Samadhan Episode – 000126 Youth Problems

CONTENTS :

1. सर्व विकारों व बिमारियों की जड़ – अपवित्रता।

2. आज की सामाजिक स्थिति में ब्रह्मचर्य का महत्व।

3. राजयोग की विधि से काम विकार पर विजय।

4. पवित्रता से सुख, शांति, समृद्धि की प्राप्ति।

रुपेश जी — — — – नमस्कार! आदाब! "सत् श्री अकाल"! मित्रों समाधान कार्यक्रम में

आप सभी का स्वागत है! कल हमलोग चर्चा कर रहे थे कि कई प्रकार की भ्रांतियाँ

व्यक्ति को दूर कर देती है बहुत सारी अच्छी बातों से! बचपन में मैं साँप से बहुत

डरा करता था, तो कई बार मेरी बहन मुझे डराने के लिए रस्सी फेंक दीया करती

थी और ये सोच कर के कि कही ये साँप तो नहीं है मैं बहुत ज्यादा डर जाया

करता था और बाद में देखता था अरे! ये तो रस्सी है। अंधेरे से भी डर लगता था,

अंधेरे कमरे में जाने से दर लगता था लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया अंधेरे

कमरे में जाने लगा तो लगा की मेरा भय मेरी भ्रांति बिलकुल ही निरथक थी और

मैं खामाखां ही परेशान हुआ करता था! कई बार भ्रांतियाँ हमें बहुत सारी अच्छी

चीजों से दूर कर देती है। इसलिए ब्रह्माकुमारीज के लिए भी जो भ्रांतियां आपके

मन है, आम मानस में है, उन्हें ही दूर करने का प्रयास हम अपनी इस कड़ी में

कर रहें है और इस प्रयास में हमारे साथ हमेशा साथ रहते है आदरणीय राजयोगी

सूर्या भाईजी, आईये उनका स्वागत करते है – भ्राताजी आपका बहुत बहुत स्वागत

है!

बी के भ्राता सूर्या जी — — — धन्यवाद! (Thank you!)

रुपेश जी — — — – भ्राताजी पिछली बार भी हम चर्चा कर रहे थे, एक बहुत महत्वपूर्ण

चर्चा कि एक भाई-बहन बनाने वाली बात बहुत आम लोगों के मन में है। तो

पवित्रता वास्तव में बहुत ही श्रेष्ठ धारणा है, गुण है जैसे आपने कहा कि परमात्मा

से भी मिलन कराता है, लेकिन आज के दौर में ये कहा तक सहज और सरल है?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — बहुत ही एक सुन्दर बात है और इसके उत्तर भी अति

सुन्दर है और गुह्य भी है, सीक्रेट्स (secrets) है ये सृष्टी के। ये जो सारी सृष्टी

है ये आत्मा और प्रकृति के मिलन से चल रही है। आप सब जानते है, नोर्मल्ली

(normally) लोग कहते है कि प्रकृति में बहुत ज्यादा पोलुशन (pollution) कर

दिया है, एंवाईरनमेंटल पोलुशन (environmental pollution) जिसे कहते है।

लेकिन इसके साथ साथ मेंटल पोलुशन (mental pollution) की भी कोई कमी

नहीं है! एंवाईरनमेंटल पोलुशन (Environmental pollution) से भी कई गुणा 100

गुणा ज्यादा फैला है मेंटल पोलुशन (mental pollution) क्यूंकि मनुष्य के मन में

जो विकृतिया आ गई है, जो नेगेटिविटी (negativity) आ गई है, जो हर मनुष्य

वासनाओं के बारे में सोच रहा है, ईर्ष्या द्वेष में जल रहा है, कोई क्रोध में जल

रहा है, कोई स्वार्थ में जल रहा है! किसी के मन में चिंताए लगी हुई है, कोई

परेशान जीवन व्यतीत कर रहा है! ये नेगेटिव एनर्जी (negative energy) इस

संसार में बहुत फैली हुई है। तो इस संसार को वास्तव में इस समय प्योर एनर्जी

(pure energy) की बहुत जरुरत है। सब जानते है कि अनेक देशों ने मिल कर

कितनी कांफेरेंस (conferences) की लेकिन इस पोलुशन (pollution) को रोकने

के लिए कोई भी तैयार नहीं क्यूंकि उन्हें विकास चाहिए, अभी विकास भी चाहिए

और दूसरी ओर विनाश भी दिखाई दे रहा है लेकिन लोग विकास को महत्व दे रहे

है लेकिन विकास होते होते ये विनाश में रूपांतरित हो जायेगा। प्यूरिटी (Purity)

