वाइब्रेशन लेना, और उसमें सिखाया जाता है कैसे अपनी पैंक्रियास पर अपने वाइब्रेशन डालो, और कैसे उसे कमांड दो, कैसे उसे ऑडियो suggestion दो, जैसे इन्सुलिन सीक्रेट हो रहा है | तो इससे कई रिकवरी होती है |

रुपेश कईवर्त : जी.. जी.. और कई बार मेडिकल साइंस इन चीजों को नहीं मानती है | ब्लॉकेज के लिए ऑपरेशन की ज़रूरत पड़ती ही पड़ती है | लेकिन ये भी एक चमत्कार ही है कि हम मैडिटेशन करके या खुदा से बातें करते हैं वो वाइब्रेशन लेते हैं और जो भी आपने ऑडियो suggestion की बात कही, उन सबसे भी चीज़ें ठीक हो सकती हैं |

तो जो इस तरह की समस्याओं से ग्रहस्त हैं  उनके लिए डॉ. हिना आप क्या कहेंगी, चाहें वो शारीरिक तकलीफ़ हो या मानसिक तकलीफ़ हो | वो किस तरह से ईश्वर का ध्यान किया करें ताकि उन्हें भी इस तकलीफ़ में मदद मिले |

डॉ. हिना : वो अकेले तो नहीं कर पाएंगे, पहले टेक्निक्स(Techniques) सीखनी पड़ेंगी | वो कहीं नज़दीक के ब्रह्माकुमारिस सेंटर पर जा सकते हैं और जो राजयोग मैडिटेशन की हम बात कर रहे हैं तो उसको साथ में इन्क्लूड करना है | ऐसा नहीं कहेंगे हम कि मेडिसिन्स बंद कर दो, ये एक बुद्धिमानी की बात नहीं होगी |

आप वो सब करते इसको इन्क्लूड कीजिए | और फ़िर आप देखेंगे, कैसे चमत्कार होता है, कैसे हीलिंग होती है | जैसे हमको 8 साल पहले थाइरोइड हो गया था और हमारे लेवेल्स बहुत आगे हो गये थे, फ़िर हमने भी मैडिटेशन किया और कैसे उसे कंट्रोल में लेकर आए | हमको मैडिटेशन चालू है पर बहुत कम डोस पर चालू है |

हम ओपेन्ली इस बात को बता रहे हैं कि कैसे हमने मैडिटेशन से इसको कंट्रोल किया | इनफैक्ट, कभी कभी हमें माइग्रेन के हेडएक्स होते हैं | माइग्रेन के हेडएक्स में भी किसी को पता नहीं चलता है कि हमें हेडएक्स हो रहा है | हम हंसते ही रहते हैं उसके साथ |

कई लोग कहते हैं कि आप कैसे सहन कर लेते हो ऐसा, हमको तो लगता है कि कोई हमारे सर पर हाथ रखे, कोई हमें प्यार करे इतना हेडएक होता है | लेकिन हम जहाँ पर काम करते हैं, वहाँ पर कहते हैं कि मैडम आपको ऐसे कैसे …. लोगों को चमत्कार होता है | मैडिटेशन करते हैं तो tolerant पॉवर बढ़ जाती है | जल्दी ठीक होता है |

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. आप मैडिटेशन करती हैं तो उसका प्रभाव आप खुद ही देखती हैं अपने जीवन में और  साथ ही वो परिवर्तन अनुभव करती हैं और इससे दर्शकों को भी बहुत लाभ मिलेगा |

ये एक जो जीवन शैली ही परिवर्तित हो गई है, तो उसके कारण भी लगता है कि बीमारियाँ बढ़ रही हैं, तो आप हमारे दर्शकों को क्या टिप्स देना चाहेंगी कि ये तीन सूत्र या ये 5 सूत्र आप अपने जीवन में अपना लो तो कभी भी अस्वस्थ नहीं होंगे या अगर होंगे भी तो जल्दी ही ठीक हो जायेंगे |

