Samadhan Episode – 932 Understanding ‘Karm’

CONTENTS

  1. ऋषि-मुनियों ने ऐसा क्यों कहा कि बुरे कर्म करेंगे तो बुरी योनि में चले जायेंगे !
  2. जो अच्छा करते हैं, उन्हें भी दुःख क्यों भोगना पड़ता है ?
  3. क्या हम पास्ट के बुरे कर्मों को बैलेंस कर सकते हैं ?
  4. कर्म और काल में क्या सम्बन्ध है ?
  5. कर्म फिलोसोफी का साइंटिफिक प्रूफ क्या है ?
  6. कई लोगों को बुरा कर्म करके ख़ुशी क्यों मिलती है ?
  7. हमारी consciousness (चेतना) का कर्मों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
  8. सच्चा आनंद किसे कहेंगे ?
  9. क्या परमात्म कृपा होना भी कर्म का फ़ल है ?

रुपेश कईवर्त : नमस्कार ! आदाब ! सतश्रीअकाल ! मित्रों, आपका स्वागत है, कर एक नई समस्या का समाधान हमारे साथ हैं एक खास मेहमान कार्यक्रम में | मित्रों, एक कागज़ का टुकड़ा हवा के झोंके से उड़कर के पर्वत के शिखर पर पहुँच गया,

जब वो वहाँ पहुँचा तो पर्वत ने बड़े प्यार से उसका सत्कार किया और कहा कि आप यहाँ कैसे ! तो कागज़ ने कहा कि बस मैं अपने दम पर यहाँ पहुँचा हूँ | उसके अहम के भाव से कहे हुए शब्द बस कहे ही थे कि एक और हवा का झोंका आया और वो

कागज़ का टुकड़ा उड़कर के नाली में जा गिरा | मित्रों, जीवन में कई बार होता है हमारे साथ भी कि जब पुण्य कर्मों का झोंका आता है तो हम शिखर पर पहुँच जाते हैं | और कई बार पास्ट के पाप कर्मों का भी झोंका आता है और हम रसातल में चले जाते हैं |

जब शिखर पर रहें तो हमे अहम नहीं करना चाहिए | लेकिन और भी अच्छे कर्म करते रहना चाहिए ताकि शिखर पर बने रहें और वो कर्म हमारे आगे भी काम आयें | कई बार कर्मों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता, जो है वो ठीक है, जैसी संसार की रीति है वो ठीक है |

जो हमारे मन को अच्छा लगता है वो हम करते चले जाते हैं, ये नहीं सोचते हैं कि जो हम अभी कर रहे हैं उसका परिणाम भी हमे भोगना पड़ेगा | ये शाश्वत सत्य है मित्रों, जो कि आध्यात्म हमे सिखाता है | आज इसकी चर्चा इसलिए क्योंकि बहुत सारे

आपके जो प्रश्न हैं वो कर्मों के ऊपर, जो हमारे पास आए हुए हैं, और इसका समाधान करने के लिए आज हमारे मंच पर ज्ञान योग की बहुत ही अनुभवी वक्ता, ब्रह्माकुमारीस की वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका आदरणीय राजयोगिनी ऊषा दीदीजी हैं | आइए, उनका अभिनन्दन करते हैं

और साथ ही समाधान की ओर आगे बढ़ते हैं | दीदी बहुत बहुत स्वागत और अभिनन्दन है आपका..

बी.के. ऊषा दीदीजी : ओम शांति |

रुपेश कईवर्त : ओम शांति ! दीदी इससे पहले कि mails की ओर आयें, कर्मों पर, पहले के ज़माने में बहुत ध्यान दिया जाता था, कि भई ऐसे कर्म करो तो ऐसा परिणाम मिलेगा | यदि बुरे कर्म करते हो तो इस योनि में चले जाओगे ! आज क्या लगता है,

ऐसी कोई चर्चा होती है ! थोड़ा अभाव महसूस होता है | इस विषय में क्या कहना चाहेंगी आप !

