Samadhan Episode – 00170 Youth and Children Motivation
CONTENTS

1. लक्ष्य कितना इम्पोर्टेन्ट है हमारी लाइफ के लिए ?

2. लक्ष्य हमे अपनी क्षमताओं के अनुरूप बनाना चाहिए

3. युवकों को अपने माँ-बाप को कन्विंस करने का एक तरीका

4. कैसे एक लक्ष्य बना लेने के बाद कोई भी युवा 100% सफ़लता अर्जित करे ?

 

रुपेश कईवर्त : नमस्कार, आदाब, सत श्री अकाल ! मित्रों, स्वागत है आपका एक बार पुनः समाधान

कार्यक्रम में | मित्रों, आपको याद होगा, हमने शुरुआत की थी विद्यार्थियों की समस्याओं से, और

पश्चात् हमने चर्चा की युवाओं की समस्याओं पर | बहुत लम्बी हमारी चर्चा हुई थी, लेकिन वह

चर्चा केवल स्टूडियो में हुई थी | लेकिन हम जब बाहर जाते हैं, युवाओं के जीवन को देखते हैं

तो हो सकता है फील्ड में वो अलग-अलग समस्याओं का सामना कर रहे हों !विशेषकर हमने

चर्चा की थी कि लक्ष्य किस प्रकार से युवाओं को सही दिशा दे सकता है ! इसीलिए आज पुनः

हम लक्ष्य की चर्चा करेंगे, लेकिन केवल भ्राताजी के साथ नहीं ! हमने आज विशेष रूप से दो

मेहमानों को आमंत्रित किया है, आइए स्वागत करते हैं .. रिद्धि, आपका बहुत बहुत स्वागत है !

रिद्धिजी आई हुईं हैं राजकोट से और हमारे जो दूसरे मेहमान हैं वो आए हैं आबू रोड से, प्रफ़ुलजी |

प्रफ़ुलजी, आपका भी बहुत बहुत स्वागत है ! आप विशेषकर स्टूडियो में आए हुए हैं, और आप

लगातार हमारा कार्यक्रम देखते रहते हैं, हमने सोचा कि हम यहाँ पर तो चर्चा करते हैं पर आज

आप लोगों के साथ भी आज की चर्चा करें ! मित्रों, आप लोग जानते हैं हमारे साथ हमेशा समाधान

कार्यक्रम में बने रहते हैं और हम सबका मार्गदर्शन करते हैं और हम सबके  आदरणीय राजयोगी

ब्रह्माकुमार सूर्य भाईजी !! आइए, उनका भी स्वागत करते हैं, भ्राताजी आपका भी स्वागत है |

 

बी. के. सूर्य भाईजी : थैंक यू |

रुपेश कईवर्त : भ्राताजी आज हमारे दो साथी आए हुए हैं, जिनके साथ चर्चा होगी | और विशेषकर हमेशा मैं

आपसे प्रश्न पूछता हूँ लेकिन आज हमारे युवा साथी डायरेक्ट आपसे प्रश्न पूछेंगे |

 

बी. के. सूर्य भाईजी : बहुत सुंदर !!

रुपेश कईवर्त : तो मित्रों, आजका हमारा जो विषय है वह लक्ष्य के ऊपर केन्द्रित है कि युवा काल में लक्ष्य का

निर्धारण कितना अहम है | जो युवा लक्ष्य बना लेते हैं, वे कहाँ तक पहुँच पाते हैं, और जो लक्ष्य नहीं बनाते हैं

उनका क्या हश्र होता है | तो कितनी महत्ता है इसकी युवा काल में .. आजके हमारे समाधान कार्यक्रम का मूल

विषय है | और इन्हें कहूँगा कि आज की टोटल चर्चा को ये हैंडल करें और अपनी बातों को आजके इस समाधान

कार्यक्रम में रखें |

 

प्रफ़ुलजी : लक्ष्य कितना इम्पोर्टेन्ट है हमारी लाइफ के लिए, हमारे आगे के पथ के लिए, हमारी सक्सेसफुल

लाइफ के लिए कितना इम्पोर्टेन्ट है लक्ष्य हमारा |

 

बी. के. सूर्य भाईजी : देखिए, युवा काल ही मनुष्य का ऐसा काल है जिसमें लक्ष्य का सर्वाधिक महत्व  है | विद्यार्थी

जब दसवीं क्लास तक पहुँचता है, उससे पहले ही वो एक लक्ष्य बना लेता है कि मुझे हाई स्कूल में 80% लाना है !

उस लक्ष्य के अनुसार वो मेहनत करता है और उसे अचीव(Achieve) करता है | 12 के लिए वो फ़िर लक्ष्य

बनाता है क्योंकि उसके लिए वो इम्पोर्टेन्ट एग्जाम होता है ! उसको आगे किसी भी फील्ड में उतरना होता है तो

उसके लिए वो लक्ष्य को क्रिएट करता है और फ़िर वो उसे अचीव(Achieve)  करता है | तो लक्ष्य तो शुरू से ही

प्रारम्भ हो जाता है और प्रारम्भ में ही अगर मनुष्य अच्छा लक्ष्य बनाना सीख ले .. उनके माँ-बाप, guardian, या

टीचर उनको लक्ष्य का महत्त्व समझा दें अगर अच्छी तरह, और विद्यार्थी सच्चे मन से लक्ष्य बना ले अगर .. तो

