Samadhan Episode – 000802 Health and Spirituality
CONTENTS :
– डॉ. सचिन
- सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए मेडिकेशन के साथ मैडिटेशन का यूज़ करना क्यों ज़रुरी है ?
- कैसे हम अध्यात्म को विज्ञान की कसौटी में कसें ?
- बाह्यजगत और अंतर्जगत में बैलेंस से सम्पूर्ण सुख-शांति-समृद्धि की प्राप्ति |
- लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन और लॉ ऑफ़ फैथ के द्वारा बीमारियों को दूर रखने का एविडेंस |
- स्वास्थ्य पर संकल्पों और योग का प्रयोग किस प्रकार से किया जा सकता है ?
- क्या हम मात्र संकल्पों द्वारा किसी भी आत्मा को अपना मेसेज दे सकते हैं ?
- क्या हमारे संकल्पों के वाइब्रेशन हमारे आस-पास की सभी चीजों को एफेक्ट करते हैं ?
- स्वस्थ जीवन के लिए किस तरह की दिनचर्या होनी चाहिए ?
रुपेश कईवर्त : नमस्कार, आदाब सत श्री अकाल ! मित्रों एक बार पुनः आप सभी का स्वागत है समाधान की एक नई श्रंखला, कर एक नई समस्या का समाधान, हमारे साथ हैं एक खास मेहमान | मित्रों, मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ये बात कही थी कि विज्ञान धर्म के बिना लंगड़ा है और धर्म विज्ञान के बिना अँधा है | दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और जब दोनों एक साथ मिलकर के कार्य करेंगे तबही समाज को बेहतर बनाया जा सकता है, सुखमय बनाया जा सकता है | और आज के दौर में हम ये महसूस भी करते हैं कि मेडिकेशन के साथ मैडिटेशन की भी ज़रूरत है | और इसीलिए डॉ सचिनजी कल हमारे साथ थे और चर्चा कर रहे थे कि कैसे अध्यात्म की गहराई को उन्होंने अनुभव किया है | ना केवल अध्यात्म की गहराई को, लेकिन उसके साथ साथ विज्ञान की कसौटी में भी कसा है | ताकि सत्य के साथ साथ यथार्थ रूप से समझा जा सके और अनुभव किया जा सके | आज भी हमारे साथ बने हुए हैं, आइये, उनका अभिनन्दन करते हैं कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं | डॉ सचिन, पुनः आपका अभिनंदन है |
कल जो हमारी चर्चा हो रही थी बहुत ही गहन थी, और सचमुच हमे लगा कि सत्य की ओर, अनुभूति की ओर बढ़ें, और हमारे सभी दर्शकों को भी ऐसा प्रतीत हो | आज मैं जानना चाहूँगा आपसे कि सदियों से ये बात चलती रही है कि विज्ञान और अध्यात्म, धर्म दोनों का सम्बन्ध बड़ा गहन है | लेकिन देखा ये जाता है कि आज के परिदृश्य में ये दोनो अलग अलग हो गए हैं | क्यों ऐसा लगता है आपको कि इनका साथ होना ज़रुरी है, जो आप महसूस करते हैं !
डॉ. सचिन : जी, ये जो संघर्ष है धर्म और विज्ञान का, इसे गहराई से समझना बहुत ज़रुरी है क्योंकि मनुष्य की जो खोज रही है वो हमेशा सत्य की रही है | एक है पूर्व के देश, एक है पाश्चात्य के देश, दोनों जगह ये खोज चालू हुई | जो पाश्चात्य देश थे उसने ये खोज बाहर चालू की और जो पूर्व के जो देश हैं उन्होंने ये खोज आन्तरिक में चालू की | और लक्ष्य दोनों का एक ही था, कि परमसत्य तक पहुंचना है | परमसुख क्या है, उसको जानना है, महसूस करना है, अनुभव करना है | परमानन्द का अनुभव करना है | तो ये दोनों ही खोजें अगर हम कहें कि अलग अलग दिशाओं में चालू हुईं | तो पहले हमने कहा पाश्चात्य जगत, उसने खोज की और ये लोग बाहर गए | बाहर खोजते खोजते इन्होंने विज्ञान को पाया | जो पूर्व के देश थे, वे आतंरिक गए, अपने अन्तस्थ गए | उन्होंने ऐसे तत्व को पाया जो व्यक्त नहीं है, प्रगट नहीं है और अव्यक्त है | और कहा कि ये जो तत्व है ये अपरिवर्तनशील है, उसको फ़िर आत्मा कहा और परमात्मा के साथ जोड़ा | फ़िर ये जो देश है हमारा देश, ये अंदर तक गए इन्होंने आत्मा को जाना और उन्होंने कहा कि अनुभव ही सबकुछ है | और जो लोग बाहर को गए, उन्होंने कहा कि हमे पहले प्रमाण चाहिए उसके बाद ही जो अनुभव करना है वो करेंगे | तो वहाँ फ़िर विज्ञान का आविष्कार हुआ और बहुत सारे चमत्कार आज हमारे सामने हैं | दोनों ही खोज में कहीं ना कहीं कुछ छूट गया है | जो लोग बाहर को गए उन्होंने विज्ञान को तो निर्माण कर दिया परन्तु आतंरिक जो सुख है, जो शांति है, भाईचारा है, प्रेम है वो कहीं ना कहीं छूट गया | और व्यक्ति इतना बाह्यमुखी हो गया कि बाहर के सुख, साधन, समृद्धि, इसके पीछे भाग रहा है, एक होड़ लगी है जैसे कि | क्या पाना है उसका उसे पता नहीं, पर बस भागे जा रहा है, भागे जा रहा है … ये साइंस ने बहुत सारी चीज़ें हमारे सामने स्पष्ट कर दी हैं |
रुपेश कईवर्त : मतलब वस्तुओं में उन्होंने सुख को तलाशा !
