Samadhan Episode – 00011 Children Problems

CONTENTS :

1. एकाग्रता है क्या? किस चीज़ को हम एकाग्रता कहेंगे?

2. जहां एकाग्रता है वहाँ सम्पूर्ण सफलता है |

3. एकाग्रता में कमी का कारण क्या है ?

4. एकाग्रता अच्छी कैसे हो ?

रूपेश जी ………. नमस्कार, स्वागत है एक बार पुनः आप सबका समाधान में। विद्यार्थियों की

चर्चा बहुत गुह्य से गुयहतम होती चली जा रही है और बहुत आनंद भी आ रहा है। इन सभी

चर्चाओ को करते हुए कि सचमुच किन-किन बातों का समावेश यदि जीवन में हो जाए तो जीवन

का पूरा ही स्वरूप परिवर्तित हो जाए। मूल्यो की चर्चा पिछले सत्र में हम सब कर रहे थे और

हमने देखा की बहुत सारे मूल्य यदि जीवन में आ जाते है तो जीवन मूल्यवान बनता चला जाता

है जिनमें सादगी है, स्वच्छता है, सम्मान है, सहनशीलता है। कहने में कितने सुंदर लग रहे है

तो यदि ये हमारे जीवन में आ जाए तो कितना सुंदर हो जाएगा, पूरा ही समाज , पूरा ही देश

परिवर्तित हो जाएगा और एक अच्छी बात ये भी थी कि हम बीड़ा उठाए। ये न सोचे कि समाज

में क्या हो रहा है लेकिन हम बीड़ा उठाए क्योंकि एक महापुरुष अपने साथ परिवर्तन लेकर

चलता है और जब वो चलता है कारवां उसके पीछे-पीछे चलने लगती है। इस चर्चा को हम आगे

बढ़ाएँगे, भ्राताजी हमारे साथ है।आइये हम सब मिल करके उनका स्वागत करते है। भ्राताजी

आपका बहुत-बहुत स्वागत है।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी …….. धन्यवाद

 

रूपेश जी ………… भ्राताजी पिछली बार हम लोगों ने चर्चा की थी कि मूल्यो का संबंध हमारी

एकाग्रता से भी है और आज हम कहीं भी चले जाए , किसी भी स्कूल में चले जाए, college में

चले जाए तो एक बात जरूर उठकर हमारे सामने आती है कि आज एकाग्रता कहीं न कहीं कम

होती जा रही है तो पहले तो हम इस चीज़ को स्पष्ट करना चाहेंगे भ्राताजी कि वास्तव में

एकाग्रता है क्या? किस चीज़ को हम एकाग्रता कहेंगे?

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ……… देखिये एक पर जब हम स्थिर हो जाए, किसी भी एक चीज़ पर।

मान लो हमे पढ़ाया जा रहा है तो केवल पढ़ाई पर एकाग्र करे, हम खेल रहे है तो केवल खेल

पर एकाग्रता । जैसे महाभारत मे अर्जुन का दृश्य इसमें दिखाया गया है जब उनकी परीक्षा हो

रही थी तो गुरु द्रोणाचार्य सबसे पूछ रहे थे कि सामने चिड़ियाँ की आँख मे तीर मारना है- कौन

क्या देख रहा है? तो कोई कहता पेड़ भी है, गुरुदेव भी है, सब पांडव – कौरव भी है लेकिन

केवल अर्जुन ने कहा था मुझे केवल चिड़ियाँ कि आँख दिख रही है तो ये सब हो गई एकाग्रता।

तो किसी भी लक्ष्य मे अपनी मन और बुद्धि को स्थिर कर देना – ये एकाग्रता है।

 

रूपेश जी ……. मतलब जो भी यदि आप पढ़ाई पढ़ रहे है तो पढ़ते समय पढ़ाई पर एकाग्रता,

खेल रहे है तो खेल पर एकाग्र और वास्तव में यदि देखा भी जाए भ्राताजी…यदि batsman

bating कर रहा है और उस समय यदि वो वहाँ नहीं है अर्थात एकाग्र नहीं है तो out हो जाएगा

या फिर कोई doctor है, operation कर रहा है, उस समय यदि वो एकाग्र नहीं है उसका मन,

उसकी बुद्धि कहीं और है………

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी …….तो कैंची अंदर छोड़ देगा

 