निश्चित रूप से विद्यार्थियों का बहुत कल्याण होगा | जिस तरफ़ वो चले जाते हैं ना .. इधर-उधर .. वो नहीं जाएँगे |

और जब उन्हें वो लक्ष्य प्राप्त होगा तब उनका उमंग भी बढ़ेगा और अगला लक्ष्य जब वो बनाएँगे तो और उमंग

के साथ और सुंदर बनाएँगे | इसलिए, एक लक्ष्य नहीं केवल | देखिए, ये हो सकता है, एक विद्यार्थी अगर 9th

क्लास में है, और वो सोच ले कि मुझे इंजिनियर बनना है .. वो सोच सकता है, और उसे सोचना भी चाहिए |

लेकिन पहला लक्ष्य उसे बनाना है कि हाई स्कूल में मुझे इतना लाना है फ़िर 12 में मुझे इतना लाना है, फ़िर मुझे

इंजीनियरिंग में जाना है | ताकि जब मैं इंजीनियरिंग में जाऊँ और पढूँ और एग्जाम दूँ तो मुझे बहुत सुंदर ग्रेड

प्राप्त हों | तो वास्तव में लक्ष्य तो बहुत इम्पोर्टेन्ट चीज़ है, किसीका जीवन अगर लक्ष्यविहीन है तो वह तो विचलित

होगा | उसे किधर जाना है उसे पता ही नहीं होगा | मानलो, यदि कहीं हमें यात्रा करनी हो, और हमे यह ही नहीं

पता कि हमे दिल्ली जाना, मुंबई जाना, या इंदौर जाना या और कहीं जाना ! टिकेट कहाँ की लूँगा, ट्रेन कौनसी

पकडूँगा, इंतजाम कैसा करूँगा, कितना पैसा मुझे चाहिए ! तो लक्ष्य मनुष्य को तैयारी कराता है | इसलिए लक्ष्य

बहुत इम्पोर्टेन्ट चीज़ है जीवन के लिए |

 

रुपेश कईवर्त : लेकिन भ्राताजी, जैसे प्रफ़ुल ने पूछा .. इनके साथ में जोड़ रहा हूँ .. कि लक्ष्य तो बनाना ही चाहिए

एक, युवाकाल में लेकिन क्या बच्चों में इतनी maturity आ गई होती है ?

 

बी. के. सूर्य भाईजी : हम भी जब बच्चे थे तब गाँव में होने के कारण हमें पता ही नहीं होता है कि लक्ष्य क्या होता

है ! एक ही यूनिवर्सिटी थी उस तरफ़ इंजीनियरिंग की .. रूरकी यूनिवर्सिटी .. बहुत महंगी है भई, वहाँ साधारण

बच्चे तो जा ही नहीं सकते .. हमने सोचा, क्या करेंगे वहाँ ! माँ-बाप पर लोड पड़ेगा.. इतना पैसा तो है ही नहीं !

किसी ने बताया ही नहीं कि डॉक्टर कैसे बनते हैं, किसी ने बताया ही नहीं कि वकील इस तरह से बनते हैं ! तो ये

बिलकुल सत्य है कि आजकल फ्रेंड्स भी और चारों ओर का environment भी, हमारी surroundings में भी

सबको बहुत अवेयरनेस है | इसलिए लक्ष्य पहले से शुरू हो जाता है, माँ-बाप भी बहुत ध्यान देते हैं और मैंने जैसा

कहा कि शिक्षकों को और पेरेंट्स को कहीं ना कहीं बच्चों से इसकी चर्चा अवश्य करनी चाहिए ताकि उनको

इसकी अवेयरनेस हो | अगर इसकी अविद्या रहेगी तो सचमुच वो दिशा बदल लेंगे |

 

रुपेश कईवर्त : क्योंकि आमतौर पर ऐसा होता है भ्राताजी कि एक उम्र निकल जाती है, बहुत बड़े हो जाते हैं

उसके पश्चात सोचते हैं कि अब क्या करें तब शायद नौकरी के लिए भी उम्र निकल गई होती है और बहुत सारी

चीज़ों के लिए .. इसलिए मुझे लगता है कि ये प्रश्न जो है बहुत इम्पोर्टेन्ट है कि आखिर लक्ष्य का निर्धारण कबतक

कर लेना चाहिए और ..

 

बी. के. सूर्य भाईजी : और ये काम पेरेंट्स का है, शिक्षक तो इस बारे में बहुत कम बोलते हैं, वो तो केवल सिलेबस

को पूरा करना उनका लक्ष्य होता है लेकिन guardian, फ्रेंड्स और बड़े जो कोई भी समाज में हैं वो बच्चों को

गाइड करें इस बारे में, तो ये बहुत अच्छी चीज़ होगी |

 

प्रफ़ुलजी : कई बार ये भी देखने में आया है कि हम लक्ष्य बनाते हैं, उसके लिए प्रयास भी करते हैं, आगे भी बढ़ते

हैं लेकिन वो हमे हासिल नहीं होता है ! उसके लिए मूल कारण क्या रहते हैं, क्या वजह रह जाती है ?

 

बी. के. सूर्य भाईजी : ये बहुतों के साथ हो रहा है, आपका प्रश्न बिलकुल सही है | एक तो लक्ष्य हमे अपनी

क्षमताओं के अनुरूप बनाना चाहिए | छोटा सा उदहारण लें.. मानलो मेरे जेब में सौ ही रूपये हैं, और मैं सोचूँ कि

मुझे तो प्लेन से जाना है दिल्ली ! तो मुश्किल हो जाएगी ना ! तो हमारी क्षमताएँ क्या हैं, हमारा सामर्थ्य क्या है ..