डॉ. सचिन : वस्तुओं में उन्होंने सुखों को पाया परन्तु ये पाया कि वहाँ के भी कुछ दार्शनिक लोग, कुछ रहस्यवादी लोग, उन्होंने भी ये कहा कि नहीं इसमें वो नहीं प्राप्त हो सकता ! अब जो धर्म वाले थे, जिन्होंने धर्म की खोज की, अपरिवर्तनशील तत्व को ही सबकुछ माना, उन्होंने क्या किया कि जब अनुभव कर लिया तो ये नहीं ज़रुरी समझा कि इसे विज्ञान की कसौटी पर उतारा जाए | इस तरह से उन्होंने विज्ञान को थोड़ा एक तरफ़ कर दिया | अब हुआ क्या इसके वजह से कि जो विज्ञान की तरफ़ गए उसका परिणाम ऐसा हुआ कि बहुत लौकिकता, मटेरियलिस्टिक लाइफस्टाइल आ गई और कहीं कहीं तो ऐसे आविष्कार हो गए कि विनाश हो सकता है इस सृष्टि का | और धर्म के कारण क्या हुआ, है तो बहुत अच्छा जिसे हम स्वयं अनुभव कर सकते हैं परन्तु उसमे अन्धविश्वास आने लग गया, उसमे मतान्द्ता आने लगी, उसमे अतिवाद आने लगा, उसमे आतंक जैसे बहुत सारी चीज़ें शामिल होने लगीं.. जहाँ पर लोग कट्टरवादी बन गए क्योंकि जहाँ पर इतने सारे लोग, धर्म, पन्त, हरेक कहता हैं कि मैं ही सबसे अच्छा हूँ, हमारा ही धर्म सबसे अच्छा है | यही एक संघर्ष चालू है | ऐसा समय सृष्टि पर था जब ये दोनों का ही समन्वय था और वो एक समय ऐसा था कि जहाँ पर सबसे अधिक सृष्टि सुंदर थी | एक स्वर्णिम काल था जहाँ पर इन दोनों की बहुत अच्छी सी समरसता थी परन्तु वो काल समाप्त हो और उसके बाद में ये संघर्ष चालू हुआ | तो आज जैसे आपने पूछा कि क्या ये दोनों एक साथ आ सकते हैं ! अगर आ जाएँ तो ऐसी सृष्टि का निर्माण हो सकता है कि मनुष्य ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी | एक ऐसी सृष्टि जहाँ पर धर्म भी है और विज्ञान भी है, विवेक भी जुड़ा हुआ है | जहाँ एक तरफ़ रीज़न है, लॉजिक है तो उसके साथ फ़ीलिंग, इमोशन भी है | ये सारी चीज़ें हैं जैसा कि हमने कहा कि ये दोनों ही चीज़ें बहुत अच्छी हैं परन्तु एक-दूजे के बिना दोनों ही अपूर्ण है | दोनों को ही एक दूसरे का सहारा चाहिए | एक तरफ़ साधना है एक तरफ़ साधन है, एक तरफ़ आंतरिक खोज है एक तरफ़ बाह्य खोज है | तो जब ये दोनों खोज मिल जाये तो मनुष्य अपनी उस परमावस्था, पराकाष्ठा तक पहुँच सकता है, सम्पूर्ण सुख, शांति, समृद्धि की |
रुपेश कईवर्त : आज इसकी बात होती है, चर्चा तो होती रहती है कि मेडिकेशन के साथ साथ मैडिटेशन भी ज़रुरी है, आप इसे कितना महत्व देते हैं और साथ ही क्या इसे अपने पेशेंट्स पर भी अप्लाई करके देखते हैं ?
