Samadhan Episode – 00750 General and Spiritual Motivation
CONTENTS
- जैसे विचार हम दूसरों के लिए सोचते हैं, वो विचार उस व्यक्ति तक पहुँचते हैं और वो व्यक्ति भी हमारे लिए वैसा ही सोचने लगता है |
- क्या हमें लौकिक जन्मदिन मनाना चाहिए ?
- रिश्तों में आ रही अनबन को किस युक्ति से ठीक करें ?
- अपने मन-बुद्धि को लम्बे समय तक स्थिर करने का तरीका |
रुपेश कईवर्त : नमस्कार, आदाब, सत श्री अकाल मित्रों ! स्वागत है आपका समाधान कार्यक्रम में │एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि मंत्री महोदय प्रजा हमारे बारे में क्या सोचती है .. तो मंत्री ने कहा कि महाराज ये बात तो प्रजा ही अच्छी तरह बता सकती है कि वो आपके बारे में क्या सोचती है !
अब दोनों ने वेश बदला और निकल गये राज्य में | अँधेरा हो गया था, एक लकडहारा जा रहा था लकड़ियाँ लेकर जंगल से │ राजा ने सोचा कि ये ज़रूर चोरी करके लकड़ियाँ ला रहा होगा, इसको मैं सज़ा दूंगा │ ऐसा विचार राजा के मन में आया │
अब नजदीक पहुँच रहे थे तो राजा ने मंत्री से कहा कि पूछो इसको क्या सोचता है ये मेरे बारे में ! तो मंत्री जी ने कहा कि आज ही हमारे राजा का स्वर्गवास हो गया │जैसे ही उन्होंने ऐसा कहा तो लकडहारे ने कहा कि अच्छा हुआ.. अच्छे व्यक्ति नहीं थे वो .. और बहुत भला-बुरा कहते हुए वहां से निकल गया │
राजा बड़े निराश हुए कि मेरी प्रजा मेरे बारे में ऐसा सोचती है ! मंत्री जी ने कहा कि महाराज ये तो एक ही व्यक्ति है, और आगे बढ़ते हैं │ थोड़े ही देर में उन्हें एक वृद्धा दिखाई दी ..
कितनी वृद्ध हो गई है, मैं अवश्य ही इसकी कोई मदद करूं !! जब उन्होंने ऐसा सोचा और उसके नज़दीक पहुँचे तो मंत्री ने कहा कि क्या आपको पता है कि आज हमारे राजा की मृत्यु हो गई ! तो वृद्धा बहुत ही ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी |
उसने कहा हे प्रभु ! कितने अच्छे राजा थे हमारे ! काश भगवान आप हमें उठा लेते हमारे राजा जी को क्यों उठा लिया ? .. अब राजा जी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था दोस्तों कि जैसा हम दूसरों के लिए सोचते हैं कहीं ना कहीं वो विचार उसके हृदय तक भी पहुँच जाते हैं, उसके मन तक पहुँच जाते हैं, और वो व्यक्ति भी हमारे लिए वैसा ही सोचने लगता है |
कई बार हम बाहरी तौर पर किसी व्यक्ति के बारे में सोचते हैं कि ये व्यक्ति ऐसा है .. ऐसा है .. ऐसा क्यों करता है लेकिन कहीं ना कहीं हम भी उसके लिए अपने मन में उस व्यक्ति के लिये दुर्भावना रखते हैं, व्यर्थ भावना रखते हैं कि उसका ऐसा हो जाए.. वैसा हो जाए.. तो वो भी हमारे लिए .. जैसे कहते हैं ना क्रिया के बाद प्रतिक्रिया हो जाती है |
तो क्यों ना अपने विचारो को, बोल को, कर्म को सबके लिए शुभ रखें तो हमें भी सबकुछ शुभ-शुभ प्राप्त होगा | तो आइए, इस शुभ बात के साथ समाधान कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं, भ्राताजी का स्वागत करते हैं | भ्राताजी, बहुत बहुत स्वागत है आपका ..
बी. के. सूरज भाई : शुक्रिया |
रुपेश कईवर्त : बचपन से सुनते रहते हैं भ्राताजी कि जैसा सोचोगे वैसा ही पाओगे ! लेकिन ये देखने में आता है कि ये बिलकुल ही सत्य बात है |
बी. के. सूरज भाई : राजा की कहानी से एक बात बहुत अच्छी सीखने को मिलती है .. कई लोग इस बात से थोड़े परेशान रहते हैं कि लोग मेरे बारे में क्या कहेंगे ? क्या सोचते होंगे ? कई लोग तो अनुमान लगा-लगाकर ही परेशान हैं .. ये-ये लोग मेरे बारे में ऐसा सोचते होंगे !