उस अनुसार | एक विद्यार्थी है, उसने हाई स्कूल में 60% मार्क्स लिए, अब वो ये सोचले कि मुझे तो बाहरवीं में

95% मार्क्स लाने हैं, तो ये शायद उसके लिए टेंशन भी हो जाएगी और उसके लिए इसको अचीव करना

इम्पॉसिबल भी लगेगा | इसके लिए उसको थोड़ा धीरे-धीरे बढ़ना चाहिए, कि 60% मेरे आए हैं, मैं अच्छी मेहनत

करता हूँ, हाफ इयरली ग्यारवीं में मुझे 65% लाने हैं फ़िर एनुअल तक मुझे 70 तक पहुँचना है | बाहरवीं तक मुझे

75% तक पहुँच ही जाना है | इस तरह शनै – शनै अपने लक्ष्य को बढ़ाएं तो उसको वो अचीव होगा इसलिए लक्ष्य

जिसको नहीं मिलता, उसका एक कारण तो ये होता है कि वो अपनी सामर्थ्य से बाहर निकल कर अति उत्साह में

कोई लक्ष्य बना लेते हैं | दूसरी चीज़ है, देखिए आपने बहुत सुंदर question भी पूछा और अनेक युवक इस

समस्या से जूझते भी हैं, लेकिन कहीं उनको जानकारी नहीं है कि कहाँ वो फ़ेल हो रहे हैं ! क्या मिस हो रहा है

उनके पास कि मेहनत करने के बाद भी उन्हें लक्ष्य नहीं मिलता | बहुत अच्छी चीज़ सभी को जाननी चाहिए,

हमारी मनोस्थिति जितनी सुंदर होगी, हमारी एकाग्रता जितनी परफेक्ट  होगी, हमारा मन जितना व्यर्थ की बातों

से मुक्त रहेगा, उतना किसी भी लक्ष्य को पाना हमारे लिए सरल होगा ! मानलो, एक विद्यार्थी रात को बहुत देर

तक गेम खेल रहा है, तो नैचुरली उसको नींद की भी कमी हो जाएगी ! तो नींद की कमी होने से उसकी एकाग्रता

भी नष्ट होगी, उसे धीरे-धीरे चिड़चिड़ापन भी आएगा, क्रोध भी आएगा | क्रोध से उसकी मेमोरी और भी

लोस(loss) होगी ! तो विद्यार्थियों को युवाकाल में ही ये बात समझ लेनी चाहिए कि माइंड जितना पीसफुल और

अच्छा, जितने सुंदर विचार, बुद्धि उतनी ही एकाग्र रहेगी, जितनी मनुष्य के पास एकाग्रता होगी, उतनी उसको

सफ़लता मिलेगी | तीसरी चीज़, उसे उस समय एक ही चीज़ पर फोकस करना चाहिए | कभी-कभी वो क्या

सोचता है कि वो देख रहा है कि स्पोर्ट्स का बड़ा महत्व है .. बड़ी कमाई हो रही है, वो तो VIP हैं आजकल ! तो

मुझे उधर जाना चाहिए ! अच्छा, फ़िर वो पढ़ने जाता है तो सोचता है कि पढ़ाई में भी तो बहुत अच्छे नंबर की

ज़रूरत है, कम नंबर आएंगे तो महत्व क्या होगा मेरा ! मैं आगे की हायर एजुकेशन में कैसे जा पाऊंगा ! तो मुझे

पढाई भी बहुत अच्छी करनी चाहिए | अब तीसरा, उसको फ्रेंड्स मिलते हैं उसके, कहते हैं .. क्या तुम पढ़ाई-

पढ़ाई, किताब लिए बैठा रहता है ! क्या तुम .. मैदान में चला जाए, आओ तुम पिकनिक करने भी तो चलें ! फ़िर

उसको लगता है कि दोस्तों के साथ भी समय निकालना बड़ा इम्पोर्टेन्ट है, ऐसे थोड़ी ही होगा कि सूखे-सूखे बन

जाएँ | इसमें डायवर्सन हो जाता है उसका | इसलिए ये थोड़ा-सा काल ऐसा काल होता है, इसमें मनुष्य को एक

तरफ़ फोकस कर देना चाहिए | तो लक्ष्य मिल जाएगा | अगर वो फोकस करेगा भिन्न-भिन्न जगह तो लक्ष्य मिलने

में बहुत मेहनत भी होगी और असफ़लता होना सम्भव है |

 

रुपेश कईवर्त : मतलब एक लक्ष्य बनाएँ, और अपनेआप को डेडिकेट कर दें उसके लिए, तभी सफ़लता प्राप्त

होगी | जैसा कि प्रफ़ुल ने क्वेश्चन किया .. तो हो सकता है कि हम अपनेआप को डेडिकेट नहीं कर पाते हों !