रूपेश जी……………………….बिलकुल कई ऐसे cases भी देखने मे आते है, एकाग्रता की कमी

के कारण ये सब होता है। तो एक चीज़ पर अपने आप को स्थिर कर देना भी एकाग्रता है।

महत्ता भ्राताजी इसकी क्या है? मतलब न केवल विद्यार्थिकाल में बल्कि पूरे जीवन मे इसकी

जरूरत पड़ेगी।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ………….. बस simply इतना ही समझिए कि जहां एकाग्रता है वहाँ

सम्पूर्ण सफलता है और सफलता जीवन में तो सबसे बड़ी प्राप्ति हो गई। हर व्यक्ति, हर field

में, घर से लेकर और जहां तक वो कार्यरत है, चाहे वो गाड़ी चला रहा है, चाहे वो bike चला

रहा है, चाहे उसके पति-पत्नी के संबंधो की बात है, चाहे वो घर में बच्चे भाई-बहने रहते है, चाहे

आपस ,में मिलकर कोई काम करना, कोई marriage हो रही है , कुछ भी, हर जगह मनुष्य

सफलता चाहता है, चाहे उसका exam है, तो जहां एकाग्रता है वहाँ सफलता है और एकाग्रचित्त

व्यक्ति अपने में बहुत संतुष्ट रहता है। इससे उसकी अपनी खुशी भी कायम रहती है, उसके मन

मे चिड़चिड़ापन भी नहीं होता, उसे परेशानी भी नहीं होती। total जीवन की भी ये सफलता है।

 

रूपेश जी ……….. और ये भी होता है भ्राताजी कि जिस कार्य को वो कर रहा होता है वो

बिलकुल ही perfection के साथ करता है और उसमे समय भी संभवतः कम लगता है।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ………….. कम लगेगा और उसमें उलझने कम आएगी, उसमें समस्याए

भी कम आएगी। मान लो एक mechanic के पास कोई motor लाया , और वो जल गया है,

उसको wiring करनी है दोबारा, तो अगर वो एकाग्रचित्त है तो बहुत जल्दी वो उससे करके दे

देगा और अगर वो एकाग्र है ही नहीं, उसके मन में कोई tension काम कर रही है, उसका मन

किसी बात से विचलित है तो fault उसके पकड़ मे ही नहीं आएगा।

 

रूपेश जी ……….. तो यही बात हो जाती है भ्राताजी कि class में lecturer या teacher पढ़ा

रहे है और बच्चे सामने बैठे हुए है। सामने teacher तो पढ़ा रहे है लेकिन उनका मन कहीं और

है मान लिजये बाहर playground मे, दूसरी क्लास के बच्चे खेल रहे है तो उसके मन में आता

है कितना अच्छा होता अगर मैं भी वहाँ खेल रहा होता, मैं इस ढंग से खेलता। तो यहाँ कुछ

और पढ़ाया जा रहा है, यहाँ कुछ और चल रहा है या फिर वो बैठा तो classroom मे है लेकिन

कल यदि कोई बात हो गई, वो चल रहा है तो शायद ये उनकी एकाग्रता में कमी का कारण है।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी …………………. बिलकुल ये होता है और उसमे विशेष रूप से बातों का

effect, खेल रहे है बच्चे उसका थोड़ा effect होगा लेकिन जो उसके साथ हो गया है, किसिने

उसको कुछ कह दिया है, कहीं उसकी भावनाओं को hurt कर दिया गया है। बच्चो की भी

भावनाएं hurt होती है। कहीं किसीने उससे दुर्व्यवहार कर दिया है, कहीं उसकी कोई इच्छाए पूर्ण

नहीं हुई है तो इसका effect उसकी एकाग्रता को नष्ट करता ही रहेगा और यहाँ उसका मन नहीं

लगेगा तो न वो यहाँ पढ़ाई को enjoy करेगा, न वो उन चीज़ो से मुक्त होगा।

 

रूपेश जी ……….. मतलब बातें उसके मन मे चल रही है और जब बुद्धि मे चूंकि मन बुद्धि से

ही उसे ग्रहण करना है, जो भी चल रहा है और यदि मन में वो बाते चल रही है तो वो ग्रहण

शक्ति उसकी कम हो जाती है, एकाग्रत कम हो जाती है तो भ्राताजी ये जो बाते चल रही है वो

कैसे दूर हो?