डॉ. हिना :  हमारी सारी समस्या तब चालू होती है जब हम दूसरों को देखते हैं, या कोई expectation रखते हैं, या दूसरों की चीजों में दखल डालते हैं, तो दुखी हो जाते हैं | तो एक क्लास हुई थी बीच में हमारी, जो फ्रेज (लोकोक्ति) है –

नोट माय सर्किलस नोट माय मंकीस, इसका मतलब है नन ऑफ़ माय बिसनेस | तो ये एक चीज़ हम अपने जीवन में अपना सकते हैं कि दूसरों को देख कर दुखी ना हो, क्योंकि दुखी होंगे तो ज़रूर बीमार होंगे जल्दी | एक रिसर्च हुई थी बीच में, उसमे कहा था कि अगर तीन महीने आप किसी दर्द को पकड़कर रखते हो तो definitely कुछ महीनों में आपको कोई बीमारी आयेगी ज़रूर |

ये एक रिसर्च हुई थी बीच में | तो ये याद रखें नोट माय सर्कल्स नोट माय मंकीस | दूसरा, एक हैप्पीनेस day था ना 20th मार्च को, इंटरनेशनल हैप्पीनेस डे, तो उसमे एक हमने स्पिरिचुअल एक्टिविटी करवाई थी | उसमे से एक बहुत अच्छी है जिसे मैं मेंशन करूंगी |

एक भाई ने कहा मैं जीवन में याद रखूंगा मस्त रहो मस्ती में, आग लगे बस्ती में | और इसका मतलब है कि मैं खुश रहूँगा चाहे जीवन में कुछ भी हो, तो ये भी एक चीज़ याद रखे जीवन में | तीसरी बात, जीवन में जो भी परिस्थिति आई है वो पास हो जाएगी | this shall also pass, इसको याद रखते हुए हम आगे बढ़ें |

रुपेश कईवर्त : मतलब जीवन इससे बहुत खुशहाल रहेगा और अपनी तकलीफों से मुक्त होते जायेंगे | मूल रूप से देखा जाए तो मन से व्यक्ति ज़्यादा बीमार हो जाता है, और डॉक्टर्स भी आजकल ये कहते हैं कि psychosomatic है, जो भी डिजीज हैं बहुत ज़्यादा | तो कैसे इस चीज़ के लिए भी आप कहेंगी कि जो मन जो है तन्दुरुस्त रहे हमेशा, क्योंकि कई बार हम खुश रहना चाहते हैं पर रह नहीं पाते |

डॉ. हिना : क्योंकि हम ख़ुशी साधनों में ढूंढते हैं, हम थिएटर में जाकर ढूंढते हैं, या हम वस्तुओं में ढूंढते हैं, और फ़िर दुखी होते हैं जब हमें नहीं मिलती है | लेकिन हम कहते हैं ना, खुदा जो है वो सागर है, जब आप उससे जुड़ेंगे तो आपको सब कुछ मिल जायेगा | तो इसीलिए हम बार-बार कह रहे हैं कि ये जो मैडिटेशन है ये वो तरीका है जो आपको हमेशा खुश रखेगा |

और जीवन में acceptance, एक होता है स्वीकार करना | कई ऐसी चीज़ें हमारे जीवन में आएंगी जिन्हें हम बदल नहीं सकते हैं, तो इन्सान इस चीज़ को समझता ही नहीं और फ़िर दुखी होते जाता है | इसलिए ये acceptance, इसे हमें जीवन में कहीं ना कहीं समझना ही पड़ेगा और जितना हम स्वीकार करेंगे उतना हम खुश रहेंगे |