 

बी. के. सूर्य भाईजी : मुझे एक बच्चे का उदहारण याद आ रहा है, एक बच्चा नाइन्थ क्लास का, बच्चा था भरोज

गुजरात का | कहा ये पढ़ता नहीं है, मैंने कहा आप दोनों बाहर जाओ, मैं इससे अलग से बात करूँगा .. हट्टा-कट्टा

लड़का, हेल्थी बिलकुल, बहुत खुश .. मुझे लगा ये पढ़ता नहीं है ! मुझे ऐसा लग नहीं रहा है | मैंने उससे बात की

मैंने कहा क्या बात है ! कहा नहीं मुझे क्रिकेट में बहुत शौक है और मैं बच्चों की क्रिकेट टीम का कप्तान भी हूँ |

बहुत सफ़ल हो रहा हूँ मैं, मुझे उधर जाना है और ये लोग कहते रहते हैं पढ़ो..पढ़ो..पढ़ो.. अब मेरी रूचि उधर है |

अब देखिए, उसको सफ़लता नहीं मिल रही थी पढने में .. मैंने उसके माँ-बाप से बात की वो अलग ही बात है,

मैंने उन्हें कन्विंस किया कि इसे खेलने दो .. लेकिन बच्चे को भी कन्विंस किया कि बारहवीं तक पढ़ो .. नहीं तो

कहीं तुम्हारा इंट्रोडक्शन होगा तो बोलेंगे ये आठवीं क्लास तक पढ़ा है तो तुमको बड़ी लज्जा आएगी | उसने मान

लिया | तो, लक्ष्य choose करना .. पेरेंट्स महसूस कर लें, realize कर लें, उन्हें जानकारी हो जाए कि हमारा

बच्चा किस फील्ड में वो बहुत एक्सपर्ट है, किस फील्ड में वो सफ़ल होगा ! इस चीज़ को ध्यान रखते हुए अगर

लक्ष्य बनाया जाए, तो सचमुच सफ़लता अवश्य होती है |

 

रुपेश कईवर्त : रिद्धि आप क्या कहेंगी ?

 

रिद्धि : कभी कभी क्या होता है कि हम लक्ष्य तय कर लेते हैं लेकिन जो पेरेंट्स होते हैं वो कहते हैं कि नहीं

आपको यही करना है, इसी लाइन में आगे बढ़ो ! तो हम उन लोगों को कैसे समझाएं कि हमारी रूचि इस चीज़ में

है तो हमें ये करना है, तो हमें ये करने दीजिए, किस तरह से कन्विंस करें ?

 

बी. के. सूर्य भाईजी : हाँ, बहुत अच्छी बात आपने कही और युवकों के सामने अनेक बार ये समस्या आती है ..

माँ-बाप कुछ और चाहते हैं और बच्चे की रूचि कुछ और होती है | लेकिन देखिए, माँ-बाप को यहाँ समझदार

होना चाहिए क्योंकि प्राप्ति युवक को करनी है माँ-बाप को नहीं | पढाई हो या कोई भी फील्ड हो, उसमे आगे

बढना है आपको | जिस तरफ़ आपकी रूचि है उस तरफ़ आप बहुत ही इंटरेस्ट से मेहनत करेंगे और जहाँ

मनुष्य की रूचि होती है वहाँ उसकी एकाग्रता भी होती है और अगर रूचि के विपरीत आपको लक्ष्य दे दिया गया

! मानलो एक छोटा-सा उदाहरण लेते हैं किसी की रूचि कॉमर्स में बहुत है और उसको उसमे बहुत आनंद आता

है, उसमे वो बहुत होशियार है लेकिन उसके माँ-बाप चाहते हैं उसे इंजिनियर बनाना तो उसे फिजिक्स, केमिस्ट्री,

मैथमेटिक्स दिला दिया जाता है लेकिन उसकी consciousness एलाऊ नहीं कर रही उसको | तो उसकी

एकाग्रता उसमे अच्छी नहीं होगी और जब वो उसमे अपने को थोड़ा भी भारी पाएगा तो वो डिप्रेस होगा, उसकी

ख़ुशी भी चली जाएगी कि माँ-बाप की माननी भी पड़ रही है लेकिन उसमें मैं सफ़ल भी नहीं हो रहा हूँ | तो मन ही

मन उसके मन में माँ-बाप के लिए अच्छी फीलिंग्स भी नहीं होगी इसलिए यहाँ मैं कहूँगा कि युवकों को अपने माँ-

बाप को कन्विंस करने का एक तरीका सीख लेना चाहिए | ये अलग है कि माँ-बाप बड़े होते हैं और वो बच्चे की

बात सुने ना सुने ! बच्चे कितने समझदार हैं !! अभी-अभी एक उदाहरण है मेरे पास सूरत का एक परिवार बहुत

ही wealthy परिवार ..  उनके एक बच्चे को मेडिकल में जाने की बहुत इच्छा थी | बाप कहते थे कि क्या करोगे !

जो तुम एक साल में कमाओगे, वो यहाँ एक दिन में कमाते हैं | क्यों टाइम waste करते हो | मेरे पास आए, क्या

करें ! मैंने बच्चे से सब बात की, तब बच्चे से पता चला कि मेरे नाम से पहले डॉक्टर लगना चाहिए | देखिए, मैंने

उन्हें कहा कि इसे पढने दो आप, ये आपकी फैक्ट्री ही चलाएगा लेकिन इसे डॉक्टर बनने दो | आज, वो मुझसे

मिले .. उसने कई सब्जेक्ट्स लिए और सबमे टॉप किया है .. दो सब्जेक्ट में इंजीनियरिंग डिप्लोमा किया है, फ़िर

बीएससी भी कर ली, बीकॉम कर लिया, अब सी.एस. कर रहा है | फाइनल एग्जाम है 3 दिन बाद, आज ही मिलने

आए थे कि क्या करूं और .. | तो देखिए, माँ-बाप ने बच्चे की रूचि समझी, और बच्चे ने इतने कोर्सेज कर लिए ..