अच्छे योग्य व्यक्ति, अच्छे सफ़ल व्यक्ति, बहुत ईमानदार व्यक्ति ऐसा सोच-सोचकर ख़ुशी को नष्ट करते रहते हैं, परन्तु बहुत सुंदर सन्देश है इसमें.. इस राजा की कहानी में कि हम सबके लिए अच्छा सोचने लगें | फ़िर सब भी हमारे लिए अच्छा सोचने लगेंगे |
तो मैं सबको एक सुंदर सी, छोटी सी राय दूँगा .. अपने मन में एक छोटा सा संकल्प रोज़ सवेरे कर लिया करें .. सभी मेरे गुड फ्रेंड (good friend) हैं .. मैं सबको बहुत प्यार करता हूँ / करती हूँ .. सब भी मुझको बहुत प्यार करते हैं सब मेरे सहयोगी हैं, सबका कल्याण हो और सब बहुत अच्छे हैं ! .. सब भगवान के बच्चे बहुत ही गुणवान हैं | सब ऐसा सोचेंगे तो दूसरे का सोच अगर कुछ गड़बड़ भी है तो वो भी ठीक हो जाएगा |
रुपेश कईवर्त : जी..जी.. और ये एक बहुत सुंदर सा नुस्खा है कि हम सभी को बदल सकते हैं यदि कोई हमारे लिए गलत कर रहा है तो ! भ्राताजी.. आध्यात्म में रीसेंट कुछ अनुभवों के आधार पर क्या ऐसे कुछ अनुभव भी हैं कि किसी के मन में किसीके लिए दुर्भावना थी, बदले की भावना थी और किसी ने कुछ ऐसा छोटा सा प्रयोग किया हो कि सबकुछ बदल गया हो ..
बी. के. सूरज भाई : बिलकुल, बिलकुल !! रोज़ आते हैं ऐसे अनुभव पति-पत्नियों के | मतलब मैं ऐसा कह सकता हूँ कि हर हफ़्ते ऐसे अनुभव आते हैं मैं जहाँ भी जाता हूँ | दो-चार बहनें अपना ये अनुभव सुनाती हैं .. हमारा पति ऐसा था वैसा था .. बहुत तंग करता था .. हमने ये अभ्यास किये जो मैंने अभी बताए .. और सबकुछ ठीक हो गया !
मतलब चमत्कारिक इफ़ेक्ट !! बच्चे भी ठीक हो गए | बाकि ये ही कि जब पति बुरा बोलता था तो ये सोचती थी कि कैसा खराब व्यक्ति है ये | सब नेगेटिव फ़ीलिंग्स उसको जा रही थी और नेगेटिव व्यवहार आ रहे थे इनको, और जैसे ही इन्होंने ये बदला तो दूसरों का भी बदल गया | तो ये बिलकुल सत्य है, हमारे संकल्प दूसरों से टकराकर उनके संकल्पों को भी ठीक कर देते हैं और फ़िर वापिस आते हैं हमारे पास |
रुपेश कईवर्त : जी.. भ्राताजी | आध्यात्म तो सचमुच जीने की कला ही सिखा देता है और आप जो छोटे-छोटे नुस्खे जो हमें देते हैं वो बहुत ही कारगर होते हैं ..