बी.के. ऊषा दीदीजी : वैसे देखा जाये तो एक डर क्रिएट किया गया था, ताकि मनुष्य अच्छे कर्म करे | क्योंकि कहा जाता है कि पहले के ज़माने के जो ऋषि-मुनि थे, वे बड़े सिद्ध होते थे | और इतने सिद्ध होते थे कि कई बार वो अपने शरीर को कहीं गुफ़ा में छोड़ कर के,

they were able to travel through time | समय के अन्तराल से गुज़र सकते थे | और जब वो कलिकाल को देखते थे तो मनुष्य घोर पाप करता हुआ दिखाई दिया | तो उनके मन के अंदर ये ही शुभ भावना जागृत हुई कि मनुष्य ऐसे रसातल में ना पहुंचे |

तो इसलिए उन्होंने आकर के ये ज्ञान देना शुरू किया ताकि मनुष्य के अंदर एक डर रहे और बुरा कर्म ना करे | उसके लिए उन्होंने कहा कि आपको कैसी-कैसी योनियों में जाना पड़ेगा ! ये होगा, अगर आप बुरे कर्म करेंगे तो !

आपको ऐसी-ऐसी सज़ा भोगनी पड़ेगी | तो धर्मराजपुरी की सज़ाओं का वर्णन उन्होंने बहुत लिटरल सेंस में किया | लोगों को कहा कि आपको ऐसी योनियों में जाना पड़ेगा | माना, मनुष्य डरते थे | उन बातों का स्मरण करते थे, तो सोचते थे कि नहीं बाबा इतनी बुरी गति को हमे नहीं पाना है..

रुपेश कईवर्त : शायद हरेक कर्म के लिए ये व्याख्या देते थे कि यदि आप ये करोगे तो इस योनि में जाना पड़ेगा |

बी.के. ऊषा दीदीजी : हाँ वो भी था कि अगर आप चोरी का काम करते हैं तो बिल्ली की योनि में.. जो चोरी से दूध पीती है | माना इस तरह से, जैसे कोई हिंसा का कार्य करेंगे तो हिंसक की योनि में जाना पड़ेगा | जहाँ से उसके बाद आपका

जीवन पूरा हिंसक ही बन जाएगा, तो ये भी कहा जाता था | और इसलिए मनुष्य उन योनियों के नाम से भी जैसे सोचता था कि इससे तो स्वर्ग लोक में नहीं जाएँ ! तो ये बताया जाता था कि अगर आप अच्छे कर्म करेंगे तो आप स्वर्ग लोक में जायेंगे,

ऐसी सुख की भोगना मिलेगी, उपलब्धि होगी | तो मनुष्य के मन के अंदर यही भाव जागृत हुए | फ़िर कई लोगों ने ये सोचा कि भई मोक्ष को प्राप्त कर लेंगे | परमात्मा के बाजू में जाकर बैठेंगे या लीन हो जायेंगे | तो ये इसलिए था ताकि मनुष्य के अंदर

कभी बुरे काम करने का भाव जागृत ही ना हो | जैसे मानलो कि आज एक छोटा बच्चा है, जब घुटना करना सीखता है तो घड़ी-घड़ी घर से बाहर जाना चाहता है ! और उस समय माँ को बहुत ध्यान रखना होता है कि कहीं वो रास्ते पर ना निकल जाये !

इसलिए माँ क्या करती है उस बच्चे को दरवाजे तक ले जाती है और बाहर जाकर कुत्ता या गाय दिखा कर कहती है कि अगर बाहर गये तो ये कुत्ता उठा कर ले जायेगा, ये गाय उठा कर ले जाएगी | और ये बात वो बच्चा सच मान लेता था

कि मेरी माँ ने कहा है माना सच ही है | इसलिए वो घुटना करते हुए दरवाजे तक जाता भी था, जैसे ही वो कुत्ते या गाय को देखता था तुरंत वापिस अंदर आ जाता था | और इतना खुश होता था, उस ख़ुशी में व्यक्त करना चाहता था कि आई ऍम सेफ (मैं सुरक्षित हूँ) ! मैं बाहर नहीं गया !