कम से कम 6 .. 6 तरह के टेलेंट्स उसके पास आ गए | अब नौकरी तो उसे करनी नहीं है, उनकी बहुत बड़ी

फैक्ट्री है, बहुत बड़ा कारोबार है, जिसमे वो बिलकुल सफ़ल होगा | बच्चे का चेहरा चमक रहा था | ख़ुशी .. मैं

उसकी देख रहा था आज .. उससे मिलकर आया हूँ .. बिलकुल आनंदमय | अगर उसे रोक दिया जाता तो वो

डिप्रेस होता, उसके अंदर जो छुपे हुए टेलेंट्स हैं वो सब दब गए होते | क्योंकि उसके विवेक का विकास हो गया

है, अब वो हर फील्ड में सफ़ल होगा | इसलिए मैं यहाँ आपके माध्यम से सभी दर्शकों को सन्देश देना चाहता हूँ

कि माँ-बाप .. महसूस करें, पहचाने अपने बच्चे की रूचि को, कहाँ वो सफ़ल होंगे .. इसपर काम करें और अपनी

इच्छा का त्याग करें | बच्चों को अपना भविष्य खुद बनाना है, माँ-बाप को केवल उन्हें गाइड करना है | जिधर बच्चे

सफ़ल होना चाहते हैं उन्हें सहयोग दें पूरी तरह से | तो दोनों बहुत ही आनंदित रहेंगे और ये समस्या समाप्त हो

जाएगी | रुपेश आप कुछ कहेंगे .. !

 

रुपेश कईवर्त : बिलकुल भ्राताजी मैं यही पूछ रहा था कि जैसे रिद्धि कह रही थीं .. रिद्धि मैं आपसे ये पूछने वाला

था कि क्या ये प्रश्न आपका व्यक्तिगत तो नहीं है कि आप बनना कुछ और चाहती हैं और पेरेंट्स कहते हैं कि नहीं

तुमको कुछ और बनना है |

 

रिद्धि : हम अपने फ्रेंड्स में देखते हैं, उनसे बातचीत करते हैं तो यही ज़्यादातर देखते हैं कि उनके पेरेंट्स कुछ

और कहते हैं और हम लोग बनना कुछ और चाहते हैं और वो लोग फ़ोर्स करते हैं हमे कि नहीं भई ..

उसका बेटा/बेटी इस कोर्स में जाने से .. आजकल सी.एस. ज़्यादा हो रहा है, उसका बेटा कर रहा है तो तुम भी

वो करो ! मतलब हमारी चॉइस, हमारी रूचि कुछ और है, हम बनना कुछ और चाहते हैं और वो लोग फ़ोर्स हमे

कुछ और करते हैं तो मतलब ये गलत होता है |

 

बी. के. सूर्य भाईजी : हाँ, इसमें थोड़ा-सा ध्यान स्टूडेंट्स को भी देना चाहिए, कभी-कभी विद्यार्थियों के कल्याण को

माँ-बाप ज़्यादा समझ सकते हैं | और उनको ये भी है कि फ़लाने के बच्चे ने M.B.A. कर लिया, फ़लाने के बच्चे ने

ये कर लिया, हमारे पीछे रह गए, उनको समाज भी देखना होता है | समाज वाले क्या कहेंगे .. तुम्हारे पास पैसा

नहीं है, तुम्हारे बच्चे योग्य नहीं हैं, या तुम उनको पढ़ाना नहीं चाहते .. क्या बात है तुम्हारी ! तो इसमें एक बहुत

बड़ा जनरेशन गैप हो गया | तो इसको पूरा करना ज़रुरी है अभी माँ-बाप का दबाव या माँ-बाप का प्यार .. दोनों

हो सकते हैं इसमें | और उनको अपने सेल्फ़-रेस्पेक्ट की चिंता.. 3 बातें हो गईं | उधर, बच्चे की रूचि .. अगर

युवक अपनी रूचि को माँ-बाप के अनुसार चेंज कर सके तो ब्यूटीफुल, एक्सीलेंट ! उसमे दोनों बहुत प्रसन्न रहेंगे |

लेकिन अगर आप समझते हैं कि आपको मज़ा ही नहीं आ रहा, आप डिप्रेस हो रहे हैं, सुनते ही उदास हो गए तो

समझ लें कि उस फील्ड में आपको सफ़लता नहीं मिलेगी ! जो फील्ड आपने चुना है उसमे माँ-बाप को सहयोग

अवश्य देना चाहिए | लेकिन यहाँ पर जो समस्या है कि आपको उन्हें कन्विंस करना है .. असली बात ये है | और

इसके लिए चाहिये आपके पास स्पिरिचुअल पॉवर | इसके बिना काम नहीं होगा क्योंकि कई बार लड़कियाँ या

लडके थोड़े शर्मीले नेचर के, दब्बू स्वभाव के या माँ-बाप से थोड़े डरने वाले होते हैं, वो ये ही कहेंगे कि जो आप

कहो पापा, जो आपकी इच्छा हो ! तो उसमे क्या है कि सब गड़बड़ हो जाएगी |

 

रुपेश कईवर्त : आजकल ऐसा नहीं लगता है भ्राताजी ! (हँसते हुए)

 

बी. के. सूर्य भाईजी : नहीं .. मिलते हैं ऐसे भी, मुझे तो मिलते हैं | हमतो अपने बाप के सामने बोल ही नहीं पाते |

हमें तो चुप रहना होता है | हलांकि इसकी परसेंटेज ज़्यादा नहीं है, पर कुछ तो है अभी भी क्योंकि वो कल्चर है ..