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ……………. अब इस relationship को भी सभी विद्यार्थियों को बहुत

अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि हमारे पास जो शक्तियाँ है पहले भी हमने चर्चा की थी- मन

और बुद्धि और इनको स्थूल रूप देने वाला, जैसे कम्प्युटर है हमारा brain, तो मन जितना

उलझनों से मुक्त होगा, मन जितना किसी भी बुरी बात के प्रभाव से मुक्त रहेगा या सहज भाषा

में कहे – मन जितना शांत है तो बुद्धि उतनी active है। बुद्धि की जो ग्रहण शक्ति है वो

बहुत बढ़ जाती है, वो बहुत sensitive है। उसके बारे में जो कुछ पढ़ाया जा रहा है, साथ-साथ

उसको ग्रहण कर रही है, कुछ भी reject नहीं करेगी, कुछ भी बाहर नहीं फेकेगी। तो final बात

यही है कि मन को शांत रखना बहुत जरूरी है जैसा आपने पूछा कि बातें कुछ हो गई है बच्चो

के सामने, अब बच्चो के पास न तो और तरह का ज्ञान है कि वो इसको avoid करे, मुक्त हो

जाए लेकिन हम उन्हें कुछ awareness देंगे और बच्चे इसमे ध्यान देंगे तो बच्चे उस बात से

जल्दी ही मुक्त हो जाएंगे। मान लो उन्हे कोई चीज़ चाहिए थी, उन्होने बाज़ार मे कोई चीज़

देखी और मम्मी से जिद्द की कि मुझे ये चीज़ चाहिए, अब मम्मी के पास पैसा नहीं है या

वक्त नहीं है जो उसको खरीद के लाके दे दे तो बच्चो को थोड़ा सा यहाँ धैर्यता धारण करनी

चाहिए कि कोई बात नहीं मैंने मम्मी को अपनी इच्छा बता दी है और मम्मी तो मेरी बहुत

अच्छी है सदा ही मेरी इच्छाओं को पूर्ण करने का खयाल रखती है, आज नहीं तो कल वो ला

देगी, मुझे वो चीज़ मिल जाएगी। इससे मन शांत रहेगा और उसे वो चीज़ मिल भी जाएगी।

दूसरी बात ऐसे ही मान लो कि किसी ने उसे बुरा बोल दिया- पढ़ नहीं रहा तुम तो गधे हो, तुम

तो बुद्धू हो, अब उसे गधा दिखाई दे रहा है सारा सामान कि अरे इसने मुझे गधा कह

दिया….देखा मुझे बुद्धू कह दिया….चार बच्चे और भी सुन रहे थे वो मुझे क्या कहेंगे।ऐसा ऐसा

सोच के उसका मन उदास है। मन विचलित हो गया है अब बच्चो को और ज्यादा तो पता नहीं

कि नहीं होना चाहिए….वो तो हो गया है, अब बच्चे इस तरह का चिंतन करेंगे “मैं गधा थोड़े ही

हूँ, मैं तो मनुष्य हूँ…मैं बुद्धू थोड़े ही हु, मैं तो बहुत अच्छा हूँ , बुद्धिमान हूँ और उसने गुस्से

मे कह दिया तो क्या हुआ, कह दिया, उसके शब्द हवा मे चले गए, मैं तो बहुत अच्छा हूँ। तो

ऐसे अपने उन विचारों को change करने से उसका जो effect होता है जो मन को भटकता है

उससे बच्चे बच जाएंगे।

 

रूपेश जी …………………… मतलब बातें कहीं पर भी हुई हो चाहे घर पर मम्मी पापा के साथ,

अपने भाई बहनों के साथ कोई बात हो गयी है तो उस बात को वो पकड़ कर न रखें और यदि

अगर negative comment दे भी दिया गया है तो उसी का चिंतन न करते रहे उसे थोड़ा सा

positive कर दे कि चलिये ऐसा हो भी गया हो तो कोई बात नहीं, अभी समय है study करने

का और उस पर focus करने का।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी …………….. बच्चे बड़े हो गए है अभी 9 वी में, 10 वी में, 12वी में है। अब

ये बच्चे समझदार हो गए है। अभी इनके ऊपर घर कि बहुत सारी घटनाओं का effect भी होता

रहता है। मान लो बच्चा गरीब घर से आया है और आज school मे किसी चीज़ की जरूरत

थी। मान लो यही था की बच्चे तौर पर जा रहे है और हरेक को 500-500 रुपये जमा करने है

लेकिन इसने जब घर पर ये बात कही तो उत्तर निराशात्मक मिला है अब इसके मन पर कहीं न

कहीं इसका effect हो गया है वो भी जनता है मेरे माँ बाप के पास 500 रुपये इस समय नहीं