की शक्ति ही, पवित्रता की शक्ति ही इस वातावरण को, इस प्रकृति को, शुद्ध

करेगी, ये प्यूरिटी (purity) की पॉवर (power) ही है जिससे मनुष्य फिर से संसार

में सुख चैन की सांस ले सकेगा! जैसे किसी मनुष्य को बहुत कड़ी बीमारी हो जाती

है तो एलोपैथी (alopathy) में भी भारी भारी इंजेक्शन (injection) भी लगा दिए

जाते है, 50-50 हज़ार रूपए के इंजेक्शन (injection) भी लगाते है, बड़े पैनफुल

इंजेक्शन (painful injection) भी लगाए जाते है। आयुर्वेद में तो बहुत कड़ी

दवाईयां पीलाई जाती थी और तैयार किया जाता था पेशेंट (patient) को कि तुम्हें

कड़वी दवाई पीनी है ठीक होना है। अगर हम सृष्टी को एक पेशेंट (patient) कहे

तो इसकी स्थिति बहुत ही बिगड़ चुकी है। समझो ऑक्सिजेन (oxygen) बाहर से

दी जा रही है सृष्टी को, ये चल नहीं पा रही है जो लोग ये कहते है कि आप

ब्रह्मचर्य का पालन करेगें तो ये सृष्टी कैसे चलेगी हम उनसे पूछते है ये सृष्टी

चल कहा रही है इसको तो धक्का दिया जा रहा है! अगर इसको चलाना है तो कम

से कम कुछ आत्माओं को तो पवित्र बनना ही पड़ेगा सब तो पवित्र बना नहीं

करते, तो पवित्रता समय की मांग है- ये

बहुत गहरा सीक्रेट (secret) मनुष्य को समझ लेना चाहिए और अगर एक

बुद्धिमान मनुष्य इस रहस्य को नहीं समझ पायेगा तो वो विनाश को निमंत्रण

देगा! इससे सर्वनाश हो जायेगा क्यूंकि कोई भी सभ्यता जब काम वासना प्रधान

हो जाती है तो समझ लेना चाहिए उसका अंत बहुत समीप है। तो हम सभी

ईश्वरीय आज्ञाओं पर चल कर प्योर (pure) बन रहे है और प्यूरिटी (purity) को

एंजॉय (enjoy) कर रहे है ये शब्द में बार बार यूज (use) कर चुका हूँ कि

पवित्रता हमारे जीवन का आनंद बन गया है (purity becomes an enjoyment

for our life), ये स्ट्रेस (stress) नहीं होती लोग इसे क्यूँ कठीन महसूस करते है

या सन्यासी या दूसरें धर्मो में या मठों में जाने वालें, जैसे क्रिसचन धर्म में

सेलीबसि (celibacy) शब्द को ही शायद डिक्सनरी (dictionary) से निकाल दिया

और वहाँ इसको पालन करना नितांत, असंभव और साईकोलोजिस्टि

(psychologist) ने भी ये कह दिया ये तो अपेटाईट (apetite) है, भुक है इसको

क्यूँ रोका जाये, खाओ, भोग करो! तो ये क्यूँ हो गया है क्यूंकि मनुष्य के पास

आत्म बल समाप्त हो चुका है वो अपने मूल नेचर (nature) को भुल चुका है

वास्तव में तो आत्मा ओरीजीनली अब्सोलुटली प्योर (originally absolutely

pure) है, पवित्र है। अगर हम आत्मिक स्थिति का अभ्यास करते है तो हमारी

प्यूरिटी नेचुरल (purity natural) होने लगती है, हमें उसका दमन करना ही नहीं

पड़ता है लोग इससे ही डरते है काम वासना का दमन करेंगें तो विस्फोट हो सकता

है ब्रेन (brain) में बुरा इफ़ेक्ट (effect) हो सकता है यहाँ दमन नहीं किया जा रहा

है यहाँ तो आत्मा को मूल स्वरुप में ले जाया जा रहा है तो हमें मज़ा आता है

(we enjoy it) इसलिए हम, हम क्या ये तो भगवान का आदेश है जैसे हमने कहा

लोग कहेंगे भगवान ने तुम्हें ही आदेश दिया है क्या हमें नहीं! हम उसका आदेश

बार बार सुनते है लाखों करोड़ो लोग सुन रहे है और ये लहर अब सारे संसार में

फैलती जा रही है। हम तो देख रहे है वो लोग जो विषय वासनाओं की नदी में

बहते जा रहे थे अब पवित्रता की एक शीतल धारा में आ चुके है, इस अमृत का

पान कर चुके है, जो नॉन वेज (non veg) के अलावा कुछ खाते नहीं थे, जो

वेजिटेरियन फ़ूड (vegetarian food) को बकवास कहा करते थे ये तो गाय भैंसे

का खाना है ऐसे कह दिया करते थे आज वो बिल्कुल शुद्ध वेजिटेरियन

(vegetarian) बन गये है। तो समय बदल रहा है, तामसिकता आई है समय बदल

जाता है देखीये देवताओं के लिए भी समय नहीं रुका, बड़े बड़े महाराजा और सम्राट

और चक्रवर्ती जो बड़े प्रतापी थे उनके लिए भी समय नहीं रुका तो भला इन

पापियों के लिए समय कहा रुकेगा!