बी. के. सूरज भाई : मैं यही कहूँगा कि इसे ही तो आध्यात्म कहते हैं | आध्यात्म सुनकर तो साइंटिस्ट कहते हैं कि ये आध्यात्म सब क्या है .. विज्ञान ही सबकुछ है | कई गृहस्थी जो आज मॉडर्न है या materialistic world में हैं वो भी कहते हैं कि ये आध्यात्म सब कुछ नहीं है | आध्यात्म माना अपने विचारों को पॉजिटिव करना, उनको purify करना |
रुपेश कईवर्त : जी..जी.. इसकी बहुत ज़्यादा आवश्यकता है आज के दौर में | भ्राताजी, पहला mail मैं ले रहा हूँ, राजा जी ने ये हमें भेजा है और भ्राताजी ये कहते हैं कि बाबा कहते हैं कि भले से ज्ञान हो फ़िर भी आप में युक्ति नहीं है तो दो पैसे का भी ज्ञान नहीं है, ये कहेंगे | तो ये युक्ति का मतलब क्या है ? कैसे हम इसे अपने जीवन में लायें ? .. जिस बात की आज चर्चा चल रही है |
बी. के. सूरज भाई : पहले भी राजा थे, और अब भी राजा हैं | देखिये, युक्ति का अर्थ है तरीका .. युक्ति से मुक्ति | किसी बड़ी समस्या से हम तत्काल मुक्त हो सकते हैं ना, यदि हम एक विधि अपनालें | युक्ति माना ठीक से विधि अपना लेना |
चाहे वो व्यावहारिक हो, चाहे वो कारोबार में हो .. विधि से काम करते हैं जब अच्छे ढ़ंग से काम करते हैं तो हम हर जगह सफ़ल होते हैं, इसमें और कोई .. लोग युक्ति को चालाकी मान लेते हैं और सोचते हैं कि चालाकी तो आध्यात्म के विरुद्ध है | युक्ति माना चालाकी नहीं पर एक यथार्थ तरीका |
मानलो, एक व्यक्ति .. किसी बहन का कोई पति है और वो उसे भक्ति करने से रोकता है, वो उसे जाने ही नहीं देता है, कहता है मंदिर नहीं जाना है .. ये सब ढपोसला है .. बेकार है .. खाने कमाने के धंधे हैं .. अनेक बातें उससे कहता है और वो परेशान करता है उसको और वो परेशान होती हैं | अब उसने एक विधि अपना ली है कि भई जब मैं सब्जी लेने जाउंगी .. उसने एक तरीका अपना लिया कि इस टाइम सुबह ताज़ी-ताज़ी सब्जियां मिलती हैं,
मैं सवेरे-सवेरे जाउंगी साथ में 5 – 10 मिनट मंदिर भी हो आती है, जो भी उसको काम है वो उसे कर लेती है | तो ये विधि हो गई, युक्ति हो गई | ये ना चालाकी हुई ना पाप हुआ लेकिन अपनी एक श्रेष्ठ इच्छा को पूर्ण करने का तरीका हो गया |
रुपेश कईवर्त : मतलब ये कि युक्ति को हमेशा समझना होगा, इसमें चालाकी नहीं होती है | भ्राताजी, अगला mail हमें संगीता जी ने भेजा है, ये कहती हैं कि भ्राताजी लौकिक बर्थडे मनाना चाहिए या सिर्फ़ अलौकिक ही मनाना चाहिए क्योंकि कई बार हम परमात्मा के महावाक्य में सुनते हैं कि तुम्हें लौकिक बर्थडे नहीं मनाना है |
बी. के. सूरज भाई : देखिए, बात तो छोटी-सी है .. अगर इससे कोई सेवा होती है .. अपने को या दूसरे को ख़ुशी होती है तो इसमें कोई प्रॉब्लम भी नहीं है | हम सेवार्थ .. मानलो हम अपना लौकिक बर्थडे इतना अलौकिक ढंग से, इतने सादगी से मनाएं, बहनों को बुलाएँ, रिलेटिव्स को बुलाएँ .. कुछ अच्छा प्रोग्राम करलें जिससे उनको ईश्वरीय सन्देश मिले,
जिससे उनको जीने के लिए कोई अच्छी बात मिले, तनावमुक्त होने की कोई विधि मिले .. वो सब लोग आयें .. मानलो हमने पचास लोगों को बुला लिया है और वहाँ ख़ुशी का माहौल है तो सब ऐसा कहेंगे कि बर्थडे मनाना हो तो ऐसा मनाना चाहिए ! करते हैं कई लोग ऐसा और अलौकिक तो मानना ही चाहिए उसमें भी यही विधि अपनानी चाहिए |
इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं कि हम कोई दिखावे के लिए या ये कोई देहभान की बात है .. ऐसा बिलकुल नहीं .. सेवा हमारा मोटिव (motive) कि सबको हमसे कुछ मिले | बर्थडे तो हमारा है लेकिन सब हमारे बर्थडे पर कोई अच्छी चीज़ लेकर के यहाँ से जाएँ | वो गिफ्ट लायेंगे और हम उनको कुछ ऐसी सुंदर गिफ्ट दे दें .. सुंदर विचारों की, सुंदर ज्ञान की तो इसमें कोई हर्ज़ा नहीं है |
रुपेश कईवर्त : बिलकुल.. मतलब वो मनाया जा सकता है !
बी. के. सूरज भाई : जी |
रुपेश कईवर्त : अगला mail हमारे पास आया है राजीव जी का | ये कह रहे हैं कि मैं अपने मेनेजर से बहुत परेशान हूँ, मैं बहुत कोशिश करता हूँ कि अच्छे से अच्छा कार्य करके दूँ लेकिन फ़िर भी वो कभी भी संतुष्ट नहीं होते हैं और मेरे प्रमोशन में भी मुझे ऐसा लगता है कि वो बाधा डालते हैं | कैसे मैं उन्हें संतुष्ट करूं ? क्योंकि जब वो मेरे हर कार्य के लिए मुझे रोकते हैं, टोकते हैं तो मन कई बार उचाट सा हो जाता है कि मैं यहाँ रहूँ या अपनी नौकरी ही बदल लूँ !