माँ का अगर ध्यान नहीं भी है तो भी वो सेफ रहता था | लेकिन जब वो बच्चा बड़ा हो जाए, समझदार हो जाए तब उसको कहा जाए कि बाहर गया तो कुत्ता उठा कर ले जाऐगा, उस बात को वो स्वीकार नहीं करेगा | हँसते हुए चला जाऐगा और

जाकर कुत्ते के बच्चे को उठा लायेगा | और कहेगा कि लो मैं ही ले आया | तो इसी तरह जब ऋषि-मुनियों ने जब ये बात कही तो लोगों ने भी सच मान लिया ! बड़े इनोसेंट थे ! पवित्र, निर्मल भावना वाले थे तो उस बात को सच मान लिया …

रुपेश कईवर्त : और उन्होंने अच्छे भाव से ही कहा था |

बी.के. ऊषा दीदीजी : हाँ ! मनुष्य को सेफ रखने के भाव से ही कहा था | हमारी जिम्मेवारी है, समाज को बुरे दिशा की ओर ना जाये उसके लिए | और इसीलिए मनुष्य सेफ रहा | लेकिन जबसे विज्ञान का युग आया, मनुष्य उसमे तरक्की करने लगा, बड़ा हो गया, समझदार हो गया |

समझदार होने के बाद लगा कि ये कैसे हो सकता है ! देखा जाएगा ! बुरे कर्म करके देखते हैं | देखें तो सही कि क्या होता है ! यहाँ भी हमे नर्क जैसी भोगना मिलती है | पर उस समय क्योंकि कोई पास्ट बुरे कर्मों का अकाउंट नहीं था, तो इसीलिए

वे अच्छा ही महसूस करते रहे | और उन्हें कुछ नहीं हुआ | लेकिन वो भूल गए कि बुरे कर्म भी संचित हो रहे हैं | बाद में मिलेगा, अभी तो पुण्य के खाते से.. अच्छा तो ये  बात जैसे उन्होंने सिद्ध करके दिखाई जैसे कि कुछ नहीं होता है,

ये भ्रम था, हमे डराया गया.. हमारे शास्त्रों ने हमे डराया.. ऐसी कोई बात नहीं है ! और इसलिए धीरे-धीरे बुराई की ओर खिंचता चला गया, आकर्षित होते गया, और फ़िर चले गया कि कुछ नहीं होने वाला |

रुपेश कईवर्त : मतलब व्यक्ति का जो कर्म के ऊपर ध्यान था वो ध्यान बिलकुल चला गया |

बी.के. ऊषा दीदीजी : माना, कलिकाल का प्रभाव होकर ही रहा | कलिकाल का ये प्रभाव.. तो ऋषि मुनियों ने कितना हमे बचाने का प्रयत्न किया लेकिन कलिकाल का प्रभाव तो होकर ही रहेगा | इसलिए इस दिशा में जब आगे बढ़ते रहे तो उनको ये फ़ीलिंग ही नहीं रही कि हमारे साथ कुछ बुरा होगा | और कई बार तो लोगों ने सोचा कि जो अच्छा कर रहे हैं, वो दुःख भोग रहे हैं |

रुपेश कईवर्त : और जो बुरा कर रहे हैं वो ऐश कर रहे हैं |

बी.के. ऊषा दीदीजी : हाँ जो बुरा कर रहे हैं वो ऐश कर रहे हैं | अब जो बुरा कर रहा है उसका पास्ट का अकाउंट इतना बुरा नहीं होगा, पुण्य का खाता ज़्यादा होगा इसलिए वो एन्जॉय कर रहे हैं | और जो लोग दुःख भोग रहे हैं,