डॉ. सचिन : जी.. पहले तो हमे ये बात समझना है कि आज जो इतनी सारी बीमारियाँ हैं उनका कारण क्या है ! एक तो है कि हमारे सामने मरीज़ है हमने उसको दवाई दे दी और वो चला गया | पर इतने से नहीं होता है | जब तक उस कारण को नहीं ढूंढते उस बीमारी के तब तक हम उस बीमारी को भी नहीं ठीक कर सकते | अगर देखा जाए आज के परिवेश में इतने सारे कारण हैं कि जिस तरह हमने कहा कि विज्ञान की वजह से हम दौड़ रहे हैं भाग रहे हैं कितनी आपाधापी का ये जीवन है कि जिसमे व्यक्ति को रुकने तक का समय नहीं है | अपने आपको देखने तक के लिए समय नहीं है | इस भागदौड़ वाले जीवन में जिसे हम कहते हैं हरी-वरी-करी का जीवन है | हरी है, वरी है स्ट्रेस से भरा हुआ चित्त है मन है और भोजन उसका जिस तरह से है | ये सारी चीज़ें जो हो गई हैं उसके वजह से बहुत सारी बीमारियों ने जन्म लिया है | वो तो हम मानते हैं कि बैक्टीरिया, वायरस इन सबके वजह से बीमारियाँ होती हैं परन्तु ये सारी चीज़ें भी इतनी ही ज़रुरी हैं | इस वजह से केवल मेडिकेशन काम नहीं करेगा, उसमे हमे साथ साथ मैडिटेशन भी जोड़ना पड़ेगा | और ये मैडिटेशन है क्या ! मैडिटेशन कोई ऐसी क्रिया नहीं है जिसे हम जंगल में जाकर करें या ऐसी कोई बात या साधना नहीं है जिसे करना ही बहुत असम्भव हो जाए, इम्प्रेक्टिकल हो जाए, ऐसी वाली बात नहीं है | जहाँ आप हैं, जिस अवस्था में आप हैं, जिस परिस्थिति में आप हैं, जहाँ आप रहते हों, किसी भी उम्र के हो, सबके लिए जैसे ये प्राणदान है | और ये जब तक हम नहीं करेंगे, तबतक मेडिकेशन भी काम नहीं करेगा | ये सुना होगा दो रूल होते हैं साइंस में, एक है लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन जिसकी काफ़ी चर्चा है, दूसरा है लॉ ऑफ़ फैथ | कुछ चीज़ें बहुत काम करती हैं | अब ये मैडिटेशन जो है वो दोनों ही चीज़ों को एनफोर्स करता है | दोनों ही चीज़ों को … दोनों ही साइंस के लॉ हैं | और ये दोंनो ही चीज़ों को मैडिटेशन एनफोर्स करता है, कि इस लॉ से .. जैसे एक व्यक्ति है, इतना तनावग्रस्त है और उसकी सुगर बढ़ी हुई है | अब हम सुगर की दवाई बढ़ा सकते हैं, इन्सुलिन चालू कर सकते हैं परन्तु उसके बाद भी ज़रुरी नहीं है कि उसकी सुगर कम हो जाए | जब तक तनावग्रस्त उसका मन है, चित्त है जब तक इससे वो शांत नहीं हो जाता है, जैसे वो ध्यान करने की कोशिश चालू करता है .. जैसे मैंने कहा लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन, तो उसी तरह के कई संकल्प, विचार जो इस सृष्टि में, ब्रह्माण्ड में हैं तो वो उनको आकर्षित करता है | और धीरे धीरे उसका विश्वास भी बढ़ जाता है, वो दवाईयों पर भी, डॉक्टर पर भी, और इस बात पर भी कि मैं ये जो दवाई ले रहा हूँ या जो मैं ध्यान की प्रोसेस कर रहा हूँ इससे मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगा | इससे दोनों तरफ़ से उसको फ़ायदा होता है |
रुपेश कईवर्त : तो क्या यदि जब ध्यान करते हैं तो ध्यान के माध्यम से पूरी तरह से अपनी बीमारियों को .. यदि वो बीमार है तो, बीमारियों को ठीक कर सकते हैं .. यदि बीमार नहीं है तो हमेशा निरोगी रह सकते हैं ?