बी. के. सूरज भाई : हाँ ये भी होता है, मनुष्य को गुस्सा आता है, बदले की भावना होती है | नैचुरली हर व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, और जहाँ भी वो कार्यरत हो वहाँ माहौल भी अच्छा हो ! वो ख़ुशी से जाए और अपने कार्य पूर्ण करके एक संतुष्टता के साथ घर वापिस आए |
हर व्यक्ति की यही अभिलाषा होती है लेकिन कई अधिकारी ऐसे होते हैं कि जो गलत व्यवहार कर देते हैं कि जो व्यक्ति काम भी बहुत अच्छा करता है लेकिन जब वो घर जा रहा होता है तो उसके मन में एक टेंशन, एक असंतोष ले कर जा रहा है | यहाँ मैं ऐसे अधिकारियों या मेनेजर(managers) को कहूँगा कि अपने सभी साथियों को अपनी फैमिली समझें, अपने बच्चे समझें तब वो आपके लिए डबल काम करेंगे .. और आप तो उनकी समस्याओं को हल करने वाले हो तो वो आपको कहीं समस्या देंगे नहीं, बहुत प्यार से कार्य लेना चाहिए |
अब इनको जो कुछ करना है .. वही विधि जिसकी हम चर्चा कर रहे थे .. ये सवेरे उठकर .. क्योंकि इसमें क्या होता है कि वो मेनेजर ज़रूर अपने घर से परेशान होगा .. पत्नी से लड़ाई करके आता होगा, विशेष टेंशन ऊपर वालों की भी होगी तो मनुष्य अपने टेंशन को ट्रान्सफर कर लिया करता है .. उसको जनरल मेनेजर ने डांटा होगा .. वो जो खिन्नता थी वो उसपर उतार देता है सारा !
तो ये चलता है दुनिया में ऐसा हो रहा है | तो इनको क्या करना चाहिए, जॉब छोड़ने की तो ज़रूरत नहीं उससे तो कठिनाइयाँ हो जाती हैं .. इमोशनल होकर, जल्दीबाज़ी में कार्य ऐसे छोड़ नहीं देने चाहिए | मनुष्य को समस्याओं को फेस करने के लिए तैयार रहना चाहिए | एक तो ये बिलकुल हल्के हो जाएँ |
ये तो जान गए ना कि उसका ऐसा संस्कार है, ऐसा बुरा बोलना, कुछ भी गड़बड़ करना .. समझ लें कि इसीमें मुझे जीना है, इसे मुझे ठीक करना है और अपने को मुझे तनाव से मुक्त करना है, परेशानियों में अपने को नहीं डालना है .. ना किसी तरह की negativity (नकारात्मकता) उस व्यक्ति के लिए रखनी है | सवेरे उठकर सात बार ये संकल्प करेंगे .. मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ | फ़िर उस व्यक्ति को आत्मा देखेंगे, और आत्मा देखकर पांच-सात मिनट गुड वाइब्रेशन देंगे योग के, मैडिटेशन के .. संकल्प करेंगे .. ये आत्मा बहुत अच्छी है, ये भी एक महान आत्मा है, ये भी भगवान का बच्चा है, ये मेरा गुड फ्रेंड है, मेरा पूर्ण सहयोगी है, आज ये मुझसे बहुत सुंदर व्यवहार करेगा | पांच-सात मिनट इसमें लगा दें .. उसको गुड वाइब्रेशन जाएंगे, मुझे ये पूर्ण विश्वास है कि ये negativity को खतम कर देंगे | पहले दिन से ही इनको परिणाम मिलने लगेगा !
रुपेश कईवर्त : वही राजा वाली बात हो जाएगी यहाँ भी | कई बार ऐसा होता है भ्राताजी, यदि कोई हमसे बुरा व्यवहार कर रहा है तो मन खिन्न हो ही जाता है, उसके लिए नेगेटिव हो ही जाता है और उसमे सुधार आने की बजाय उसमे गिरावट ही आती जाती है |
भ्राताजी, राजश्री जी का अगला mail है और ये कह रही हैं कि मेरे परिवार में दो छोटे बच्चे हैं और पतिदेव हैं सासुमाँ हैं, और ससुरजी भी हैं | कई बार सासुमाँ के साथ अनबन होती रहती है जिसका गुस्सा .. (ये वही बात आ रही है ).. मैं कई बार बच्चों पर निकाल देती हूँ और पतिदेव पर भी निकाल देती हूँ |
सासुमाँ से लाख चाहने के बाद भी ताल-मेल नहीं बन पा रही है, उनके विचार अलग हैं और मेरे विचार अलग हैं | कई बार मुझे ऐसा लगता है कि मैं सही हूँ और वो जो कह रही हैं वो गलत है आज के दौर के हिसाब से लेकिन फ़िर भी यहाँ भी हमारी जो अनबन है वो ठीक नहीं हो पा रही है इस चीज़ में तो कैसे यहाँ पर ..