ज़रुरी नहीं है कि इस जनम में अच्छे कर्म किये हैं इसलिए दुःख भोग रहे हैं ! उनका हो सकता है कि पास्ट में कुछ ऐसे एकाउंट्स होंगे, जिसके फ़लस्वरूप वो दुःख भोग रहे हैं |

रुपेश कईवर्त : दीदी एक यहाँ ये उठता है, उन्हीं लोगों के प्रश्न को मैं यहाँ रख रहा हूँ | कि पास्ट को किसने देखा है ! फ्यूचर को किसने देखा है ! प्रेजेंट को हम एन्जॉय कर लें | ये एक बहुत बड़ी मान्यता लेकर व्यक्ति चल रहा है | इस विषय पर आप क्या कहेंगी |

बी.के. ऊषा दीदीजी : मैंने एक बहुत अच्छी लाइन पढ़ी कल कि कल जैसा कुछ है ही नहीं, जो कुछ भी है आज है | जब कल जैसा कुछ है ही नहीं अगर.. क्योंकि ये दिन जब आगे बढ़ेगा कल, माना आने वाला कल, तो उस दिन भी आज ही हो जाऐगा ना !

रुपेश कईवर्त : जी..

बी.के. ऊषा दीदीजी : और जब कल में थे तब भी आज ही था | तो मतलब कल जैसा कुछ है ही नहीं | तो इसीलिए हर दिन आज ही है | तो इसीलिए अगर आज ही है और आज ही हम बुरे कर्म कर रहे हैं तो नेचुरल है कि उसका फ़ल भी आज ही मिलेगा | माना, जिस दिन भी मिलेगा आज ही मिलेगा | भावार्थ ये है कि कल जैसी कोई बात ही नहीं है |

रुपेश कईवर्त : जी..जी..

बी.के. ऊषा दीदीजी : और ये कहा हुआ है कि कर्म किसीको छोड़ता नहीं है | भगवान फ़िर भी छोड़ देगा, शैतान छोड़ देगा, खुद भी खुदको माफ़ कर देगा, जिसके साथ बुरे कर्म किये वो भी हमको माफ़ कर देंगे, लेकिन कर्म कभी भी इन्सान को छोड़ता नहीं है | वो तो हो कर ही रहेगा | अच्छा किया उसका भी मिलेगा,

समय थोड़ा लग सकता है | बुरा कर्म किया उसका भी फ़ल मिलेगा, समय लग सकता है क्यों ! समय भी इसलिए मिल रहा है हमे ताकि हम रियलाइज़ करें और कम से कम उस बुरे कर्म को बैलेंस कर लें, अच्छे कर्मों के साथ |

इसलिए ये समय मिला है, ये opportunity मिली है | लेकिन अगर उसको भी हम यथार्थ रीति यूज़ नहीं करते हैं फ़िर तो ये कर्मों और समय का ये खेल है | कर्म और काल, दोनों का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है | ‘क’ की भी राशि है तो कर्म और काल दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध है |

रुपेश कईवर्त : दीदी, आध्यात्मिक लोग इस चीज़ को बहुत आसानी से समझ सकते हैं, धार्मिक लोग भी बहुत आसानी से समझ सकते हैं | जैसे आपने विज्ञान की बात कही थी शुरुआत में, जो बुद्धिजीवी वर्ग है जो इन बातों में विश्वास नहीं करता, उन्हें यदि हम साइंटिफिक ढंग से या कोई ठोस रीज़न देकर अगर बात कहना चाहें कि आज तुम जो हो अपने पास्ट के कारण हो | उसे कैसे आप सिद्ध करेंगी !

बी.के. ऊषा दीदीजी : वैज्ञानिक लोग भी बहुत अच्छे से ये बात को समझ सकते हैं | क्योंकि ये लोग प्रयोग करते रहते हैं, और जब प्रयोग करते रहते हैं तो उसमे उन्हें रिजल्ट्स.. वो रिजल्ट्स ओरिएंटेड होते ही हैं कि हमने ये किया..