डॉ. सचिन : बिलकुल, ऐसा कर सकते हैं | जैसा कि हमने कहा कि मैडिटेशन जो है वो ऐसी तकनीक है जो सबसे पहले आपको अपने साथ जोड़ती है, दूसरा परमात्मा के साथ जोड़ती है, तीसरा ये जो प्रकृति है जिससे हम दूर चले गए .. बहुत सारी बीमारियाँ इसलिए भी हैं क्योंकि हम प्रकृति से दूर चले गए | इन तीनो ही चीज़ों के साथ मैडिटेशन आपको जोड़ता है | तो जैसे ही हम मैडिटेशन करना चालू करते हैं वैसे वैसे धीरे धीरे, हमने अपने अनुभवों से देखा कि सारे मरीज, जिनको हमने ये बताया, ये सिखाया, या हमारी जो ब्रह्माकुमारीज बहनें हैं उनके पास भेजा, वहाँ से ये लोग वो सीखे | उन सभी के हमने ये परिणाम देखे कि जिनका बी.पी. कंट्रोल में नहीं आ रहा था, वो बी.पी. कंट्रोल हो गया, सुगर कंट्रोल में आ गई | कई सारे ऐसे मरीज़ जो पैरालिसिस वाले मरीज़ हैं.. पैरालिसिस वाले जो मरीज़ हैं उनका पहले ही आत्मविश्वास कम हो जाता है | तो इस मैडिटेशन की वजह से आत्मविश्वास बढ़ता है | कई सारे मरीज़ हमको वहाँ माउंट में ऊपर .. ऐसे cases आते हैं, एटेम्पटिंग सुसाइड, जीवन से इतने निराश हो जाते हैं कि ज़हर ले लेते हैं | अब उसके बाद क्या ! अभी हमतो दवाई देकर उनकी छुट्टी कर देंगे, वो चला जाएगा घर | परन्तु वापिस वैसा ही करेगा | वहाँ जब हम उसको मैडिटेशन सिखाते हैं तो उसका आत्मबल बढ़ता है, शक्ति बढती है | अब उसे उस तरह की बीमारी नहीं है .. बी.पी., सुगर | परन्तु बीमारी ना हो, उसका भी जैसे एक इंतजाम कर दिया जाता है, मैडिटेशन की वजह से | बहुत सारे ऐसे मरीज़ हैं, डिप्रेशन के मरीज़, एंग्जायटी के मरीज़ | इन सबके लिए भी जैसे एक बहुत सुंदर उपाय है | तो इससे हम निरोगी रह भी सकते हैं और कोई बीमारी आएगी भी नहीं | हमारी इम्युनिटी पॉवर भी बढ़ेगी, और दूसरा अगर हमको बीमारी है, तो हम इसके द्वारा क्योंकि हम इसके द्वारा उनका हमारे ऊपर असर है उसको भी कम कर सकते हैं और उस बीमारी से मुक्त भी हो सकते हैं ये भी हमने देखा |
रुपेश कईवर्त : चलिए मतलब दोनों प्रकार से ये लाभप्रद है, और ये राजयोग मैडिटेशन की जो आप बात कर रहे हैं, ये ब्रह्माकुमारीज सेवाकेंद्र में सीखा जा सकता है जाकर के | आप इंटेनसिव केयर में बहुत रहे हैं और आपके पास ऐसे बहुत क्रिटिकल cases आते रहे हैं और आते रहेंगे लगता है क्योंकि ऐसी समाज की स्थिति हो चुकी है.. आपको कभी ऐसा रहा कि बहुत ही क्रिटिकल केस आया है और आपने उसे अपने मैडिटेशन से, अपने ध्यान से बिलकुल ठीक किया हो, बिलकुल cure किया हो ! ऐसा कोई चमत्कारिक सा अनुभव आपके पास हो तो ..