बी. के. सूरज भाई : इनको यही सोचना है कि मुझे ठीक करना है क्योंकि ज्ञान इनके पास है, दूसरे व्यति का संस्कार कैसा भी हो, विचारों का भेद तो संसार में चलता आ रहा है लेकिन बात यही है कि उनके विचारों के साथ अपने विचारों का समन्वय कर देना, हारमनी (Harmony) कर देना |
सास सोचती होगी घर की मालिक मैं हूँ, मैं जो आदेश दूँ बहू को उसका पालन करना है और बहू को कोई चीज़ें प्रिय नहीं लगती होंगी और घर-घर में ये बात होती रहती है | तो यहाँ इनको बड़ा बनकर क्योंकि realize ये कर रही हैं, उनको तो realize होगा या नहीं होगा वो तो वो जाने लेकिन ये realize कर रही हैं कि कुछ तो गड़बड़ हो रही है, इससे बच्चों पर मेरा गुस्सा निकलता है, पति पर निकलता है .. वो सोचते होंगे कि हमने तो कुछ किया ही नहीं है !
हमपर गरम क्यों हो रही है !.. नुकसान हो रहा है और उतारना भी इसको ज़रुरी है नहीं तो ये टेंशन लेकर घूमती रहेंगी तो कहें किसको !! तो वही विधि अपनाएं, रोज़ सवेरे यही संकल्प करें कि ये बहुत अच्छी आत्मा है, मेरी गुड फ्रेंड है .. है तो मुझसे बड़ी ना .. मुझे उनकी कुछ बात माननी है, थोड़ा झुक कर चलना है, थोड़ा पोलाइट हो कर चलना है, मुझे उनको सम्मान देना है, ये बहुत अच्छी आत्मा है, मेरी गुड फ्रेंड है .. सवेरे उठकर ये संकल्प करेंगी तो उनमें निश्चित रूप से परिवर्तन होगा लेकिन इनमें परिवर्तन अवश्य करना है .. बड़ों को थोड़ा मान भी देना, उनकी बात को काटने के बजाय उनको हाँ भी कर दें |
मैं तो ये भी कहूँगा कि आप एक हफ़्ता उनकी हर बात को हाँ करने लगो .. भले ही आपको लगता हो ये गलत कह रही हैं पर कहीं कोई बहुत बड़ा बिसनेस का नुकसान तो नहीं होने जा रहा .. ये तो घरेलू बातें हैं .. हाँ माताजी आप बिलकुल ठीक कहती हो .. ऐसे उनको appreciate करने लगो फ़िर देखो एक हफ़्ते में कैसे खेल बदलता है |
रुपेश कईवर्त : सास-बहू की जो कहानी सुनाते हैं वो पूरी कारगर है यहाँ पर (हँसते हुए).. भ्राताजी ये विशेष होता है जैसे नम्रता की भी हमारी बात हो रही थी कल तो यहाँ कई बार एक ईगो (अभिमान) आ जाता है कि मैं सही हूँ तो मैं क्यों झुकूँ ! तो ये वाली बात खुद को समझाना कई बार कठिन लगने लगता है ..
बी. के. सूरज भाई : इसमें कुछ ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है | मैंने एक हफ़्ते के लिए कहा है .. यस सर, यस माताजी ..आप जो कहेंगी हम वो ही करेंगे .. आप इस घर की बड़ी हैं, मालकिन तो आप ही हो, हम तो बाद में आए हैं ! कहने में क्या जाता है, एक बार कह के तो देखो !
रुपेश कईवर्त : भ्राताजी, अगला mail हमारे पास आया है कार्तिक जी का इंदौर से | ये कह रहे हैं कि भ्राताजी नोटबंदी पर बहुत सारे विचार आ रहे हैं, कई इसे अच्छा मानते हैं कई इसे बुरा मानते हैं, तकलीफ़ तो हमें भी हो रही है .. आप के विचार जानना चाहते हैं कि आप इसपर क्या कहेंगे ! इसे हम सहज रूप से लें .. ये पॉजिटिव है या नेगेटिव है .. आध्यात्म इसपर क्या कहता है ?