रुपेश कईवर्त : जी.. जी.. हम स्वीकार नहीं करना चाहते कुछ चीजों को और उसके कारण तकलीफ़ बढती जाती है हमारी | मैडिटेशन में बार-बार आप ज़िक्र कर रही हैं कि हम खुदा से जुड़ जाते हैं तो क्या आपको ऐसा कुछ सुंदर अनुभव है कि कई बार आपने कहा कि हड़बड़ी वाली स्थिति रहती है हॉस्पिटल में, कोई ऐसा केस था या ऐसी कोई परिस्थिति थी जिसमे आपको लगा कि बहुत ही क्रिटिकल सिचुएशन है और खुदा ने मेरी मदद की |

डॉ. हिना : सबसे ज़्यादा क्रिटिकल जो होता है वो हमारे संस्कारों की टक्कर होती है | जब हम ऐसी सिचुएशन में काम करते हैं और जो हम आर्डर करेंगे वो नहीं करेगा… अब हम खुदको 9 साल पहले देखते हैं तो हमको बहुत गुस्सा आता था कि हर चीज़ बिलकुल पेरफ़ेक्ट होनी चाहिए, हमने कह दिया तो ये एकदम ऐसे होना चाहिए | और अगर वो नहीं हुआ तो हमें बहुत गुस्सा आता था |

लेकिन फ़िर जो हमें उसकी मदद मिली, तो हम लोगों को समझने लगे | हम समझने लगे कि वो अपनी कैपेसिटी से काम कर रहे हैं और अगर हम चिढचिढे या दुखी हो गये तो पेशेंट सफ़र करेगा | तो वो एक अंडरस्टैंडिंग आ गई, नहीं तो वो होता है ना कि मैं एक डॉक्टर हूँ और ये एक स्टाफ़ है ! और फ़िर वो गुस्सा आना, उस गुस्से को इतना कंट्रोल में कर लिया |

जो स्वभाव-संस्कार की टक्कर होती है, उसी से पेशेंट ज़्यादा सफ़र करता है एक्चुअली | कोई रिलेटिव कुछ बोल देगा तो.. तो उससे ये सारी चीज़ें समझ में आ गईं | तो ये चीज़ बहुत हेल्प करती है जब हम क्रिटिकल केयर में काम करते हैं, और कोई पेशेंट सीरियस होता है तो उनको देखते हैं तो … और दूसरी चीज़ हमको लगता है कि दूसरों को सुनना बहुत इम्पोर्टेन्ट है |

complication तब होते हैं जब हम दूसरों को सुनते नहीं हैं | यहाँ पर एक कोर्स करवाते हैं VIHASA, वैल्यूज इन healthcare एंड स्पिरिचुअल एप्रोच | इसमें हमने एक एक्सरसाइज करवाई थी, compassionate listening, सामने वाले को सुनना | जो आजकल लोगों के पास टाइम ही नहीं है | तो वो चीज़ हमने सीखी कि कैसे उनके दुःख को समझें ! उनको क्या देना है मुझे फ़िर, ये हेल्प करते हैं..

रुपेश कईवर्त : क्या लगता है आपको कि ये जो Qualities हैं ये सचमुच खुदा ही भरता जा रहा है मुझमें, मैं पहले तो ऐसी नहीं थी पर अब पूरी तरह परिवर्तित होती जा रही हूँ |

डॉ. हिना : जी ज़रूर, ये उसी की मदद है जो हम इतना परिवर्तित हो गए, हममे  या क्रिस्चियन या सिक्ख..

रुपेश कईवर्त :  क्या आपके ऐसे भी परिचय में रहे हैं जो विदेशों में भी हैं और वहाँ पर भी ब्रह्माकुमारिस की सेवाएँ हो रही हों ?