डॉ. सचिन : चमत्कार तो नहीं कहेंगे पर ऐसे बहुत सारे मरीज़ हमारे पास आते हैं .. हमने यहाँ पर संकल्पों पर काफ़ी प्रयोग किए हैं, संकल्पों का प्रयोग और मैडिटेशन का प्रयोग दोनों, जिसे हम कहते हैं योग के प्रयोग और संकल्पों के प्रयोग | जैसे हमारे पास बहुत सारे मरीज़ आते हैं वो इतने क्रिटिकल होते हैं कि उनको वेंटिलेटर पर डाला जाता है | बहुत सारे एंटीबायोटिक्स, बहुत सारे इंजेक्शन, आइनोट्रोपिक सपोर्ट जिसको कहा जाता है बी.पी. बढ़ाने के लिए इंजेक्शन चालू करते हैं, इन्फेक्शन बहुत ज़्यादा होता है.. सेप्टीसीमिया जिसे कहते हैं, सेप्टिक शॉक जिसे होता है .. ऐसे बहुत सारे क्रिटिकल मरीज़ आते ही रहते हैं | तो ऐसा अनुभव है हमको याद है कि सुबह का समय था, हम मैडिटेशन कर रहे थे ऊपर पांडव भवन में और लगभग चार बजे के आसपास कोई मरीज़ आया तो हमको बुलाया गया, हम तो मैडिटेशन कर रहे थे.. हम गए, उस मरीज़ को साँस लेने में काफ़ी दिक्कत हो रही थी, कोई टूरिस्ट थे जो आए थे, उनको वेंटिलेटर पर डालना पड़ा | वेंटिलेटर पर डाला उसके बाद हमने देखा कि हमारी स्थिति जो थी उस समय, जब हम ये सब कर रहे थे क्योंकि हम मैडिटेशन से उठ कर ही आए थे बीच में से ही | तो वो सारा मैडिटेशन की प्रोसेस अंदर ही अंदर चल रही है, और ऊपर से सबकुछ कर रहे, जो पेशेंट के लिए किया जाता है | और वो करके हम निकल गए वहाँ से, फ़िर जब हम राउंड के लिए गए.. फ़िर वापिस हम जाकर बेठ गए, जहाँ से हम आए थे.. तब हमने संकल्प के कुछ प्रयोग किये मैडिटेशन में ही कि जैसे उस पेशेंट के लिए खास जिसको मैं अभी अभी देखकर आया हूँ, उसको मैं शक्तिशाली वाइब्रेशन दे रहा हूँ | उसके लंग्स (फेफड़े) को वाइब्रेशन दे रहा हूँ, क्योंकि पूरे लंग्स में पानी भर गया है | LVF जिसे हम कहते हैं लेफ़्ट वेंट्रिकल फेलियर और ई.सी.जी. में भी चेंज थे तो हार्ट का भी इशू हो सकता था | बहुत सारी चीज़ें थी उस वक़्त | फ़िर हमने उसको सकाश दी, सकाश उसे कहते हैं मतलब वाइब्रेशन देना | पॉजिटिव वाइब्रेशन, पावरफुल वाइब्रेशन, हीलिंग के वाइब्रेशन दिए | और जब हम नौ बजे आए राउंड के लिए, जब जो रूटीन होता है | तो पेशेंट को देखा fully conscious है, ट्यूब तो है अभी भी पर सारे रिलेटिव्स आ गए, एकदम हमारे चरणों में गिरने लगे | हमे लगा कि ये कौन हैं, तो कहने लगे डॉक्टर साहब आप तो भगवान हो, हमने कहा भगवान की बात नहीं है .. पेशेंट बहुत अच्छा था | और फ़िर दो दिन में ट्यूब हट गया, वेंटिलेटर से आउट हो गया, पेशेंट रूम में शिफ्ट हुआ और चार-पांच दिन बाद डिस्चार्ज हो गया | तो ये एक ऐसा एक्सपेरिमेंट, दूसरा एक्सपेरिमेंट भी हम बताएंगे | हमारे पास एक छोटी सी कन्या थी, जोकि एक्चुअली पेडियाट्रिक्स में एडमिट थी .. हमतो एडल्ट देखते हैं, पेडियाट्रिक्स हम नहीं देखते हैं, मेडिकल डिपार्टमेंट हम देखते हैं | वो थी बारह साल की | उसको पंद्रह दिन से रोज़ बुखार आ रहा था | आखिर में उसके पिताजी हमारे पास आए, उन्होंने कहा कि आप देखो ! हमने कहा कि हम कैसे देख सकते ये तो पेडियेट्रिक्स में है | तो हमे फ़िर पेडियेट्रिसियन का कॉल आया कि इस पेशेंट को आप अपने अंडर लेलो | फ़िर हमने बहुत सारी जांचे कीं और जो भी ट्रीटमेंट चालू करना था हमने कर दिया | उसका बुखार खतम हो गया और वो चली गई | अब जाने के बाद हमको थोड़ा सा डाउट था कि जो हमने इसको ट्रीटमेंट दिया कहीं फ़िर से बुखार आ गया तो ! तो शायद कुछ गड़बड़ तो नहीं ! तो वो पेशेंट तो चली गई और हमने उसे कहा था कि सात दिन बाद आ जाना | हम इंटरेस्टेड थे कि क्या है ! फ़िर वो आई नहीं .. 