बी. के. सूरज भाई : देखिये, नोटबंदी तो हो ही गई .. अब वो पार्ट तो पूरा हो गया | प्रेसिडेंट ने भी आज कुछ कहा, दूसरी पार्टियों ने भी कुछ कहा ..
रुपेश कईवर्त : ये चीज़ें लगातार होती रहती हैं ..
बी. के. सूरज भाई : कोई भी जब एक कदम उठाया जाता है .. प्राइम मिनिस्टर इंद्रा गाँधी ने भी कभी हज़ार का नोट बंद किया था तब भी हाहाकार हुआ था .. होता है ! लेकिन मैं ऐसा सोचता हूँ कि इन लोगों के मन में जो भारत के भविष्य को लेकर जो एक विज़न है, ये उस विज़न को पूर्ण करने के लिए कार्य कर रहे हैं ..
पहले हम दूसरे देशों में देखकर आए थे वहाँ भी ऐसे ही कैशलेस पेमेंट होते हैं तो कभी कभी अच्छा रहता है कि किसी को पैसे लेकर चलने की ज़रूरत नहीं है, चोरी का डर नहीं, सबकुछ ठीक ठाक होता है .. सरकार को भी टैक्स अच्छी तरह से प्राप्त हो जाएगा |
तो तकलीफ़ तो हुई हम लोगों को भी आश्रम में, बहुत सारी कठिनाइयाँ .. हमे अपने लेबर को भी कम करना पड़ा, भोजन को भी एकोनोमिकली चलाना पड़ा .. सबकुछ हुआ है कठिनाइयाँ हुई हैं | लेकिन कुछ कठिनाइयों को तो सहन करना ही पड़ता है .. ठीक है भई वो भी अपने भारत के भविष्य के लिए विज़न को कुछ अच्छा देखते हैं .. बनाना चाहते हैं !
मुझे अच्छी बात लगी थी जब फाइनेंस मिनिस्टर ने कहा था कि कल को तो हम नहीं रहेंगे लेकिन हम ऐसी चीज़ देना चाहते हैं संसार को, भारत के वासियों के लिए करना चाहते हैं जो सदा सब कठिनाइयों से मुक्त रहें .. ये भ्रष्टाचार, ये ब्लैक मनी सब ख़तम हो जाए | तो ये intension बहुत अच्छा है, नो डाउट कि कठिनाइयाँ हुई हैं, बहुत कठिनाइयाँ हुई हैं ..
पैसे के बिना लोगों ने जीवन यापन किया है और मैं तो ये सोचता हूँ कि ये भी एक अच्छी तैयारी है कि कम पैसा हो, दाल-रोटी खानी पड़े, साधनों के बिना भी थोड़ा चलना पड़े तो सहज हो जाए और आदत भी पड़ जाए तो सब ठीक हो रहा है, कुछ बुरा नहीं होगा ..
कुछ समय के बाद इसके गुड रिजल्ट .. सब सीख जाएंगे ना कैशलेस .. पहले तो मोबाइल भी कहाँ जानते थे अबतो मजदूर के हाँथ में भी मोबाइल है, पति जोधपुर में है और वो यहाँ है बात कर रहे हैं .. उन्हें लगता ही नहीं है कि हम अलग हैं |
तो सब सीख गए .. ये भी एकाध साल में सीख जाते हैं फ़िर एक सुंदर भविष्य आएगा |
रुपेश कईवर्त : मतलब इसके अच्छे रिजल्ट्स रहेंगे और एक अच्छे intention के साथ ये चीज़ की गई है | अगला mail हमारे पास मोनिका जी का आया है जोधपुर से, वो कह रही हैं कि बाबा की वर्तमान प्रेरणाएं क्या हैं और खासकर जो अभी बाबा ने मुरली चलाई कि आप अपनेआप को पूरी तरह एकाग्र करो आधे घंटे भी कर लो, एक घंटे भी कर लो, तो ये तो बहुत बड़ी सी बात हो गई है साधना के लिए !
हमको 1 मिनट या आधे मिनट भी अपनेआप को पूरी तरह एकाग्र नहीं कर पाते हैं │ यदि ऐसी लम्बी एकाग्रता हमें प्राप्त करनी हो तो कैसे करें और बाबा की वर्तमान प्रेरणाओं पर भी प्रकाश डालें │
बी. के. सूरज भाई : हाँ, निश्चित रूप से बहुत बड़ी बात ये आई है │ ये बातें बहुत बार ईश्वरीय महावाक्यों में सुनी गईं हैं कि अपने मन-बुद्धि को किसी भी स्वरूप पर लम्बा समय स्थिर कर सको ! जब चाहो, अन्य परिस्थिति भी हैं तब, रात को, दिन में, सवेरे, दोपहर, शाम, जो भी समय हो .. 10 मिनट चाहो 10 मिनट, अपने मन-बुद्धि को स्थिर कर सको !