रुपेश जी — — — – मैं इससे रिलेटेड (related) दो तीन बातें भ्राताजी क्यूंकि भ्रांतियाँ की

बात चल रही है तो पूछना चाहुंगा! एक बात आपने कहीं की पोलुशन (pollution)

बहुत ज्यादा प्रकृति में फैलती जा रही है लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा पोलुशन

(pollution) व्यक्ति के मन में है, विकारों की है और पवित्रता की यहाँ आवश्यकता

आपने कही की यदि अगर पवित्रता है तो ही हम सृष्टी को सहज सरल कर सकते

है या पुनः स्वर्ग बना सकते है। तो क्या साइंटिफिक (scientific) इसके पीछे

रीज़न (reason) है भ्राताजी की पवित्रता के पालन से ऐसा क्या होता है कि प्रकृति

में वो परिवर्तन आता है या लोगों के मानस में परिवर्तन आता है या सृष्टी स्वर्ग

बन जाता है क्यूंकि आजकल बहुत सारे ऐसे लोग है जो साइंटिफिक (scientific)

बातों को मानते है, साइंस (science) ने जो चीज़े प्रूव (prove) कर दी उस चीज़

को एक्सेप्ट (accept) कर लेते है। तो पवित्रता के पीछे ऐसा क्या साइंस

(science) है?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — हाँ देखीए! पहले तो मैं ये कहुँगा कि आज पवित्रता इस

विश्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है, जरुरी है (purity is most important

thing, essential thing for this universe nowadays)। आप देख लीजिये जो

युवकों की अब मनोस्थिति है उससे आजकल के चिन्तक सचमुच चिंतित है कि

पिछले 10-15 सालों में, भारत में विशेष रूप से और संसार में उससे बुरा हाल है।

युवकों में जो इम्पुरिटी, सेक्सुअल फीलिंस (impurity, sexual feelings) बढ़ी है

उसके कारण उनके कंसेंट्रेशन (concentration) नष्ट हो गई है! आप एक हज़ार

स्टूडेंट्स (students) का सर्वे (survey) कर लीजिये, आपको पता चलेगा की

स्थिति बड़ी विसपोटक हो चुकी है, (रुपेश जी — — — – जी!) कंसेंट्रेशन

(concentration) नष्ट हो गई, अनेक युवक परेशान रहते है, उनका चित्त शान्त

नहीं रहता, वो कही न कही उलझ चुके है! तो इसी स्थिति को रोकना जरुरी है।

इसलिए उनको प्यूरिटी (purity) का मार्ग, मर्यादाओं का मार्ग, सच्चा प्यार किसे

कहा जाता है वो सिखाना परम आवश्यक है। आपने बहुत गहरा प्रश्न पुछा है, मैं

देखीए उन वेज्ञानिकों के लिए एक बात कहुँगा जो एटॉमिक थीयरी (atomic

theory) के बारे में सब कुछ जानते है! मैंने पढ़ी थी बहुत साल हो गए, अब तो

नए नए रिसाअर्च (research) हो गई है। तो मेरी बात हो रही थी, कल ही एक

साइंटिस्ट (scientist) से, उन्होंने मुझें अच्छी तरह से एक्सप्लेन (explain) किया

की देखीए एटॉमिक (atomic) जो स्ट्रकचर (structure) है उसमें बीच का जो

हिस्सा है, केंद्र, उसको नुक्लीअस (nucleus) कहते है, बाहर तो घुमते रहते है

इलेक्ट्रॉन्स (electrons), मैं बिल्कुल सिंपल लैंग्वेज (simple language) में बता

रहा हूँ, बाहर तो भिन्न भिन्न ऑरबिट्स (orbits) में, भिन्न भिन्न सर्किल

(circle) में इलेक्ट्रॉन्स (electrons), घुम रहे है और बीच में रहते है नुक्लीअस

(nucleus) में प्रोटोन (proton) और न्यूट्रॉन (neutron)! अब इस एक न्यूट्रॉन

(neutron) में भी और प्रोटोन (proton) में भी उन्होंने तीन और पार्टिकल

(particle) देखे, बिल्कुल एटॉम (atom) है ही बहुत सुक्ष्म, उसका प्रोटोन (proton)

बहुत सुक्ष्म अब उसमें भी तीन पार्टिकल (particle) वो कितने सुक्ष्म होगें! अब

तीन में से हर पार्टिकल (particle) में भी एक पार्टिकल (particle) है जिसको

आजकल लोगों ने गॉड पार्टिकल (god particle) कहा! अब इससे इनफिनिटी

एनर्जी (infinity energy), बहुत अनंत एनर्जी (energy) फैलती है अब क्या हो

गया है ये एनर्जी (energy) है नेगेटिव (negative) आज कल, ये जो प्रकृति में

पोलुशन (pollution) हुआ, तो एटॉम (atom) का जो सबसे छोटा हिस्सा हो गया

उसमे जिसे गॉड पार्टिकल (god particle) इन्होंने कह दिया उससे नेगेटिव एनर्जी

वैब्रेटे (negative energy vibrate) होती है! हम जब योग अभ्यास करते है या

प्यूरिटी (purity) को अपनाते है तो हमारे प्योर वैब्रेशंस (pure vibrations) चारों

ओर फैलते है और ये प्योर वैब्रेशंस (pure vibrations) सबसे ज्यादा इन्फ्लुएंस

(influence) करते है उस गॉड पार्टिकल (god particle) को जो सबसे सुक्ष्म है

लास्ट (last) जिसे कहा है और इस तरह पूरा एटम प्यूरिफाय (atom purify) होने

लगता है, एलिमेंट्स प्यूरिफाय (elements purify) होगें और ये नेचर प्यूरिफाय

(nature purify) हो जायेगी! तो यु सब कुछ सुंदर हो जायेगा, हवाओं में भी सुगंध

होगी, प्रक्रति का सोंदर्य देखने लायक होगा! पानी जो आज कल दुषित हो चुका है

जिसके पीने से बहुत बीमारियाँ हो रही है, सब्जी-फल जिसके खाने से बहुत

बीमारियाँ बढ़ रही है, ये सब पुनः पौष्टिक, शुद्ध हो जायेगा!