15 दिन नहीं आई, एक महिना नहीं आई | जो सुबह का मैडिटेशन होता है उसमे एक ऐसा संकल्प किया कि ये जो आत्मा है, जहाँ कहीं भी हो दुनिया में, वो आज सुबह हमारे OPD में 12 बजे से पहले आ जाए | चाहे कहीं पर भी हो ! ये संकल्प करके छोड़ दिया | और हमने पाया कि जब 12 बजने में पांच दस मिनट थे तो वो लड़की एकदम से आई और हमको पकड़ लिया | फ़िर बोली भईया !! वो हमको भईया बोलती थी, छोटी सी थी | हमने उसको कहा कि तुम कहाँ थी ? तो उसने बोला कि मैं ठीक हो गई थी इसलिए नहीं आई | तो संकल्प जैसा कि हमने कहा लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन कहता है कि जैसा संकल्प आप करोगे वैसा ही संकल्प अट्रेक्ट करेगा | और इसमें इतनी पॉवर है कि थॉट वेव के वाइब्रेशन से आप किसी भी आत्मा को अपना मेसेज दे सकते हो, उसको पुकार सकते हो, बुला सकते हो |
रुपेश कईवर्त : जी..जी.. मतलब इस रूप से इसको मेडिकल साइंस में उसे किया जा सकता है | एक खास बात इस संदर्भ में मैं जानना चाहूँगा ! सूर्य भाईजी भी लगातार हमे बताते रहते हैं, संकल्पों के अभ्यास देते रहते हैं | और हमे भी चमत्कारित अनुभव प्राप्त हुए हैं जैसा आपने अभी सुंदर अनुभव अपनी तरफ़ से रखे .. पानी चार्ज करके पीने का अभ्यास बताते हैं या भोजन जब भी आप करते हो तो उसमे अच्छे विचार दो या लोगों को अच्छे विचार दो | ये जो लोगों को अच्छे विचार दिए जाते हैं .. चाहे मैं परमपवित्र आत्मा हूँ, चाहे मैं मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा हूँ, तो ये विचार देने के बाद जो अच्छे रिजल्ट मिल रहे हैं, इसके पीछे का साइंस क्या हैं ये मैं आपसे जानना चाहूँगा |
डॉ. सचिन : सबसे पहले तो ये समझना है साइंस और रीपिटीशन .. मतलब जो पुनुरुक्ति जो हम करते हैं | जो भी है हमारे विचारों की वजह से है | हमने एक प्रकार का विचार लिया है और उसे बार बार दोहराया है | उसके परिणामस्वरूप हम जो हैं आज हैं | जैसे डॉक्टर कुवैत है फ्रांस में, उन्होंने बहुत एक्सपेरिमेंट किये हैं, वो हर पेशेंट को एक मन्त्र देते थे | जो मरीज़ कहीं से ठीक नहीं होता था, वो उनके पास ठीक होता था | क्या मन्त्र देते थे .. जब भी मरीज़ उनके पास आता था तो वो कहते थे कि ये संकल्प करो कि मैं ठीक हो गया हूँ | ये तो सबको पता है कोई नई बात नहीं है, पर इसके जो परिणाम मिले डॉक्टर कुवैत को वो इतने जबर्दस्त थे | जो भी पेशेंट आता है वो अपने साथ एक नेगेटिव एनर्जी कैरी करता है, एक नेगेटिव एनर्जी .. जैसे मैं बीमार हूँ ! मेरा क्या होगा ! मुझे कौन देखेगा ! ये बीमारी पर इतना खर्चा हो रहा है, ठीक होऊंगा या नहीं ! कितने डॉक्टर बदल लिए, कितने हॉस्पिटल बदल लिए ! ये सबके प्रति एक नकारात्मक भाव है | जैसे ही उन्होंने वो चेंज किया, और एक ही संकल्प में स्थित करवा दिया कि मैं ठीक हो रहा हूँ जिसको कहते हैं लॉ ऑफ़ अफरमेशन (law of affirmation), affirmative स्टेटमेंट | तो ये सारे जो प्रयोग हुए इसके ज़बरदस्त रिजल्ट थे | दूसरा, जैसे जापान में भी डॉक्टर रिमोटोजो हैं, उन्होंने भी एक इतना सुंदर प्रयोग किया पानी पर कि अलग अलग ग्लासेज लिए | उन पानी के ग्लासेज पर अलग अलग शब्द लिखे, कहीं पर लिखा लव (love), कहीं पर लिखा हेट (hate) | फ़िर उसपर जो उनकी मशीन थी उसके बाद