जो ऐसा लम्बे काल के अभ्यासी होंगे वही लम्बे काल के राज्य अधिकारी बनेंगे ! इस पर बाबा ने बहुत फोकस किया │इससे साइलेंस पॉवर इकट्ठी होगी, इससे चमत्कारिक पॉवर आत्मा में आ जाएगी, जिससे वो विश्व-कल्याण के कार्य में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकेंगे │
तो बाबा की जो प्रेरणाएँ हैं वो यही हैं, इसपर मैं आता हूँ अभी │ बाबा की प्रेरणाएँ यही हैं कि अभी समय समाप्ति की ओर जा रहा है, अभी ये विश्व-परिवर्तन का कार्य कुछ भयानक रूप लेने जा रहा है .. मैं यही शब्द यूज़ करूंगा │ मैं केवल ये नहीं कहूँगा कि केवल परिवर्तन होगा छोटा-मोटा .. एक भयानक रूप होगा इसका क्योंकि जो कुछ नहीं है वो आएगा, जो है वो नहीं रहेगा │
सब परिवर्तन हो जाएगा, हर तरह से │ चाहे वो economically हो, socially हो, रिलीजियस हो, spirituality के आधार पर हो या प्यूरिटी वाइज (purity wise) हो, या मनुष्य के मोरल वैल्यूज (moral values) के आधार पर हो, और सांसारिक भी धरा पर, आकाश में, गृहों में बड़ी changes आने जा रही है │ तो इसके लिए शिवबाबा ये चाहते हैं कि मेरे बच्चे तैयार हो जाएँ │
ऐसा नहीं कि संसार जब कष्टों से गुज़रे तब मेरे, बच्चे भी कष्टों में हों, जब संसार में भय व्याप्त हो तब मेरे बच्चे भी भयभीत होकर घर में छुपे हुए हों, हमें सबके भय निकालने हैं, हमें सबको रास्ता दिखाना है, सबको वाइब्रेशन देकर मदद करनी है इसलिए तैयारी चाहते हैं बाबा │ इसलिए बहुत अच्छी-अच्छी बातें आ रही हैं मन को डांस कराओ, मन को शांत करो, मन को पावरफुल बना दो ! ये बहुत जरूरी है │
तो ये जो एकाग्रता वाली बात है ये बहुत बड़ा टॉपिक है, हम पहले भी इसपर चर्चा करते आए हैं, ये वही है जिसे श्रीमत भगवत गीता के दूसरे अध्याय में स्थितप्रज्ञ योगी कहा गया है, जिसकी बुद्धि स्थिर है ऐसा योगी │ तो देखिये, पहली चीज़ है जो आत्मिक स्वरूप का बहुत अभ्यास करते हैं, जो दूसरों को आत्मा देखने की प्रैक्टिस करते हैं, उनके लिए ये एकाग्रता बहुत सहज हो जाती है │
जो आत्मा स्वमान में बहुत अच्छे से स्थित रहती है, उनके लिए भी ये साधनाएं बहुत अच्छी हो जाती हैं │ मैं कुछ धारणाओं की बातें कर लूँ ! इसके लिए मनुष्य को अन्तर्मुखी होना चाहिए, बहुत संतुष्ट, मैं-पन से मुक्त, बहुत सरलचित्त .. ताकि उसका मन कहीं भटके नहीं │
फ़िर शिवबाबा ने इस विश्व को ड्रामा कहकर इसके आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दिया है, उसका प्रयोग करना .. ताकि चित्त शांत रहे, दूसरों के लिए साक्षीभाव आ जाए │ये कुछ धारणाएं हैं जो मनुष्य को व्यर्थ से मुक्त रखती हैं |
अगर मनुष्य इन धारणाओं को जीवन में नहीं लाता और वो सोचता है कि मैं अपने मन को कंट्रोल कर लूँ ज़बरदस्ती.. वो होगा नहीं और टेंशन दे देगा .. दिमाग पर उसका नेगेटिव इफ़ेक्ट होगा | इसलिए अच्छाइयों के द्वारा बुराइयों पर विजय, पॉजिटिव चिन्तन के द्वारा, elevated चिंतन के द्वारा व्यर्थ को ख़तम करने का यह तरीका है |