रुपेश जी — — — – मतलब हम अच्छे विचार जब करते है (भ्राताजी — — बस!) तो

इससे जो एटॉम्स (atoms) है जिनकी बात आप कर रहे है (भ्राताजी — — हाँ!),

सुक्ष्म से सुक्ष्म जो पार्टिकल्स (particles) है वो सभी प्यूरिफाय (purify) होते

जाते है और इनसे भी अच्छी एनर्जी (energy) फैलती जाती है!

बी के भ्राता सूर्या जी — — — बिलकुल! देखीये सिंपल (simple) सी चीज़े हर व्यक्ति

को जानना चाहिए, हमारा प्रत्येक और हर विचार उर्जा पैदा कर रहा है (each

and every thought is generating energy), हर संकल्प से एनर्जी क्रिएट

(energy create) हो रही है, रची जा रही है (रुपेश जी — — – जी!)। नेगेटिव

(Negative) विचार जो मनुष्य के मन में है तो नेगेटिव एनर्जी वाईब्रेटे (negative

energy vibrate) हो रही है वो चारों ओर फैल रही है और प्रकृति उसे ग्रहण कर

रही है! तो ये एटॉम (atom) के जो पार्टिकल्स (particles) है ये उसे तुरंत ग्रहण

कर रहे है क्यूंकि वे बहुत सवेंदनशील होते है (because they are very

sensitive)। अगर हम प्योर थोट्स (pure thoughts) कर रहे है, अगर हम

पॉजिटिव थोट्स (positive thoughts) कर रहे है, पावरफुल थोट्स (powerful

thoughts) कर रहे है, थोट्स ऑफ़ हेप्पीनेस, थोट्स ऑफ़ एंजोयमेंट (thoughts

of happiness, thoughts of enjoyment) हमारे मन में है तो बहुत सुन्दर

एनर्जी (energy) हमसे चारों ओर फैलती है तो प्रकृति उसे ग्रहण कर लेती है और

उसे रिप्लेस (replace) कर देती जो नेगेटिव एनर्जी (negative energy) है उसको

नष्ट कर देती है, डिस्ट्रॉय (destroy) कर देती है ! तो ये बहुत सुन्दर सिद्धांत है

इसलिए..!

रुपेश जी — — — – एक प्रश्न है भ्राताजी इसी में (भ्राताजी — — हाँ!) कि अच्छे विचारों

का सृजन करना काफी लोग सिखाते है कि हमें अच्छे विचार करना चाहिए, शुद्ध

विचार करना चाहिए, अपने लिए भी और दूसरों के लिए भी और ज्यादा तर लोग

कोशिश करते भी है लेकिन इसमें प्यूरिटी (purity) का क्या इम्पोर्टेंस

(importance) है?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — हाँ देखीए, ये ही हो रहा है की अच्छे विचार तो सभी

सिखा रहे है (रुपेश जी — — – जी!) लेकिन अच्छे विचार मनुष्य कर नहीं पा रहा है!

नेगेटिव (negative) विचारों का फ़ोर्स (force) इतना ज्यादा बढ़ गया है कि अगर

मनुष्य को एक अच्छा विचार आता है तो हज़ार बुरे विचार आ जाते है! ये प्रॉब्लम

(problem) मेरे पास बहुत आते है, युवकों की खास और माताओं की, बड़ों की भी

बहुत ज्यादा। प्यूरिटी (Purity) का ये महत्व है की जब मनुष्य प्यूरिटी (purity)

को अपनाता है तो उसके नेगेटिव (negative) विचार खत्म होने लगते है, वो कम

हो जायेंगे और पॉजिटिव (positive) विचार करने की पॉवर (power) बढ़ जयेगी।

तो अब जो ratio एक और हज़ार (1:1000) की है फिर ऐसा हो जायेगा 100

अच्छे विचार होगें 10-20 बुरे आयेंगे, फिर 100 अच्छे विचार होगें 2-4 बुरे रह

जायेंगे और एक समय ये आता है अभ्यास करते करते कि बुरे विचार पुरी तरह

समाप्त हो जाते है और जिस मनुष्य के मन के नेगेटिव (negative) विचार, वेस्ट

थोट्स (waste thoughts) पुरे समाप्त हो जायें वो व्यक्ति तो इस संसार के लिए

वरदान है क्यूंकि उससे फैली हुई प्योर एनर्जी (pure energy) न जाने कितनी

मनुष्यों का कल्याण करेगी।

रुपेश जी — — — प्यूरिटी (Purity) बहुत इम्पोर्टेन्ट (important) है हमारे विचार बहुत