है लेकिन उसके मन में एक उलझन सी हो गयी है, परेशानी सी कि सब बच्चे तो देखो picnic

पर जाएंगे, tour पर दो दिन के लिए जाएंगे और मैं यहीं पर रह जाऊंगा तो एक निराशा जो

उसके मन की एकाग्रता को भटका रही है। ऐसे ही मान लो घर मे कोई tension की बात आ

गयी है, कोई विवाद चल रहा है, अब बच्चे बड़े हो गए है, 12वी की class में आ गए है या

उसके माँ बाप के बीच मे कोई मनमुटाव है वे भी उसके मस्तिष्क पर, उसके मन पर एक

negative impact डालता है और इससे भी बच्चे की जों एकाग्रता है वो नष्ट हो जाती है।

इसमें भी उनको कुछ अच्छे ज्ञान की जरूरत होगी।

 

रूपेश जी ……………………… जी…जी तो परिवार में भी जो इस प्रकार की negative

atmosphere जो आपने कहा था यदि parents के बीच मे चल रहा होता है तो बच्चे के मन

मे भी कहीं न कहीं चलता है। तो भ्राताजी एक बात तो ये हुई कि ये जो चारो तरफ या

आजकल एक मास या एक साल पहले की बात है जो कहीं न कहीं उसकी एकाग्रता को भंग कर

रही है जिसके कारण से वो जो पढ़ाया जा रहा है उस पर focus नहीं कर पा रहा है। इसके

अलावा और कौन-कौन सी ऐसी बातें है जो विद्यार्थी की एकाग्रता को भंग कर रहे है आजकल।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ………………….. इसमें ही मान लो उनकी नींद बहुत अच्छी नहीं हुई,

रात को स्वप्नों से भरी नींद थी या किसी कारण से उनको दो-चार बार जागना पड़ गया, कोई

बीमारी थी, बाहर कोई आवाज़ थी,कोई अपने ही अंदर की आहट, उनको sound sleep न लेने

दे तो इनसे brain पर effect आता है इससे भी उनकी एकाग्रता भंग होती है।कई बार बच्चो के

अपने हैल्थ में भी, आजकल बच्चे तो healthy रहे नहीं, बचपन से ही बच्चो को कोई न कोई

बीमारियाँ लगी ही रहती है तो कहीं न कहीं उनकी health problem भी उन्हे irritate किए

रखती है और ये irritation उनकी एकाग्रता को नष्ट करता है तो कारण तो बहुत हो सकते है,

क्षीण उनके relationship मे गड़बड़ हो रही हो, अब बच्चे तो friends शुरू से ही बन जाते है

लड़के लड़की सब होंगे , अब उनसे उनको धोखा मिल रहा हो , misbehave मिल रहा हो, एक

दूसरे की जो अपेक्षाएं थी उस पर वो खरे न उतर रहे हो, बुरे शब्दो का प्रयोग किया जा रहा

होगा, गाली गलोंच भी दी जा रही हो… इससे उनका मन भी भटकता है अवश्य। अब बात ऐसी

आती है की इनसे मुक्त कैसे होना है? असली बात तो ये……तो यही बात मैं दो-चार tips देना

चाहता हूँ अपने विद्यार्थियों को, एक तो सभी विद्यार्थी past के effect को साथ-साथ समाप्त

करते चले, जो बीत गया है, तीन मास पहले, एक साल पहले, दो साल पहले, उसकी जो छाया,

उसका जो influence इनके मन पे रेहता है वो हटाये और इस विचार से हटाये की जो past हो

गया उसको बदला नहीं जा सकता है , जो past हो गया वो अब दोबारा भी नहीं होने जा रहा

है। एक-दो मास पहले या साल दो साल पहले की बात होगी………….

 

रूपेश जी ………………. एक बहुत अच्छा survey आया था भ्राताजी इस पर, उस survey में ये

कहा गया था कि व्यक्ति 80% अपने past में रहता है 15% अपने future में और केवल 5%

वो अपने present में रहता है। एक बहुत अच्छी बात आपने कही कि past का प्रभाव सचमुच

बहुत ज्यादा विद्यार्थियो पर है…………..