कि भई ये केमिकल .. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिक्स किया तो पानी मिलना ही है | ये उनका प्रयोग किया हुआ है | और जब प्रयोग करते हैं तो विश्वास करते हैं |

रुपेश कईवर्त : जब परिणाम मिलता है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : हाँ जब परिणाम मिलता है | इसी तरह हर चीज़ को उन्होंने शुरू भी किया कि सपोस x | और सपोस x से शुरू भी किया तो थ्योरम में भी जब उसका रिजल्ट आता है, कि x इज़ इक्वल टू ये ! तो इसी तरह अगर कर्म में भी इसी प्रिंसिपल को अप्लाई करके देखें तो शायद उनको रिजल्ट महसूस होना शुरू हो जायेगा |

लेकिन क्योंकि ये कर्म फिलोसोफी में वो प्रयोग को नहीं समझ रहे हैं | जो प्रयोग को नहीं समझेंगे, वो व्यक्ति यही सोचेगा कि विज्ञान ही सब कुछ है | विज्ञान भी इस बात के ऊपर आधारित है | इसलिए हर चीज़ का एक परिणाम है, हर खोज का एक आंसर है, हर प्रयोग का एक रिजल्ट है |

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. और क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धांत भी दिया ही हुआ है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : और इसी तरह हमारे जीवन में भी जो हम कर रहे हैं, उसका भी एक रिजल्ट है | और वो रिजल्ट ज़रुरी नहीं कि आज का आज मुझे मिले, लेकिन जिस दिन भी मिलेगा वो दिन भी आज ही होगा | तो मिलेगा ही |

इसीलिए अगर वो साइंटिफिक माइंड से भी उसे कैलकुलेट करना शुरू कर दें, तो ये भी एक प्रयोग करके देखते हैं | इमीडियेट, अगर कर्म की फिलोसोफी में प्रयोग करके देखना चाहें, तो हम यही कहें कि कोई भी अच्छा कर्म करके देखलो,

अच्छी मनसा के साथ | किसीको सुख देकर के देखो, सबसे इमीडियेट रिएक्शन जो आता है, कि  मुझे कितना सुकून मिला | और मिलता ही है | एक व्यक्ति को, बुज़ुर्ग व्यक्ति को, जो रास्ता क्रॉस करना चाहता है, लेकिन इतनी गाड़ियों

की दौड़ा-दौड़ी है कि वो नहीं कर पा रहा है, उसको आप हाथ पकड़ करके, गाडियों को हाथ देते हुए, उस बुज़ुर्ग को रास्ता पार करा दिया, और पार करा देने के बाद वो जो ब्लेस करता है, उस समय जो सुकून मिलता है… इमीडियेट रिजल्ट है | इमीडियेट रिजल्ट है (तुरंत परिणाम)|

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. ये तो बिलकुल सत्य बात आपने कही कि कोई अच्छा कर्म करते हैं, किसीकी मदद करते हैं, किसीको ख़ुशी देते हैं, तो हमे भी ख़ुशी मिलती है | लेकिन इसके साथ कुछ लोग ये भी प्रश्न करते हैं कि मुझे दुःख देकर ख़ुशी मिलती है ! कई लोग किसीको मार कर, किसीकी हत्या करके, किसीकी लूट-झपोट करके.. फ़िर वो आनंद .. कि मैने ये कर दिया ! फ़िर ये क्या है ?