शुद्ध होगें, श्रेष्ठ होगें और जैसा की आपने कहा की इसके बाद मतलब और कुछ

रह ही नहीं जाता, संसार के लिए हम वरदान बन जाते है, बहुत महान हो जाते है,

इक्वल टू गॉड (equal to God) कह सकते है। लेकिन आज के दौर में यदि मैं

प्यूरिटी (purity) की इम्पोर्टेंस (importance) को समझ भी गया और उसे अपनाना

भी चाहता हूँ लेकिन मेरे अपने जो संस्कार है, मेरी अपनी आदते है! कई लोग

हमारे जो दर्शक है फ़ोन (phone) करके ये पूछते है या मेल (mail) करके पूछते है

की मेरी आदत है कि मैं रात को भई नेट (net) देखता हूँ, नेट (net) में कई जो

गलत साइट्स (sites) है वहां जाता हूँ और न चाहते हुए भी मैं वहां चला जाता हूँ,

देखता हूँ उसके बाद जो भी मुझें करना होता है, जो भी मन में विचार होते है

गलत उठते है! आम तौर पे जाते हुए भी रास्ते में कई ऐसी चीज़े व्यक्ति न चाहते

हुए भी देख लेता है! तो आज के दौर में थोड़ा सा एक तो आदत वाले संस्कार जो

बन गया उसके कारण और बाहर का भी जो वातावरण है बहुत ज्यादा

नेगेटिव,पोलुटेड (negative, polluted) है या इम्पुरिटी (impurity) से भरा हुआ है।

ऐसे में वो व्यक्ति अपने आप को कैसे प्यूरिफाय (purify) करें?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — देखीए यही तो एक समस्या हो गई है कि फिल्मों ने,

गंदी फिल्मों ने और आजकल net पे ये सब गंदी फ़िल्में आ गई है, ये फेसबुक

(facebook) आ गई और भी बहुत सारी चीज़े जो नेट (net) पे आ गई है इसने

युवा को विशेष रूप से इतना ज्यादा अट्रेक्ट (attract) कर लिया है कि वो अपनी

अच्छाई बुराई को भुल गया है, भले बुरे का उसे खयाल नहीं रहा और फिर ये ऐसी

गंदी फ़िल्में ये अडिकशन (addiction) बन जाता है! (रुपेश जी — — जी!) जैसे

शराबी होता है न (रुपेश जी — — बिल्कुल!) इसके बिना वो रह नहीं पाता….मेरे पास

ही एक केस (case) और आया (रुपेश जी — — वो एक आदत की बात हो जाती है

कि वो जब तक नहीं करते तब तक तो………) मेरे पास कल ही एक पत्र आया

कि मुझे इस इस तरह समस्या हो रही है उसने साफ़ डिटेल (detail) लिख दिया

मुझें वेस्ट थोट्स (waste thoughts) चल रहे है, संकल्प इतने ज्यादा चलते है

कि मैं परेशान हो जाता हूं, मुझें नींद नहीं अच्छी आती है फिर अपनी गंदी

आदत. यही लिखी, .कि नेट (net) पे मैं रात को गंदी फिल्म देखता हूं, उससे

नींद अच्छी नहीं होती और फिर मेरे में अलबेलापन रहता है, सवेरे मैं देर से उठता

हूं, कुछ करने का मन नहीं रहता।' अब उसका काम करने को मन ही नहीं करता,

पढ़ने को उसकी इच्छा ही नहीं होती, माँ बाप कहते है भई पढ़ो, होमवर्क

(homework) तो करो! (रुपेश जी — — जी!) मुश्किल से अपने कॉलेज (college) में

जाता है आके फिर कुछ न कुछ देख लेता है, फिर वही हाल! चाहे पोस्टर (poster)

ऐसे है, चाहे बाहर गंदगी बहुत ज्यादा है, चाहे साथी ऐसे है, इन सब का दुष प्रभाव

युवा वर्ग पर क्या सभी मनुष्यों पर बहुत ज्यादा पड़ गया है! इसी में राजयोग

सबसे बड़ी मदद करता है इससे अगर मनुष्य को कोई चीज़ बचा सकती है तो वो

केवल अध्यात्मिक शक्ति, स्पिरिचुअल पॉवर (spiritual power) यानी मन को

प्यूरिफाय (purify) कर लेना राजयोग के द्वारा अन्यथा ये चीज़ स्वतः मनुष्य को

नष्ट कर डालेगी! ये शायद लोगों मेरी बात बुरी लगती हो पर, मैं तो अब चैलेंज

(challenge) के साथ कह सकता हूं जो मैंने पिछले तीन मासों में देखा, ऑनली

इन ३ मंथस (only in 3months) कि अनेक युवक और अनेक मनुष्य अपने वेस्ट

थोट्स (waste thoughts) से इतने दुःखी हो गए है कि मानसिक रूप से कमज़ोर

हो रहे है (mentally they are becoming sick), साईकेट्रिक पेशेंट (psychiatric

patient) बनते जा रहे है, मानो रोग बढ़ता जा रहा है, नींद ना आना, डिप्रेशन

(depression) होना, परेशान रहना, बिल्कुल उदास बैठे रहना, काम करने को मन

न करना, ये बढ़ रखा है!