पांच-सात चीजों पर हमें इसकी प्रैक्टिस करनी है | इन्होंने कहा 10 मिनट, आधा घंटा .. ये बहुत ज़्यादा है, मैं कहूँगा 1 मिनट से शुरू करें ! 1 मिनट आत्मिक स्वरुप पर स्थिर होते हुए .. मन-बुद्धि .. मन चिन्तन करेगा, बुद्धि visualize करेगी (दृश्य देखेगी).. दर्शन करेगी | तो आत्मा का दर्शन करते हुए, मन से चिन्तन कर लें .. एक मिनट | और कोशिश करें कि चिन्तन आत्मा के बाहर ना जाए |
दूसरा चिन्तन शिवबाबा का कर लें .. परमात्मा का .. उसके स्वरुप को निहारते हुए उसके गुणों का चिन्तन करलें | बाकी चिन्तन पांच स्वरूपों का करलें | इसमें आत्मा का एक स्वरूप आ गया .. छः हो गए | सातवीं स्थिति बना लें, बाप-दादा से मिलना, उनसे वरदान लेना, उनसे बातें करना, उनकी शुक्रिया करना |
ये सात चीज़ें हो गईं .. एक-एक मिनट से शुरू करें, फ़िर हरेक को 2 मिनट तक ले जाएँ .. 3 मिनट फ़िर ये बहुत easy हो जाएगा | पांच मिनट तक अगर आप ले गए तो .. पांच सत्ते 35 .. तो 35 मिनट आपकी एकाग्रता बहुत सुंदर हो जाएगी |
और जब एक बार एकाग्रता होने लगेगी, तो इसका रस, इसका परमआनंद चित्त को लम्बे समय तक शांत और एकाग्र करेगा | बस मैं इतना थोड़ा सा कहूँगा कि 10-15 मिनट सवेरे, 10-15 मिनट शाम को .. बिलकुल टाइम स्पेयर करके, एकांत में चीजों का अभ्यास कर लें रोज़, तो कुछ ही दिनों में .. मैं नहीं समझता सात दिन से ज़्यादा लगेंगे .. इनको पहले दिन से ही होगा .. एक सुखद फ़ीलिंग, और एकाग्रता बहुत बढ़ती जाएगी और फ़िर अगर हम चाहेंगे जो बाबा ने कहा .. आधा घंटा, सवा घंटा .. वो हम कर पाएँगे |
रुपेश कईवर्त : बिलकुल ! भ्राताजी, विद्यालय से जुड़े हुए भाई-बहन इन प्रैक्टिस को करें, क्या यही same प्रैक्टिस जो हमारे भाई-बहनें विद्यालय से नहीं जुड़े हुए हैं जो इसे घर बैठे देखते हैं राजयोग का अभ्यास करते हैं .. वो भी इसे कर सकते हैं ?
बी. के. सूरज भाई : हाँ, इन्हें सभी कर सकते हैं क्योंकि ज्ञान तो सब को मिल ही गया है और ज्ञान लेने के लिए आश्रम पर जाएँ भी ताकि ये चीज़ें बहुत क्लियर हो जाएँ |
रुपेश कईवर्त : जी..जी.. बहुत-बहुत शुक्रिया भ्राताजी, सुंदर प्रकाश के लिए | मित्रों, एकाग्रता की आवश्यकता तो हमें हर स्थान पर पड़ती है |
यदि हम साधना कर रहे हैं, योगाभ्यास कर रहे हैं, तो इसकी परमआवश्यकता है ही लेकिन अगर हम कार्यक्षेत्र पर भी रहते हैं तब भी एकाग्रता के आधार पर ही हमें सफ़लता प्राप्त होती है, तो क्यों ना हम भी थोड़ी-थोड़ी देर ध्यान का, योग का अभ्यास करें, मन को एकाग्र करें और महसूस करें, देखें कि कैसे कार्यक्षेत्र में ये प्रभाव डालता है या हमे सफ़लता की ओर ले चलता है |
भ्राताजी कई बार हमसे चर्चा करते हैं कि ये बात योगदर्शन में लिखी गई है कि यदि आप 32 मिनट तक पूरी तरह अपने मन को एकाग्र कर लेते हैं तो आपको मनइच्छित सिद्धि प्राप्त हो जाती है | कितनी बड़ी-सी बात है ये !
सचमुच ! हम उस ओर बढ़ेंगे भी और थोड़ी-थोड़ी देर की एकाग्रता से शुरुआत करें और देखें कि कैसे जीवन बदल रहा है .. कैसे हर कार्य में हमें सफ़लता प्राप्त हो रही है ! तो आपका जीवन सफ़लता से परिपूर्ण हो, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ
नमस्कार !!