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ……………….. और यही हमने भी सीखा और हम सबको भी सीखाते है

कि enjoy your present,present मे रहना, देखिये भविष्य तो हमारा उज्जवल हो ही जाएगा,

अगर वर्तमान हमारा सुधरता रहे और ठीक है भविष्य का हम थोड़ा target भी रखे, उसकी

planning भी करे लेकिन चिंताए नहीं, उसको negative स्वरूप न होने दे लेकिन ये जो बात हो

गयी है विद्यार्थियों पर भी, कई विद्यार्थी बहुत ही sensitive भी होते है, कोई बात अगर एक

बार उनके मानस पटल पर छप गयी तो उसको delete करना उनको आता नहीं है तो सुंदर

विचारो से ही पुरानी छाप delete हो जाती है। हम सुंदर विचार करेंगे मान लो past के बारे में

हमने ये ही सोचा कि किसी ने हमसे बहुत बुरा व्यवहार किया था , हमे अपशब्द कहे थे चार

लोगो के बीच मे, उससे हमारा ego भी hurt हुआ था , मन को भी ठेस पहुंची थी, उससे हमारी

खुशी भी चली गयी थी, mood भी off हो गया था लेकिन अब उसी मे हमे थोड़ेही रहना है,

हमारा हर दिन बहुत सुंदर है, हम हर दिन को enjoy करेंगे, जो बीत गया वो तो आने वाला

नहीं है तो उसी mood को लेकर हम क्यों रहे? तो ऐसे सुंदर विचार कि मुझे तो वर्तमान को

enjoy करना है।

 

रूपेश जी ……………… और वैसे भी गड़े मुर्दे उखाड़ने से कोई फायदा तो है ही नहीं, वहाँ से

हम कोई अच्छी चीज़ सीख ले और आगे बढ़े और उसे लेकर के भी चलते रहेंगे तो हमारा

present भी प्रभावित होगा और present प्रभावित हो रहा है मतलब future भी प्रभावित हो

रहा है।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ………………. इस तरह उस हर बात के लिए जिसने मनुष्य की

एकाग्रता को नष्ट किया है। ऐसे सुंदर विचारो से हम change करे और आपने को fresh करे,

अपने को वर्तमान में ले आए ताकि हमारे मन की जो भटकन है जो unnecessarily हमको

परेशान कर रही है, हमारी inner powers को नष्ट करती जा रही है उससे हम मुक्त हो

जाए…………

 

रूपेश जी ………. जी एक सुंदर बात आपने कही भ्राताजी कि past का प्रभाव जो है इस प्रभाव

से मुक्त हो विद्यार्थी ताकि उसकी एकाग्रता अच्छी हो। इसके साथ भ्राताजी जैसे हमलोग चर्चा

कर भी आए है जो चीज़े visuals है उन चीज़ों का कहीं न कहीं बहुत ज्यादा प्रभाव मानस पटल

पर विद्यार्थियो के पड़ता है और हम चर्चा कर भी आए है कि T॰V॰ बहुत ज्यादा देखा जा रहा

है, movies देखी जा रही है, internet पर बहुत ज्यादा समय बिताया जा रहा है तो वो चीज़े

जो वो देख रहा है वो चीज़े कहीं न कहीं दिमाग में चलती रहती है इस कारण भी वो एकाग्र

नहीं कर पता है….

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी……………हाँ ये तो परम सत्य है केवल T॰V॰ की बात ही नहीं बाज़ार से

जब बच्चे निकलते है तो बहुत सारे बड़े-बड़े board, hoardings, उन सब में कुछ गंदे चित्र, ये

उनकी दृष्टि को आकर्षित करते है और एकाग्रता का संबंध मनुष्य की एकाग्रता से भी है। कुछ

वो देखता है तो उसमे भी उसकी energy जाती है, brain की energy divert हो रही है भिन्न-

भिन्न directions में। इससे भी एकाग्रत बहुत भंग होती है बच्चो की। तो कोशिश करे चाहे

टी॰वी, चाहे और कोई चीज़ पे, ऐसी चीज़े न देखे।आपकी बात सुनकर मुझे अनुभव याद आ गया

– एक बच्चा मेरे पास आया और उसने मेरे से प्रश्न पूछा कि “मुझे अनेक बार रोज़ ऐसा लगता

है कि मेरा brain block हो गया, मैं पढ़ रहा हूँ और पढ़ते-पढ़ते मेरी इच्छा नहीं, मैं पढ़ रहा हूँ

पढ़ते-पढ़ते मेरे मन मे निरस था, जैसे blockage हो गया है” तो मैंने उससे बहुत सहज पूछा

कि कितना सोते हो? मुझे लगा कि कहीं ये कम सोता हो, कितने बजे सोते हो? जब मैंने पूछा