उन्होंने उनके वाइब्रेशन को चेक किया | किस तरह की डिजाईन उसपर बनती है | तो देखा कि जहाँ पर लिखा था i hate you, एक जगह लिखा था i love you, तो जहाँ love लिखा था वहाँ बहुत सुंदर डिजाईन बन गया, और जहाँ पर लिखा था hate वहाँ बहुत ही खराब किस्म की डिजाईन बनी | तो उन्होंने ये कहा कि मनुष्य के शरीर के अंदर कितना सारा पानी है, ये एक्सपेरिमेंट यदि शरीर पर किया जाऐ तो ! हमारे शरीर में जो अशुद्धि है वो भी ठीक हो सकती है | जबकि आपको पता होगा डॉक्टर लूथर बरबैंक, उनको विज़ार्ड ऑफ़ हॉर्टिकल्चर कहा जाता है | उन्होंने क्या किया .. स्पाइन का एक झाड़ होता है, कैक्टस आपने देखा होगा ! जो रेगिस्तान में होता है, जिसमे कांटे होते हैं | उन्होंने सात साल तक उस कैक्टस पर प्रयोग किया | कैक्टस पर ऐसा प्रयोग किया कि .. स्पाइनलेस कैक्टस | उसने उस कैक्टस के साथ बात की, उस झाड़ के साथ | एक्चुअली, दिखता है बहुत ही अनसाइंटिफिक, absolutely अनसाइंटिफिक है ये पर he was a great साइंटिस्ट ! और उन्होंने बात की और उसको संकल्प दिए कि ऐसा एक झाड़ हो जाए जिसमें स्पाइनस ही ना हो ! तो सात साल के एक्सपेरिमेंट के बाद में .. आप उसका फ़ोटो भी देख सकते हैं इन्टरनेट पर .. वो बेठे हुए हैं और बाजु में वो कैक्टस है | फर्स्ट स्पाइनलेस कैक्टस | और उसको कहा जाता है फर्स्ट कम्युनिकेशन ऑफ़ ह्यूमन बीइंग विथ प्लांट | अभी ये सब कैसे हुआ ! संकल्प से, थॉट से | ये थॉट जो होता है उसमे वेव्स होती हैं, वाइब्रेशन होते हैं | now, ये थॉट्स उस झाड़ में भी जा सकते हैं | ये थॉट्स उस पानी में भी जा सकते हैं | यदि वो डॉक्टर जिसने कुएं में एक्सपेरिमेंट किया, उसके वो थॉट वेव, जो संकल्प किया वो शरीर में जाते हैं और शरीर ठीक होता है | तो क्या हम ऐसे संकल्प क्रिएट कर सकते हैं, that they can cure us | ऐसा भी हो सकता है | सो नेचर एंड माइंड, इन दोनों का बहुत गहरा कनेक्शन है | जो हमे एक्चुअली .. जैसे यहाँ एक सोफ़ा रखा है, पहले तो साइंस कहता था कि ये जड़ है, पर अब साइंस बदल गया है अब वो कहता है कि ये जड़ नहीं है its a vibrating energy | मतलब ये भी कंटीन्यूअस कम्पन करती हुई ऊर्जा है ये | इसमें वाइब्रेशन आलरेडी चल रहे हैं | अभी इसका वाइब्रेशन और हमारे थॉट्स, हमारे थॉट्स में भी वाइब्रेशन हैं, बहुत सूक्ष्म वाइब्रेशन निरंतर फ़ैल रहे हैं | अगर हम ऐसे थॉट्स करे जो शक्तिशाली हों, पावरफुल हों, then we can influence everything which is around us | चाहे वो पानी हो या कुछ भी हो, जो संकल्प के साथ हम पानी पीते हैं या भोजन खाते हैं या कुछ भी करते हैं, तो वो स्वतः ही सिद्ध होने लगता है | it is like a chemical reaction between thought, nature and circumstances |
रुपेश कईवर्त : चलते चलते मैं सभी दर्शकों के तरफ़ से जानना चाहूँगा कि अपनी लाइफस्टाइल में क्या क्या चीज़े हम लायें ताकि स्वस्थ रहें | यदि अस्वस्थ हैं तो स्वस्थ हो जाएँ और यदि स्वस्थ हैं तो स्वस्थ ही रहें | हमारी दिनचर्या, हमारा लाइफस्टाइल कैसा हो ! चलते चलते आपसे जानना चाहूँगा |