बी.के. ऊषा दीदीजी : ऐसा है कि हर इन्सान के अंदर एक consciousness होता है, जिसे conscience कहते हैं | और वो conscious, कभी भी कोई भी इन्सान जब गलत कार्य करता है तो उसे रोकने का प्रयत्न करता है |

आप देखेंगे कि खूनी जो होता है ना ! जब वो पहली बार खून करने जाता है, एक चोर जब पहली बार चोरी करने जाता है, तो पसीना-पसीना हो जाता है | उसका conscious उसको कभी अलाओ (अनुमति) नहीं करता है | और जब अलाओ नहीं करता है,

बार बार उसे रोकने का प्रयास करता है, लेकिन दूसरे व्यक्ति जो उसके संग वाले हैं वो उसे फ़ोर्स करते हैं कि कर..कर.. तू कर.. तू कर सकता है .. तू क्यों नहीं कर सकता है ! माना इस तरह का फ़ोर्स पड़ता है, उस वक़्त सबसे पहले उसे अपने conscious को मरना पड़ता है, he has to kill his own conscious.

रुपेश कईवर्त : तो ये हर एक साथ होता है ?

बी.के. ऊषा दीदीजी : जी, ये हर एक के साथ होता है | और जब वो अपने conscious को मारता है, वो conscious डेड हो गया | अब उसको रोकने वाला कोई नहीं, अब उसको आनंद की फ़ीलिंग आती है | लेकिन उसके बाद की जो फ़ीलिंग होगी,

वो शायद बहुत ही भयानक होगी | इसीलिए, कभी भी कोई भी व्यक्ति जब पहली बार गलत काम करने जाता है, तो अंतर का आवाज़ उसको रोकता है, लेकिन उसको पहले उस आवाज़ को खतम करना पड़ता है | माना पहले उसे खुदका खून करना पड़ता है..

रुपेश कईवर्त : तब जाकर वो गलत काम कर सकता है !

बी.के. ऊषा दीदीजी : तब वो गलत करता है |

रुपेश कईवर्त : और तब वो उस गलत कार्य से आनंद लेता है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : तब वो आनंद लेता है | which is totally .. जिसको कहा जाए कि अमानवीय फ़ीलिंग है | वो आनंद की फ़ीलिंग नहीं है, वो अमानवीय फ़ीलिंग है | एक हैवान की फ़ीलिंग है |

रुपेश कईवर्त : मतलब उन चीजों में वो सुख और आनंद ढूंढने लगता है जो अमानवीय कृत्य है | कई सीरियल किलर के बारे में हम सुनते हैं या इस प्रकार की चीज़ें वो ऐसी करते हैं.. बाद में वो ये कहते हैं कि इसमें हमे आनंद मिला !

बी.के. ऊषा दीदीजी : वो आनंद नहीं ! वो एक प्रकार का जैसे व्यक्ति खुद पर हंस रहा है, खुद पर हंस रहा है | माना वो शैतान अंदर का उसके ऊपर हंस रहा है कि देखो मेरी जीत हुई ! मैने ये कार्य तुमसे करवा दिया |

तो वो खुद का आनंद नहीं है, उसने जो खुद के conscious को खतम करके एक शैतान को जनम दिया अंदर, वो शैतान उसके ऊपर हंस रहा है | शैतान उसके ऊपर हंस रहा है कि आखिर मेरी विजयी हुई ! देखो मैं जीत गया !

रुपेश कईवर्त : मैने तुम्हारी अच्छाई को खतम कर दिया |

बी.के. ऊषा दीदीजी : तो वो आनंद का अनुभव नहीं कर रहा है, लेकिन वो शैतान उसके ऊपर हंस रहा है कि आज मेरी तेरे ऊपर जीत हो गई |

रुपेश कईवर्त : क्या ऐसा कोई अनुभव.. क्योंकि लम्बे समय से आप काफ़ी लोगों से मिलती-जुलती हैं, कोई ऐसा व्यक्ति आपको मिला जो उन क्रतियों को आनंद से किया करता था पर बाद में उसे फ़ील हुआ कि नहीं ये गलत था और सच्चा आनंद तो कुछ और है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : सही बात है ! ऐसे मैं कई भाई-बहनों से मिली हूँ, जो इस ईश्वरीय विश्वविद्यालय के अंदर आए और उन्होंने अपना अनुभव शेयर किया | एक भाई ने बताया कि मैं दिन-रात शराब पीता था, शराब के नशे में हमेशा चूर रहता था, सिगरेट तो ना जाने कितनी पी लेता था मैं | लेकिन उसके बाद मैं..