रुपेश जी — —- तो भ्राताजी क्या ये तमाम जो जितनी प्रकार की आपने बातें कही

ये सब बढ़ती जा रही है तो क्या कही न कही इनका कारण इम्पुरिटी (impurity)

ही है?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — बस! इम्पुरिटी! (Impurity!) यहीं मैं कहने जा रहा था

कि इसकी शुरुआत जैसे net पे गंदी फ़िल्में देखी, (रुपेश जी — — जी!) अब गंदी

फ़िल्में वही व्यक्ति देख रहा है न जिसमे इम्पुरिटी (impurity) बहुत है, जो अपने

सेक्सुअल फीलिंस (sexual feelings) को सेटिसफाय (satisfy) करना चाहता है

लेकिन सेक्सुअल फीलिंस (sexual feelings) है की वो सेटिसफाय (satisfy) कभी

नहीं होती, वो बढ़ती जाती है। जैसे जिस व्यक्ति को शराब पीने की आदत होती है

पहले थोड़ा पीयेगा, फिर ज्यादा, फिर ज्यादा, वो सेटिसफाय (satisfy) होने के लिए

पीता है! नींद नहीं आती है, आज एक गोली, कल दो फिर चार फिर आठ, ऐसे ऐसे

लोग भी मिले मुझे जो 25 गोली खाकर सो रहे है रोज। तो यही हालत इस

सेक्सुअल फीलिंस (sexual feelings) की है, ये कभी रूकती नहीं है, ये बढ़ती

जाती है और अंततः ये मनुष्य को नष्ट कर देगी। हमारे मनोवैज्ञानिक मैं तो

कहुँगा अधुरे ज्ञानी है जिनको कुछ भी पता नहीं वो सेक्सुअल फीलिंस (sexual

feelings को मान्यता दे रहे है, मैं कहुँगा बिल्कुल चैलेंज (challenge) के साथ कि

मनोवैज्ञानिक के पास बहुत इन्कम्प्लीट नॉलेज (incomplete knowledge) है,

उसे अपने नॉलेज (knowledge) को कम्पलीट (complete) करने के लिए राजयोग

सीखना चाहिए, स्पिरिचुअल नॉलेज (spiritual knowledge) लेनी चाहिए और

प्यूरिटी (purity) का कितना महत्व है अगर मनोवैज्ञानिक इसका प्रचार संसार में

करेंगे तो ये पाप की धारा रुक सकती है इसलिए प्यूरिटी (purity) को अपनाना ये

चीज़े बाधक बनती है! अब देखीये इस युवक को मैंने कहा की भई अगर तुम

बचना चाहते हो मतलब ये ऐसा हो रहा है इसका हाल कि सुइसाइड (suicide)

करने को मन करता है क्यूंकि इतनी नेगेटिविटी (negativity) आ गई, इतनी

वीकनेस (weakness) आ गई और यही युवकों में हो रहा है इस सुसाइड टेनड़ेंसी

(suicidal tedency) का बीज काम वासना है! ये अब मनोवैज्ञानिको को समझना

पड़ेगा, स्वीकार करना पड़ेगा हमारे बुद्धि जीवी समाज को, educated को ये

मानना पड़ेगा कि वासना सभी बुराईयों, शेतानो की जड़ है (sex, lust is the

root of all evils, all devils, all vices)। तो मैंने उस युवक को कहा की देखो

अगर जीना चाहते हो तो ये गंदी फ़िल्में देखना छोड़ना पड़ेगा, कहा 'क्या करूँ रोज

सोचता हूं नहीं देखुगा पर टाइम होते ही फिर खोल लेता हूं!' मैंने कहा तो इस

लैपटॉप (laptop) को ही फ़ेक दो ना, तोड़फोड़ दो अब दूसरा लेना ही नहीं बिल्कुल!

कहा ये भी तो नहीं हो रहा! देखीए वही बात जो आपने पुछी थी (रुपेश जी — —

जी!) व्यसनों के अधीन हो गया है मनुष्य, बस इसको अगर बचा सकती है तो

स्पिरिचुअल पॉवर! (spiritual power!) इसलिए राजयोग का हम केवल प्रचार नहीं

कर रहे लोगों को रियलिटी (reality) बता रहे है कि अगर तुम्हें सर्वाइव (survive)

करना है, अगर तुम life को एंजॉय (enjoy) करना चाहते हो तो अब जीवन की

धारा को बदलों, वे ऑफ़ थिंकिंग (way of thinking) को बदलों, अन्यथा वहीं

होगा की सुसाइड (suicide) लोग करेंगे, अनिन्द्रा के पेशेंट (patient) बहुत बन

जायेंगे और एक समय वो आएगा कि संसार की आधी पोप्युलेशन (population)

रात को सो नहीं पायेगी!