डॉ. सचिन : सबसे पहले तो जैसा कहा कि ये आपाधापी का जीवन है, यहाँ हर व्यक्ति भाग रहा है | क्या उसे पाना है उसे कुछ पता नहीं है | और ये बाह्यमुखी दौड़ है .. सबसे पहले व्यक्ति को रुकना पड़ेगा, रुककर अपनेआप से पूछना पड़ेगा कि मैं क्या करना चाहता हूँ ! मैं क्या पाना चाहता हूँ ! मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है ! मैं ये सब क्यों कर रहा हूँ ! उसके बाद ही .. जो आपने खान-पान की बात कही .. आजकल की दिनचर्या क्या है ! लेट सोना, लेट उठना, फ़ास्ट फ़ूड खाना, फ़ास्ट लाइफ हो गई है | और एक competitive वर्ल्ड है आउटसाइड | उसमे जी रहा है व्यक्ति ! निरंतर एक स्ट्रेस है हर किसी को, अगर हम कहें कि हर देश जो है उसका स्ट्रेस लेवल इतना ज़्यादा है कि every nation is suffering from a national arterial stroke | ब्लड प्रेशर इतना बढ़ गया है पुरे देश का कि जैसे पूरे देश को स्ट्रोक हो गया है | उसमे जैसे पैरालिसिस हो गया है | हमारा जो मोर्निंग टाइम है .. हम जैसे आठ बजे उठ रहे हैं, नौ बजे उठ रहे हैं तो कभी भी हम जैसे .. वो जो पीरियड है मोर्निंग का वो ऐसे है जैसे हम गाड़ी को पटरी पर डाल रहे हैं, जैसे हम utilise करते हैं .. मैडिटेशन सबसे पहले फ़िर स्पिरिचुअल क्लास, स्पिरिचुअल डिस्कशन | मतलब सुबह का जो समय है, थोड़ा सा एकान्त, थोड़ा सा मौन, थोड़ी सी अन्तर्मुखता introverversion, ये अगर हो उसके बाद हमारी दिनचर्या चालू हो तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता | दूसरी बात है खान-पान की | खान-पान की बात ऐसी है कि जितनी बीमारियाँ आज बढ़ रही हैं, उनके पीछे आपको पता चलेगा कि जिस तरह का खान-पान .. जैसा कि हमने कहा फ़ास्ट फ़ूड, जगह जगह पर यही सब लोग खा रहे हैं, उसमे इतना हाई कोलेस्ट्रोल कंटेंट होता है कि उसके वजह से कितनी सारी बीमारियाँ जन्म ले रही हैं | तो सबसे पहले हमे संतुलित आहार, जिसे समझना होगा कि क्या है ! यदि कोई बीमारी है जैसे कई लोग बहुत मोटे होते हैं, तो ज़रूर कहीं ना कहीं गलती हो रही है खान-पान में | कई लोगों को बीमारी हो जाती है गलत खान-पान की वजह से | कई लोग स्वस्थ हैं परन्तु उनके लिए भी ज़रुरी है कि वे अच्छा खान-पान रखें | उसमे जैसे ज़्यादा से ज़्यादा फ्रूट्स हों, वेजीटेबल्स हों, हाई फाइबर डाइट हो, ज़्यादा ऑयली भोजन ना हो, जिसके कारण एक जो सम्पूर्ण स्वास्थ क्या है इसकी अनुभूति कर सको |
रुपेश कईवर्त : इसपर और भी विस्तार से चर्चा करेंगे डॉक्टर साहब क्योंकि सचमुच बहुत ही आवश्यक है, कैसे हम जी रहे हैं, कैसे हमे जीना है ताकि हम निरोगी रह करके जी सकें और जीवन का आनंद ले सकें | इस पर हम आपसे और भी प्रकाश लेंगे, आज की इस सुंदर चर्चा के लिए, जो बहुत ही गहन रही है विचारों के स्तर पर भी और बाहरी स्तर पर भी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
डॉ. सचिन : थैंक यू |
रुपेश कईवर्त : मित्रों हमारी चर्चा हुई थी मेडिकेशन के साथ साथ मैडिटेशन की या दवा के साथ साथ दुआ की, और बहुत ही डॉक्टर साहब ने स्पष्ट किया है कि कैसे लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन या लॉ ऑफ़ फैथ की जो बात कही जाती रही, ये सचमुच अध्यात्म से भी जुड़ी हुई है और जीवन के, स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ज़्यादा आवश्यक है | केवल दवा पर ही हम निर्भर ना रहें बल्कि वक्त निकाल कर अध्यात्म की ओर भी बढ़ें, मैडिटेशन करें ताकि हम सम्पूर्ण स्वास्थ्य स्वयं भी अपना बनाए रखें और साथ ही दूसरों को भी इसकी प्रेरणा दे सकें | डॉक्टर साहब को लगातार हम आमंत्रित करते रहेंगे ताकि इसकी गहराई में हम और उतर सकें और सम्पूर्ण खुशहाल बन सकें | आप अपना ख्याल रखियेगा, कल पुनः आपसे मुलाकात होगी | नमस्कार |