शादी-शुदा होने के बावजूद भी मैं बार (bar) में पड़ा रहता था | बार के अंदर भी मेरे पास इतने सारे थे कि मेरे पास बहुत सारा पैसा था, ऐसा मैं पैसे लुटाता था लोगों को, मेरे चारों ओर लड़कियाँ होती थीं | ऐसा मेरा जीवन था और उसी को मैं आनंद समझता था |

वो ही जिंदगी है, मुझे ये स्पिरिचुअल क्या होता है उसकी abcd भी मालूम नहीं थी | लेकिन एक बार जब बहनें मेरे सामने आ गईं, तो उनकी एक जो निर्मलता और एक पवित्रता के वाइब्रेशन.. तब मुझे लगा कि ये कुछ है | और मैंने सोचा कि ये…

गया तो था मैं फिजिकली वो बहनों को देखकर के ही | गया.. लेकिन उसके बाद उन्होंने जितनी भी प्रैक्टिकल बातें मुझे सुनाई, और बहुत अच्छी बातें लगने लगी मुझे उनकी | धीरे-धीरे मेरे अंदर एक परिवर्तन आया | और उसके बाद मैने समझा कि

आध्यात्मिकता क्या होती है ! और उस दिन जब पहली बार मैं योग में बैठा, मुझे बिठाया और एक कमेन्ट्री लगाई तो उसके बाद मैंने एक अलौकिक आनंद की अनुभूति की | तो मैं यही कहूँगी कि परमात्मा ने उसे अलौकिक आनंद क्या होता है

उसका अनुभव कराया | और जब वो अब उस डिफरेंस को महसूस किया कि उस समय जब मेरे पास इतनी लड़कियाँ होती थीं, इतने दोस्त होते थे.. पूरे व्यसनों में ऐसे … जैसे नर्क में मेरा जीवन था | आज वो महसूस कर रहा है |

नर्क में मेरा जीवन था जहाँ से जैसे भगवान ने मुझे उठा लिया और कहाँ बिठा दिया | कहा, शुरू में तो किसीने मुझपर विश्वास नहीं किया कि मैं बदल गया हूँ | वापिस मुझे खींचने का प्रयत्न करने लगे, लेकिन अब मुझे उस तरफ़ जाने का

मन नहीं हो रहा था | ऐसा लग रहा था कि यह कीचड़ था, मन नही हो रहा था | उसके बाद जो है, उसने कहा कि मैं इतना बदल गया, मैं आध्यात्मिक जीवन में चलने लगा | उसके बाद जो मेरी वाइफ (पत्नी) मुझे छोड़कर चली गई थी, उसने भी मुझपर विश्वास नहीं किया |

रुपेश कईवर्त : अच्छा ! ये बदल गया है…

बी.के. ऊषा दीदीजी : ये बदल गया है ! लेकिन जब उसने लोगों से सुनना शुरू किया, अरे ये तो एकदम देवता बन गया ! पता नहीं क्या हो गया उसको ! ब्रह्माकुमारियों ने क्या जादू किया, लोग उसको जादू समझते थे कि पता नहीं क्या जादू कर दिया !