रुपेश जी — —- बिल्कुल! भ्राताजी एक बहुत बड़ी बात आपने कहीं है कि तमाम

प्रकार की जो आज हम मानसिक बीमारियाँ देख रहे है चाहे वो निद्रा का न आना

हो, चाहे डिप्रेशन (depression) हो, चाहे अनेक प्रकार की और बीमारियाँ! कही न

कही इनका कारण अपवित्रता ही है, इम्पुरिटी (impurity) है और व्यक्ति इससे

बहुत ज्यादा ग्रेस्प (grasp) हो गया है! भ्राताजी अब एक कदम यदि आगे बढ़ाना

चाहता है व्यक्ति, आपने राजयोग की बात तो कही कि राजयोग वो सीखें! लेकिन

साथ साथ ऐसी और किन चीजों का ध्यान रखें ताकि इस चीज़ से वो अपने आप

को बचा सके और पाजिटिविटी (positivity) की ओर बढ़ जाये?

बी के भ्राता सूर्या जी — — — देखीये एक बहुत अच्छी चीज़ मनुष्य को यहाँ परिवर्तन

करना पड़ेगा अपने खानपान को, (रुपेश जी — — जी!) अपने संग को भी छोड़ना

पड़ेगा। देखीये एक कॉलेज (college) में होशियार स्टूडेंट (student) है, जिसका

लक्ष्य बहुत सुन्दर है, उसको सफलता के शिखर पर पहुँचना है, वो ऐसे साथीयों के

साथ जाता ही नहीं, घुमता ही नहीं, जो उसके इस मार्ग में बाधक हो, जो इधर-

उधर की बात करता हो, टाइम वेस्ट (time waste) करते हो! उसको तो लक्ष्य

होता है मुझे ये प्राप्त करना है वो उस पर पूरा फोकस (focus) कर देता है।

(रुपेश जी — — जी!) अपने जीवन को उमँग उत्साह से भरना है, एक नया

एंथुसिएस्म (enthusiasm) हमारे मन में रहे कुछ करने का, हमेंशा एक जज़्बा

बना रहे, तो कुछ चीज़े करनी पड़ेगी। इसलिए तो ये गंदी फ़िल्में छोड़नी पड़ेगी जो

इन्होंने कहा, खानपान को शुद्ध करना पड़ेगा, थोड़ा अपने लिए समय देना पड़ेगा।

हमारे यहाँ इसके लिए पूरी एजुकेशन (education) दी जाती है (रुपेश जी — — जी!)

हमलोग भी जानते है, हाँ! मुझे 50वर्ष हो गए है राजयोग का अभ्यास करते हुए

लेकिन मैं देखता हूँ कि रोज़ हमें ईश्वरीय महावाक्य एक घंटा सुनने है, उसको हम

एंजॉय (enjoy) करते है, उससे हमारे विचारों में दृढ़ता आती है कोई नेगेटिविटी

(negativity) आ गई हो वो समाप्त हो जाती है फिर से हम पोसिटिव (positive)

हो जाते है! ये मनोविकार छोटी चीज़ थोड़े है भिन्न भिन्न रूप में ये मनुष्य के

मन में प्रवेश कर लेते है, कुछ भी ऐसा हो जाता है। तो ये बहुत जरुरी है कि हम

रोज ज्ञान का श्रवण करें ये ऐसी चीज़ है जैसे रोज़ अमृत पान करना, ज्ञान को

अमृत भी कहा जाता है, खानपान शुद्ध करें, रोज़ अमृत पान करें। थोड़ा अपनी

दिनचर्या को रिसेट (reset) करें, बहुत देर तक जगे रहना यही तो बुरी आदत है न

जो नेट (net) आदि खुलवाती है लोगों से, हम लक्ष्य रख ले हमें 10:30 तक सो

जाना है, अच्छे साहित्य का अध्यन कर के सो जाना है, सवेरे थोड़ा जल्दी उठेंगे,

प्रकृति का आनंद लेंगे, सुन्दर विचार मन में आयेंगे सवेरे उठने से, सवेरे उठने का

एक बहुत बड़ा फायदा है, आप जरा बाहर घुम ले अपने कमरे से निकल कर,

सुन्दर विचार, तारे झिलमिलाते नज़र आये तो मन प्रसन्न हो जाता है! अगर फुल

मून (full moon) हो देख के दिल करता है बस अब सोना तो बेकार की चीज़ है

अभी इसको देखते ही रहे, विचार सुन्दर हो जायेंगे!

रुपेश जी — — — भ्राताजी एक प्रश्न जरुर एक आम व्यक्ति के मन में उठता है

जिसकी चर्चा आपने थोड़ी सी की थी और कही न कही उसके मन में ये रहता ही

है की भगवान ने स्त्री और पुरुष बनाये है हर एक प्रजाति में ये देखा जाता है मेल

(male) और फीमेल (female) दोनों है और ये कही न कही वंश को, सृष्टी को

आगे बढ़ाते है और यदि ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना हर एक शुरू कर दे तो

फिर सृष्टी कैसे चलेगी, ये हर एक के मन में कहीं न कहीं प्रश्न रहता है?