 

रुपेश कईवर्त : नहीं अपने बड़ों के लिए सम्मान और प्यार तो रखते हैं ..

 

बी. के. सूर्य भाईजी : हाँ, वो उनका सामना नहीं करते हैं | और कभी-कभी क्या हुआ कुछ युवकों के साथ कि

बचपन से ही उनके फ़ादर या मदर बड़े ही क्रोधी रहे हैं, बड़े एग्रेसिव रहे हैं .. जो मैं कहूँ वही तुम्हे करना है ..

ऐसी स्थिति बनाई रखी है | इसमें भी बच्चे थोड़ा दूरी महसूस करते हैं, माँ-बाप से खुलते नहीं हैं, अपनी बात नहीं

कह पाते हैं | ये समस्या वहाँ भी पैदा होती है | इसलिए मैंने कहा कि अगर आपके पास स्पिरिचुअल पॉवर होगी..

हम यहाँ अपने राजयोग में बहुत अच्छी चीज़ सिखाते हैं, स्वमान जिसे हम कहते हैं | यानि भगवान के हम बच्चे हैं,

we are also something | अपने स्वमान को, अपने सेल्फ़-एस्टीम को बढ़ाएं ज़रा | हम सर्वशक्तिमान के बच्चे

हैं तो हम भी शक्तिशाली हैं | तो एक छोटी-सी प्रैक्टिस मैं सिखाना चाहता हूँ कि सवेरे उठते ही सात बार ये याद

करें .. मैं सर्वशक्तिमान की संतान बहुत शक्तिशाली हूँ | जैसे छोटा-सा उदहारण हम देते हैं .. शेर का बच्चा शेर |

तो सर्वशक्तिमान के बच्चे भी शक्तिशाली, तो मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ | सवेरे उठते ही सात बार इसे याद करें

और फ़िर अपने माँ-बाप को मन से अपने सामने लाकर संकल्प करें कि ये दोनों मेरे पूर्ण सहयोगी हैं, जो मैं

कहूँगी वो ये ज़रूर मानेंगे | रोज़ ऐसी प्रैक्टिस करें तो सात दिन में ही उनकी मेंटेलिटी बदल जाएगी | मैं ये युवकों

को बहुत सिखाता हूँ जहाँ उन्हें कोऑपरेशन चाहिए दूसरों का, वो इस थ्योरी का प्रयोग करेंगे | ये हमारे

subconcious mind का प्रयोग है |

सवेरे जो कुछ भी हम सोच रहे हैं उठते ही, हमारा subconcious mind पेरेंट्स के subconcious mind से

जुड़ा हुआ है, हमारे विचार उन तक जाएँगे | और उनके विचार बदलेंगे, वो सोचने लगेंगे कि हमारे बच्चे जो सोच

रहे हैं वो ठीक है तो करने दो न उन्हें .. और समस्या खतम हो जाएगी |

 

रुपेश कईवर्त : चलिए, पेरेंट्स को कन्विंस करने की एक बहुत अच्छी बात आपने बता दी है | अगर आप दोनों के

पेरेंट्स आपकी बात ना मानते हो या आपके friends  ऐसे हो जो जिस फील्ड में जाना चाहते हो तो भ्राताजी ने जो

subconcious mind का बहुत सुंदर प्रयोग बताया है

 

प्रफ्फुल : कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं हमारे सामने कि हम आसानी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे

होते हैं, सबकुछ आसानी से हमें हासिल हो रहा होता है, हम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे होते हैं लेकिन परिवार को भी

साथ लेकर चलना है, उस समय परिस्थितियाँ बिलकुल प्रतिकूल हो जाती हैं और दिमागी तौर पर इतना प्रेशर हो

जाता है कि हम सोच नहीं पाते हैं कि हमें करना क्या है ! तो हमारा लक्ष्य सामने होते हुए भी वो हमें हासिल नही

होता !

 

बी.के. सूरज भाई : बिलकुल, ये समस्याएं तो आती हैं .. बच्चा पढ़ रहा है, बहुत होशियार है .. अचानक माँ बहुत

बीमार हो गई ! बिसनेस था फ़ादर का एकदम डाउन होने लगा | घर में जैसे समस्या ही समस्या घिर आई | तो

बच्चा भी फैमिली का एक important पार्ट है, उसपर उसका असर आ गया | उसकी

कंसंट्रेशन(concentration) भंग हो गई, कहीं ना कहीं उसको माँ की केयर करनी पड़ी | टाइम देना पड़ेगा

उसको, तो वो बिचारे परेशान हो गए हैं | exam के बस तीन मास रह गए हैं ! पूछते हैं हम क्या करें, इधर हमारी

समस्याएँ होती हैं उधर दवाब है हमारी स्टडीज का | और कहीं ना कहीं वो उनकी एकाग्रता को नष्ट करता है |