तो कहा एक बजे सोता हूँ, उठते कितना बजे हो तो कहा 8 बजे उठता हूँ, मैंने कहा कि क्यूँ एक

बजे क्यों सोते हो तुम?तो आखिर बता दिया कि मुझे आदत पड़ गयी है 10:30 बजे नेट खोल

 

लेता हूँ, फिल्म देखने लगता हूँ, एक बजे तक सोता हूँ। अभी जब सोता हूँ तो नींद में वही

scene आते है……अब मैं समझ गया कि न इसकी गहरी नींद होती है और जो ये गंदी फिल्म

देखता है उससे इसका मन बिलकुल divert होता जा रहा है तो brain मे blockage प्रारम्भ हो

रहे है तो वो कहने लगा कि क्या करू मैं? मैंने उसको हँसके कहा कि अगर आपने को बचना

चाहते हो तो laptop पास के तालाब मे जाकर फैक देना जाके क्यूंकी अभी तुम्हें आदत पड़

गयी है क्यूंकी तूम चाहो न चाहो तुम वही site पर जाओगे तो ये ऐसी चीज़ visual भी हो गयी

है जो बच्चो की एकाग्रत पर कम नहीं गहरी छाप छोड़ रही है, इनसे उनकी memory weak

होती जा रही है, education के प्रति interest कम होता जा रहा है। जहां ये चीज़े विज्ञान की

देन है, मनुष्य के लिए वरदान है, इस तरह मनुष्य इनको श्राप भी बना लेता है…..

रूपेश जी ………. एक बहुत सुंदर बात भ्राताजी Dr॰ A॰P॰J॰ Abdul Kalam जी की बात मैं

सुन रहा था एक interview में तो उन्होंने एक बात कही थी कि मैंने आपने पूरे विद्यार्थिकाल

में कभी भी T॰V॰ नहीं देखा और आज ऐसा लगता है कि T॰V॰ एक बहुत ही अभिन्न अंग बन

गया है, ऐसा लगता है कि T॰V॰ के बिना काम ही नहीं चलेगा। Dr॰ A॰P॰J॰ Abdul Kalam जी

जो भारत रत्न है जो देश के president रह चुके है, इतने महान scientist रह चुके है, वो यदि

इतने महान कार्य बिना इसके कर सकते है तो विद्यार्थिवर्ग जो आज का है वो क्यों नहीं कर

सकता है?

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ……………. देखिये ये है कि उनके काल मे T॰V॰ थी भी कहाँ? हम जब

पढ़ते थे, हमसे तो वो बड़ी आयु के है। हमारे यहाँ भी T॰V॰ जब हम दिल्ली मे थे तो कहीं कहीं

दिखाई देती थी। तो क्या होता है जो चीज़ मनुष्य के सामने है उसको ही वो अपना साधन मान

लेता है कि इससे ही मुझे सब कुछ मिलेगा, इससे ही मनोरंजन होगा, इससे ही information

जाकर मिलेगी, मेरी बुद्धि का विकास होगा। पर जब वो चीज़ नहीं है तो देखिये मैं आपको एक

और बहुत गुह्य बात बता देता हूँ कि मनुष्य उसका ये जो brain है ना इसमे अनंत शक्तियाँ

और अनंत ज्ञान समाहित भी है, इसमे भरा हुआ है। हम ये कह सकते है कि हमने हजारो साल

में भी जो जानकारी प्राप्त कि होगी ना past मे वो हमारे वर्तमान समय में भी brain में सूक्ष्म

तरंगो के रूप मे print है, हमारी जो education है वो तो उसको just activate कर रही है तो

हमारे पास ज्ञान का भंडार है, हमारे पास एकाग्रता की शक्ति भी बहुत है। सच तो ये ही है कि

अगर हम waste ना करे आपने brain कि शक्ति को तो हमे पढ़ने में तो बहुत थोड़ा सा समय

लगेगा, जैसे आपने सुना हो कि बहुत सारे लोग संसार मे आपने brain का 5%,10% ही use

करते है ईवन Albert Einstein ने 30% use किया। अब सोचो आगरा कोई व्यक्ति 100%

use कर ले, he will become deity, देवता बन जाएगा।तो इसका तरीका है एकाग्रता, व्यर्थ से

अपने को मुक्त करना ……..