डॉ. हिना : जी ज़रूर, अभी दिसम्बर में ही एक रिट्रीट थी, माउंट आबू में, IPI रिट्रीट और मुस्लिम्स कंट्री से लोग यहाँ आए थे मैडिटेशन सीखने के लिए | उसमे सब अरब्स थे, मुस्लिम बहनें थीं, और भाई भी थे मुस्लिम्स उसमे | और जब हम उनसे मिले तो हमको इतना अच्छा लगा |

और वो पूरा हिजाब.. वो सब पहन कर घूम रहे थे | लेकिन इतनी छोटी जगह है ये माउंट आबू,  और ये इतने सम्पन्न देशों से आए थे, उनको कोई कमी नहीं है पैसों की, लेकिन जो शांति एक्सपीरियंस की उन्होंने यहाँ, और इतने खुश होकर गए |

और लास्ट डे(अंतिम दिन) वो सब रो रहे थे, और अभी भी वो वहाँ सेंटर पर कनेक्टेड(जुड़े हुए) हैं | तो ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ इंडिया में ही है, बल्कि कई गल्फ़ कन्ट्रीज में, कुवैत, दुबई, अबुदाबी, सब जगह पर लोग इसे पहचान चुके हैं …

रुपेश कईवर्त : जी.. जी.. तो वहाँ मुस्लिम भाई-बहन सेंटरस पर आते हैं, और मैडिटेशन करते हैं ?

डॉ. हिना : वो सेंटरस पर आते हैं मैडिटेशन करते हैं और वापिस घर चले जाते हैं, तो देखिये बाहर के लोग कितना फ़ायदा उठा रहे हैं !

रुपेश कईवर्त : तो देश वाले भी ज़रूर फ़ायदा उठाएं … चलिए यही शुभ-कामना और मंगल कामना है, ब्रह्माकुमारिस तो सचमुच सबको खुदा का निमंत्रण देती हैं, सभी आयें और जिस शांति की तलाश थी वो शांति को प्राप्त करें, उस खुदा तक भी पहुंचे जिसे वे पाना चाहते हैं,

चलिए डॉ. हिना आपका एक बार पुनः, आपने इतने प्यार से हमारे दर्शकों के सामने इतनी प्यारी-प्यारी चीज़ें रखी हैं, ज़रूर अपने जीवन में लायेंगे और अपने जीवन को खुशहाल बनायेंगे, ऐसी हम कामना रखते हैं | यहाँ पर आने के लिए, सुंदर अनुभव के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया |

डॉ. हिना : जी.. थैंक यू | ओम शांति |

रुपेश कईवर्त : मित्रों, बचपन में हम सभी एक गीत सुना करते थे, आप सभी ने सुना होगा कि ना हिन्दू बनेगा, ना मुस्लमान बनेगा, इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा | सचमुच, इंसानियत का धर्म बहुत सुंदर धर्म है | जहाँ केवल प्रेम ही प्रेम है, आनंद ही आनंद है, अपनत्व ही अपनत्व है |

लेकिन ये तब ही होता है जब अध्यात्म हमारे जीवन में हो, सभी को हम रूह की नज़र से देखें, आत्मा की नज़र से देखें, कि हम सभी आपस में भाई भाई हैं | जैसे हम कहा भी करते थे, हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, आपस में हैं भाई भाई |

तो ये नाता किस रूप में है भाई भाई का ! ये एक नाता ही है ना जो हमें एक सूत्र में बांधता है, और ये तब ही सम्भव हो पाता है जब हम खुदा को भी सही रूप में जानते हैं, परमात्मा को सही रूप में जानते हैं कि हम उस एक मालिक के बन्दे हैं |

उस एक पिता की सन्तान हैं तो फ़िर आपस में क्यों मनमुटाव, आपस में क्यों लड़ाई झगड़े | क्यों ना हम उसे जानकर के आपस में प्रेम-शांति और सौहार्द से रहें | ना केवल बाहरी सुकून, लेकिन भीतर का भी जो  सुकून और शांति है, वो सचमुच इस अध्यात्म से और इस ध्यान से हमें प्राप्त होता है | तो क्यों ना इसकी ओर बढ़ें और जीवन को शांति से संपन्न करें और समाज में भी शांति और खुशहाली का माहौल बनाएं | बने रहिएगा समाधान कार्यक्रम में, कल आपसे पुनः इसी वक़्त मुलाकात होगी, नमस्कार |

 

 

 

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