उसमें बाधक बनता है | इसमें ही मैं ये कह रहा था की हम अपने थॉट्स को change करें | कुछ चीजों को हम

बहुत lightly लेंगे |दो चीज़ करेंगे हम, अपनी स्टडीज को.. या जिस फील्ड में हम काम कर रहे हैं उसको एन्जॉय

करें | तो ये जो एक attitude है कि हमें अपनी स्टडीज एन्जॉय करनी है | ये जो भारीपन हमारे ऊपर रहता है कि

हमे पढ़ना है हमे ये करना है, वो ख़तम हो जाएगा | दूसरी चीज़ है कि हम कुछ चीजों को easily लेना शुरू करें |

ये बहुत अच्छी चीज़ है कि हमारी नेचर easy going nature हो, सहज भाव से सबकुछ लेना है.. सब चीज़ पूर्ण

करना | तो.. जैसे पापा की बात है, अब वो घर में चर्चा करेंगे.. ये हो गया, वो हो गया, उसने पैसे नहीं दिए , हमारा

माल खराब हो गया या आया नहीं, रोक लिया गया या टैक्स वाले आ गए.. | अब इसमें स्टूडेंट्स को चाहिये

समझदारी से.. कि पापा कोई बात नहीं सब ठीक हो जाएगा, डोंट वर्री (don’t worry), हम आपके साथ हैं ! ऐसा

कहने से छोटे भी बड़े नज़र आएंगे, matured नज़र आएंगे | और पापा की भी टेंशन कम होगी और घर में जो

नेगेटिव वातावरण बन गया है जिसका नेगेटिव प्रभाव हो रहा है उससे भी हम हल्के हो जाएंगे | लेकिन हमें ये

ध्यान रखना है  कि इसके लिए हमारे मन में सुंदर विचार होने चाहिए | जो हम कह रहे हैं सारे संसार को कि

हमारे स्कूल में या युवावर्ग के लिए  moral education का होना बहुत आवश्यक है | क्योंकि हमारी पढ़ाई में ये

सब चीज़ें कहीं सिखाई ही नहीं जाती | तो टेंशन हो गई तो हो गई क्या करें भई ! उसका इफ़ेक्ट होता रहता है | तो

कुछ अच्छी चीज़ हमेशा सीखते रहना .. राजयोग में हम यही सिखाते हैं, कि भिन्न-भिन्न परिस्थिति आने पर भी हम

कैसे विचलित ना हो, अपने mind को डिस्टर्ब ना करें, अपने लक्ष्य को छोड़े नहीं .. तो ये जो परिस्थिति है इसका

प्रभाव हम पर नहीं आएगा |

 

रुपेश कईवर्त : तो भ्राताजी, ये चीज़ तो हमें क्लियर हो गई कि चलिए एक लक्ष्य हमारे पास होना चाहिए, लक्ष्य का

निर्धारण कर लेना चाहिए, और मार्ग में बहुत सारी बाधाएं हमें आएंगी उन सबको हमें पार भी करना है |

मैं सार में जानना चाहूँगा, brief में | भ्राताजी, आज  समय हमें थोड़ा कम इजाज़त दे रहा है | कैसे एक लक्ष्य बना

लेने के बाद कोई भी युवा 100% सफ़लता अर्जित करे ? क्या वो ऐसा करे, क्या वो जीवन में ऐसी बात ले आए जो

वो लक्ष्य बनाये वो उसे हासिल हो जाए |

 

बी. के. सूर्य भाईजी : मैं शुरू करता हूँ एक बहुत ही सुंदर बात से .. सवेरे उठते से ही पाँच बार अपने लक्ष्य को

लिखा जाए |

मानलो, एक विद्यार्थी है और उसको 90% मार्क्स लाने हैं .. तो मेरे मार्क्स 90% आएंगे .. इस language में लिखा

जाए | मेरे मार्क्स 90% आएंगे यानिकि “आएंगे” जब हम ये language यूज़ (use) कर रहे हैं इसका मतलब है

we are confident | तो, आएंगे !! पाँच बार हमने लिख दिया तो इससे क्या होगा .. हमारी ब्रेन की समस्त

शक्तियाँ, हमें इस लक्ष्य को अचीव (achieve) कराने में लग जाएँगी | और जब कभी छोटी-मोटी बाधाएं आएंगी

तो आप पाएंगे कि हमारी अपनी शक्तियाँ उसे हटा रही हैं आपेही, हमारा मार्ग स्पष्ट कर रही हैं आपेही | इसमें हो

गई लक्ष्य की दृढ़ता और दूसरी बात हम अपने लक्ष्य को बहुत एन्जॉय करें | सवेरे की बात हम कर रहे हैं, पहले

10 मिनट उठने के बाद हम इसे देंगे .. कि ये होगा ही जैसे हो गया है, तो हम इसे एन्जॉय करें | तो उससे जो

हमारे subconscious mind का जो इफ़ेक्ट है वो उन लोगों तक जाएगा जो हमें वहाँ तक ले जाने में जिम्मेदार

हैं .. चाहे वो एग्जामिनर (examiner) हैं, या कॉपी चेक करने वाले हैं .. ये करें | और तीसरी बात कि लक्ष्य के प्रति

हम बहुत ही sincere हों, ये नही कि लक्ष्य बना लिया तो मिल जाएगा, नहीं मिला तो क्या हुआ ! किसकिस को