 

रूपेश जी …………. तो ये चीज़े ही भ्राताजी की जैसे हम T॰V॰, internet या movies की बात

कर रहे है और बात हमारी हुई भी थी कि इसमे कहीं न कहीं संयम बनाए रखे क्योंकि जहां ये

excess होता है वहाँ हमारी एकाग्रता को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और यदि हम

classroom में भी बैठे हुए है तो अंदर वही चित्रा चलते रहते है, वही movie चलती रहती है,

वही serial चलता रहता है कि आगे क्या होगा ?

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी ………… हाँ एक चीज़ और मुझे कहनी है इस संबंध में कि देखिये जो

बच्चे लंबा समय T॰V॰ देखते है मान लो चार घंटे रोज़ देखते है, कइयो को तो रुचि हो जाती है

और भी ज्यादा देखते रहते है, भोजन भी खा रहे है तो T॰V॰ देख रहे है,और भी कुछ सोने भी

जा रहे है तो T॰V॰ देख रहे है, इससे बहुत बड़ा नुकसान हमारे विद्यार्थिवर्ग को हो रहा है, हो

तो सब को रहा है पर हम विद्यार्थि को इस बारे में सावधान करना चाहेंगे क्योंकि वो चार घंटे

बहुत कुछ सुन रहा है तो उसके अपने अंदर कि creative energy नष्ट होती जा रही है क्योंकि

उसकी चिंतन धारा वही है जो वो देख रहा है, जो वो सुन रहा है, उसमे स्वतंत्र रूप से चिंतन

करने कि शक्ति दबती जा रही है। और हर मनुष्य के अंदर उसके brain में उसके mind मे

बहुत जबरदस्त creative energy है उसको हम नष्ट कर रहे है, उसको हम खो रहे है, उसको

use नहीं कर रहे है तो एक दिन वो हमारा साथ छोड़ जाएगी, ये बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है

, इसको ध्यान में रखते हुए बच्चों को इन चीज़ों से सीखने के बजाय हमारे brain में बहुत कुछ

है हम नया कुछ create करे, creative energy को use करे तो ये हमारे भविष्य के लिए

बहुत ज्यादा कल्याणकारी होगा।

 

रूपेश जी …………………… तो उसमे ज्यादा समय न देकर के एक सिमित समय देकर के

जितनी आवश्यकता है अपने आप में रहे, अपने चिंतन को बढ़ाए, अपने अध्ययन को बढ़ाए। तो

हमारे पास कि जैसे आपने बात कही कि हमारे brain में इतनी energy है कि उसको use कर

पाये या हमारी एकाग्रत भी जो भंग हो रही है वो भंग नहीं होगी। भ्राताजी और कुछ ऐसे स्थान

है, बातें है जिनके कारण आज के विद्यार्थिवर्ग की एकाग्रता भंग हो रही है।

 

बी॰ के॰ भ्राता सूर्या जी…………………..देखिये मुझे जो दिख रहा है, जो phone call मुझे आते

है और बच्चे जो कुछ बाते सुनाते है उसमें इनके अंदर वासनाओ का प्रकोप, relationship मे

negativity, शुद्ध प्यार का बहुत ज्यादा अभाव, एक दूसरे को धोखा मिलना। तो ये जो

relationship चल रहा है आजकल इसके कारण बच्चो का mind बहुत ज्यादा disturb रहता है

आजकल……..

 

रूपेश जी ……….. आपकी जो बात थी भ्राताजी आप बढ़ाए इसके पहले बीच में मुझे एक बात

याद आ गयी- 7 वी standard के बच्चो को हमारे एक मित्र पढ़ा रहे थे तो मुझे बहुत आश्चर्य

हुआ वो मुझे सुना रहे थे कि जब उउन्होंने homework दिया तो किसी लड़की के notebook में

लिखा हुआ था कि इसका boyfriend ये है ये किसी लड़के के notebook पर ये लिखा हुआ था

कि 7 वी standard में ये हाल है। उन्होने ये भी कहा कि 11 वी में एक लड़का class से bunk

करके valentine डे के दिन अपनी girlfriend के साथ घूम रहा है, तो सच्ची ये एक बहुत

महत्वपूर्ण बात आपने कही कि इस विद्यार्थिकाल में अगर ये स्थिति रही कि हम अपने आप

को वासनाओं की और ले चलेंगे तो शायद एकाग्रता की बात तो बहुत दूर है।

 

बी॰के॰ भ्राता सूर्या जी …………. बिलकुल इससे एकाग्रता भंग हो रही है और मुझे ये बढ़ता