रुपेश कईवर्त : पर ये तो अच्छा जादू है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : वो भी कहता है कि अच्छा जादू है, अगर इसको ही जादू कहा जाता है तो अच्छा जादू है | और आज जब मैं बदल गया तो मेरी वाइफ धीरे-धीरे डरते-डरते नज़दीक आई कि पता नहीं.. पर सचमुच उसके

बाद उसने कहा कि जो मेरे साथ में थे मेरी साथी उनको भी मैंने ज्ञान देने का प्रयत्न किया | पर धीरे-धीरे लोग मुझसे दूर होते गए | क्योंकि अब मैं पैसा खर्च नहीं कर रहा था उनके पीछे | तो इसलिए अब वो फ्रेंडशिप ही खतम हो गई | और वो चले गए दूर, बहुत दूर चले गए |

रुपेश कईवर्त : चलिए बुरी संग से वो मुक्त हो गए और जीवन एक सुन्दरता की ओर बढ़ा | दीदी इस प्रसंग से एक चीज़ निकलकर मेरे जहन में आ रही है, कि परमात्म कृपा हुई तो व्यक्ति एक सच्चे आनंद की ओर बढ़ पाया | तो परमात्म कृपा होना भी कर्म का फ़ल है ! क्या कहना चाहेंगी आप ! इसको किस ढंग से समझाएंगी आप !

बी.के. ऊषा दीदीजी : पिछला अच्छा कर्म का उदय हुआ और जब वो उदय होता है तो वो इस फ़ीलिंग की ओर ले जाता है | वो कर्म उसको खींचता है | वो भाई ने बताया कि मैं सारे बुरे कर्म करता था, लेकिन बुरे कर्म में भी मैं यही सोचता था कि यही जीवन है |

यही जीवन है सोचकर करता था | लेकिन उसमे भी ना जाने मैंने कितने पैसे ऐसे ही उड़ाए, किसीको मदद भी किया, हो सकता है वो पुण्य कर्म.. जो आशीर्वाद उनको मिली थी, वो कर्म, वो आशीर्वाद फलीभूत हो गया | यही कहेंगे |

रुपेश कईवर्त : दीदी जो लोग, जैसे कि आपने ये एक्साम्प्ल(उदहारण) दिया ऐसे बहुत लोग हैं यदि हम अपने चारों ओर देखें तो इसी चीज़ को आनंद मान रहे हैं, इसी को जीवन मान रहे हैं | माना पैसा होना चाहिए, और ये सब जो आप कर रहे हैं

तो मतलब आप लाइफ को एन्जॉय कर रहे हैं | तो जब हमने इसे आनंद मान लिया है तो कैसे व्यक्ति उस सच्चे  आनंद की ओर बढ़े ! क्योंकि वो यहाँ यदि है, व्यसनों में है तो ज़रूर बुरे कर्म भी अवश्य ही करता ही होगा !

बी.के. ऊषा दीदीजी : नेचुरल है बुरे कर्म करता ही है, तब ही वो बुरे कर्म में कहीं ना कहीं अगर उसने अपने conscious (चेतना) को मारा नहीं है और वो conscious revise (चेतना पुनः जीवित हो जाती है) हो जाता है कभी कभी | और उस समय उसको अंदर से एक

आवाज़ आती है कि भई कुछ और भी किया जाये | कुछ और ट्राई किया जाये | जब ये एक आवाज़ अंदर से आ जाती है कि भई ये तो बहुत अनुभव कर लिया है, बार-बार जब व्यक्ति उस लाइफ में होता है फ़िर उसके बाद उसको आनंद नहीं मिलता है | या कभी कभी उबने भी लगता है |

रुपेश कईवर्त : नीरसता आ जाती है |

बी.के. ऊषा दीदीजी : हाँ, continuity (लगातार) में जब देखता है या कभी-कभी व्यक्ति उसको स्वार्थयुक्त दिखाई देता है | खाली पैसे के लिए ही आ रहा है | बाकी उसको मेरे से कोई प्यार नहीं है ये नहीं है.. वो नहीं है.. तो उस समय जो है

उसको लगने लगता है कि ये नहीं कुछ और होना चाहिए | कुछ जम नहीं रहा है | तब जाकर के वो एक सच्चे खोज की ओर आगे बढने लगता है | और वो उसको मिल भी जाता है कभी कभी |

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