मिलेगा .. IAS में इतने लड़के बेठ रहे हैं लाखों, तो सब थोड़े ही आएंगे | मैं भी ना आया तो कह दूंगा कि क्या हुआ

इतने नहीं आए .. तो क्या हुआ | ये भी नहीं | दृढ़ता !! sincerity (सिंसेरिटी) ! मुझे ये लक्ष्य पाना ही है और जिसके

मनमें अपने लक्ष्य के प्रति ऐसी दृढ़ता होती है तो हमे याद रखना है जहाँ दृढ़ता है वहीं सफ़लता है | दृढ़ता

सफ़लता की चाबी है | इसको हम ध्यान रखेंगे | और कुछ समय जैसे हमने dedicate (समर्पित) कर दिया है

उसके लिए, कोई पूरा जीवन नहीं लगाना होता है .. एक साल, दो साल .. पूरा अपने को लगा दें उसमें, झोंक दें

अपनी सारी शक्ति को | तो ऐसा करने से जो हम मेहनत करेंगे, भगवान पर भरोसा रखेंगे फ़िर भगवान भी हमारी

सहायता करेगा, हम उसके बच्चे हैं | वो भला हमे क्यों असफल देखना चाहेगा ! कोई बाप अपने बच्चे को

असफल थोड़े ही देखना चाहता है | हमें सफ़लता अवश्य मिलेगी | जब इस तरह हम मेहनत करेंगे सच्चे दिल से

तो सचमुच हमें लक्ष्य प्राप्त होगा और मैं ये कहूँगा कि हर युवक को लक्ष्य सुंदर बनाना ही चाहिए, जिस

फील्ड(field) में भी वो जाना चाहता है उसके प्रति खुदको dedicate कर देना चाहिए, full कॉन्फिडेंस अपने मन

में रखना चाहिए, और एन्जॉय करना चाहिए | और incase मानलो कि लक्ष्य ना मिले.. ऐसा भी होता है .. तो

डिप्रेस(depress ) होने की ज़रूरत नहीं .. फ़िर प्रयास किया जाए | तो जो मेहनत करते हैं लक्ष्य उनको अवश्य

प्राप्त होता है इसलिए ये बात भी अंडरलाइन करने वाली है कि अनेक बार भिन्न-भिन्न कारणों से लक्ष्य नहीं

मिलता है बहुत बार देखा exam बहुत अच्छा हुआ.. सबकुछ बहुत सुंदर था लेकिन मार्क्स तो बहुत कम रह गए |

इसमें हमारे पास्ट (past) का इफ़ेक्ट, हमारे फ्यूचर का अट्रैक्शन.. ये थोड़ी स्पिरिचुअल बात है हर व्यक्ति इसको

नहीं जानता .. हमारा फ्यूचर भी हमें एफ्फेक्ट करता है | कभी-कभी इन सभी कारणों से भी हमें मनचाही

सफ़लता नहीं मिल पाती | तो उसमे हमें स्वीकार कर लेना चाहिए जो भी हमें मिले | और फ़िर से एक नई उमंग

से, बिना निराश हुए मेहनत करनी चाहिए | तो लक्ष्य हमारे चरणों में आ जाएगा |

 

रुपेश कईवर्त : चलिए, बहुत बहुत शुक्रिया भ्राताजी | विषय तो ऐसा है कि इसपर बहुत गहराई से चर्चा करने की

आवश्कता है लेकिन आज वक़्त हमें इजाज़त यहीं तक दे रहा है | आपने इतना सुंदर प्रकाश डाला है, युवाओं को

इतने अच्छे तरह से प्रेरित किया है, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया |

और रिद्धि और प्रफ्फुल आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया अदा करना चाहूँगा | आप लोग इस स्टूडियो में आए और

आशा करता हूँ कि आप लोगों को बहुत सुंदर प्रकाश मिला है और आप लोगों ने जो भी लक्ष्य अपने जीवन का

बनाया है उसको आप हासिल करें ये हमारी समाधान परिवार की ओर से शुभकामना है | बहुत-बहुत शुक्रिया |

मित्रों, इसमें कोई दो राय नहीं है कि लक्ष्य बहुत महत्त्वपूर्ण है जीवन के लिए | किसी महापुरुष ने कहा है कि

अपना लक्ष्य हमेशा सितारों तक पहुँचना बनाओ ताकि अगर सितारों तक ना भी पहुँच पाएँ तो कम से कम चाँद

तक तो अवश्य ही पहुँच ही जाएंगे |

और किसी ने ये भी कहा है कि यदि आप छोटा लक्ष्य बनाते हैं तो जैसे आप अपराध करते हैं | भगवान ने इतना

सुंदर जीवन दिया है हमें, तो हम इस संसार को कुछ देने का लक्ष्य बनाएं |

अपने जीवन में केवल डॉक्टर, इंजिनियर तक अपनेआप सीमित ना रखें बनने का लेकिन एक ऐसा महामानव

बनने का लक्ष्य रखें जो संसार को, समाज को कुछ देकर के जाए |

आशा है आज की इस सुंदर कड़ी से आपको बहुत सुंदर प्रेरणा प्राप्त हुई होगी और यदि आपने अपने जीवन के

लक्ष्य के बारे में कुछ ना सोचा हो तो अवश्य सोचना प्रारम्भ करें |

उठें, जागें और तबतक चलते रहें जब तक अपने ध्येय को प्राप्त ना करलें | नमस्कार |

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