नज़र आ रहा है, प्रकोप के रूप मे नज़र आ रहा है। कहीं न कहीं माँ बाप भी इससे बहुत दुखी

भी हो रहे है , इसी कारण कई बच्चे suicide भी कर रहे है जब इनके affairs पूरे नहीं होते तो

इससे विद्यार्थियो को बचना , इसकी awareness देना की इससे तुम्हें कुछ मिलने वाला नहीं

है, तुम्हारे संबंधो में न मिठास रहेगी, न उनमे purity रहेगी, न तुम एक दूसरे को प्यार,

सम्मान,स्नेह दे पाओगे। इसकी awareness देकर उससे मुक्त करना ये actually हर व्यक्ति

का चाहे वह guardian है या शिक्षक है, awareness दी जाए।

 

रूपेश जी ……….. शायद ये उस समय उनका एक शारीरिक परिवर्तन का दौर होता है ये

आकर्षण उनमे लाज़मी है

 

बी ॰के ॰भ्राता सूर्या जी …………….. ये आजकल बच्चों में होने लगा है जो प्राचीन चीज़ थी , जो

medical हमें कहता था की 15 साल के बाद , 16 साल के बाद कन्याओ मे परिवर्तन होगा, ये

उससे बहुत जल्दी होने लगा है 10 साल में भी होने लगा है, तो ये mutual attraction उनमें

हो रहा है लेकिन अगर उनको educate किया जाए इस संबंध में कि महत्व इसका नहीं है,

महत्व किसी और चीज़ का है, तुम्हारी पढ़ाई का है, तुम्हारे concentration का है, तुम्हारे सुंदर

विचारो का है….ये चीज़ तो चलती रहेगी तुम बाद में भी कर सकते हो। तो यहाँ भी केवल इस

चीज़ को हम स्वीकार न कर ले कि ये हो रहा है और ये बढ़ रहा है। ये तो सत्य है कि

western culture का effect बहुत-बहुत प्रभावशाली रूप से भारत के जो युवावर्ग है, विद्यार्थी

है, उनके मानस पटल पर छाता जा रहा है परंतु हमे इसकी awareness उन्हे देना है, इसके

जो complications होने वाले है उनके बारे मे जागरूकता लाना बहुत आवश्यक है क्योंकि

विदेशो मे जो कुछ हुआ स्वतन्त्रता के नाम पर लेकिन अब वहाँ के लोगों की मानसिक स्थिति

इतनी दयनीय है कि depression के case, अनिद्रा के case, psychiatric patient इनकी

संख्या इतनी ज्यादा है। हमारे एक शहर की और उनके पूरे देश की बराबर है तो इसलिए इसकी

awareness, education देना परम आवश्यक है।

 

रूपेश जी ……………… बहुत सुंदर चर्चा भ्राताजी आपने की है कि किस प्रकार एकाग्रता बहुत

आवश्यक है हमारे जीवन मे विद्यार्थिवर्ग के लिए और किन-किन कारणो से ये नष्ट हो रही है।

आज समय की यहीं समाप्ती हो रही है, समय का अभाव है इसलिए हम अपनी इस चर्चा को

जारी रखेंगे। भ्राताजी एकाग्रता पर इतनी सुंदर चर्चा के लिए आपका बहुत-बहुत ध्न्यवाद……मित्रो

आपने देखा कि एकाग्रता वास्तव मे विद्यार्थी जीवन के लिए बहुत-बहुत आवश्यक है। एकाग्रता

सीधे ही हमारी सफलता के साथ जुड़ा हुआ है। कोई भी हममें से नहीं होगा जो ये चाहेगा कि मैं

असफल रहूँ, कोई भी ये नहीं चाहेगा कि मेरे marks कम हो, कोई भी ये नहीं चाहेगा कि लोग

उस पर comments करे इस कारण कि वो विफल हो गया, असफल हो गया। लेकिन सफलता

तभी प्राप्त होगी जब हमारी एकाग्रता बहुत सुंदर होगी इसलिए हम ये ठान ले कि जैसे अर्जुन

केवल पक्षी के नेत्र को देख रहा था इसलिए वो सफल हुआ,वैसे ही हम अपने विद्यार्थिकाल में

अपने आप को पूरी तरह एकाग्र रखेंगे अपनी पढ़ाई पर,अपनी इस चर्चा को हम यहीं जारी रखेंगे,

आप हमारे साथ बने रहे, आपका बहुत-बहुत ध्न्यवाद, नमस्कार………

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