के भ्राता सूर्या जी — — — पहले तो मैं ये कहुँगा जिनको बच्चे हो गए है सृष्टी

काफी बना ली है वो पहले तो पालन करे दूसरी बात सृष्टी को चलाने की

जिम्मेदारी जिसकी है उसे ये सोचना चाहिए क्योंकि उसी ने ये आदेश दिया है नाउ

बी प्योर (now be pure)। अगर काम वासना केवल सृष्टी रचना के लिए ही होती

तो उसको मान्यता दी जा सकती थी की भई संतान उत्पति करनी है चलो दो नहीं

तीन करनी चार करनी उतने तक! लेकिन काम वासना तो एक व्यसन बन गया

है, वासना बन गई है, जीवन को नष्ट करने वाली चीज़ बन गई है, की मनुष्य 80

साल का हो गया तो भी लगा हुआ है छोड़ ही नहीं रहा है कुछ त्याग की बात ही

नहीं! (रुपेश जी — — मतलब संतान उत्पति के लिए हो, ये व्यसन न बन जाये!) तो

ठीक भी न! इसलिए देखो द्वापरयुग में संतान उत्पति तक ही ये चीज़ सीमित थी

सतयुग में तो जो लोग शास्त्रों के ज्ञाता है वो जानते है संकल्प शक्ति से संतान

उत्पन होती थी, उसको अमयथूंनी सृष्टी कहा गया विकारों की सृष्टी नहीं थी

द्वापरयुग में सृष्टी बिल्कुल…ये काम वासना केवल संतान उत्पति के लिए थी।

लेकिन कलियुग में आज ये तो रोज का धंधा बन गया मनुष्य का! इससे ही पतन

हो रहा है, तो जहां इससे मनुष्य आत्मा की प्यूरिटी (purity) नष्ट हो गई है तो

संतान उत्पति संकल्प बल से भी हो सकती है जिसको हम योगबल कहते है और

वही सिस्टम (system) अब समाप्त होगा क्यूंकि ये जो काम वासना की जो सृष्टी

है ये काम वासना अपनी अंतिम चरम सीमा पर पहुँच चुकी है इसकी तमोप्रधानता

आ चुकी है, एक्सट्रीम (extreme) इसकी समाप्ति होगी और संकल्प शक्ति से,

प्यूरिटी (purity) के बल से संतान उत्पति होगी, संतान उत्पति तो होगी ही, सृष्टी

को तो चलना ही है! (रुपेश जी — — जी!) यहाँ कभी जीरो (zero) होता ही नहीं की

कुछ न हो क्योंकि अगर होता हो तो तब तो समय की गति रुक जाती! (रुपेश जी –

— – बिल्कुल!) तो ये योगबल से……….

रुपेश जी — —- ये बहुत गहरी बात है भ्राताजी जो समझने की है जिसे आम

व्यक्ति नहीं समझ पाता क्योंकि वो सिस्टम (system) आज है ही नहीं। (भ्राताजी –

— – है ही नहीं।) जिस चीज़ को व्यक्ति ने ना देखा हो अपने आसपास और चर्चा ही

न सुनी हो तो शायद वो उसकी कल्पना नहीं कर पाता और जो बात आप कह रहे

है कि सतयुग में एक सुन्दर संकल्प से उत्पन होते थे संतान! तो वो बात शायद

आज चर्चा में नहीं है लेकिन पुनः ऐसी सृष्टी आनी ही है। (भ्राताजी — — आनी ही

है!)

भ्राताजी बहुत सुन्दर चर्चा है और मैं चाहुँगा की इन बातों को हम आगे भी जारी

रखे लेकिन आज हमें वक़्त इजाज़त नहीं दे रहा है, आपका बहुत बहुत शुक्रिया!

मित्रों! अपवित्रता की चर्चा आज बहुत ही गहराई से हमनें की है, ब्रह्मचर्य की चर्चा

गहराई से की है और मुझे याद आता है कि एक बार इंद्र और सभी देव स्वर्ग में

पराजीत हो गए असुरों से और असुराज जो था, था बहुत शक्तिशाली उसने सभी

देवों को इंद्र सहित बेदखल कर दिया! इंद्र अपने गुरूजी के पास पहुँचे और उन्होंने

कहा की हम कैसे पुनः स्वर्ग का राज्य भाग्य प्राप्त करें! तो गुरूदेव ने कहा कि

उस असुर से जाकर उसकी पवित्रता मांग लेना। इंद्र दुसरें दिन गए वेष बदल कर

और उन्होंने असुर से, जो था बहुत ही विद्वान्, जो था बहुत ही दानवीर, उससे

उसकी पवित्रत मांगी! असुर देना तो नहीं चाहता था लेकिन, चूंकि उसके द्वार का

एक नियम था कि उसके द्वार से कोई भी खाली नहीं जायेगा। उसने पवित्रता

अपने हाथ में संकल्प लेकर पानी से उसे अर्पित कर दिया, जैसे ही इंद्र को

पवित्रता उस असुर ने अर्पित की वैसे ही एक और ज्योति उस असुर के शरीर से

निकलते जाने लगी! उसने कहा मैं शांति हूँ जहाँ पवित्रता रहेगी वही मैं रहुँगी,

दूसरी भी ज्योति निकली उसने कहा मैं सुख हूँ, तीसरी ज्योति निकली उसने कहा

मैं लक्ष्मी हूँ, चोथी ज्योति निकली उसने कहा मैं स्वास्थ्य हूँ और इन सब ने कहा

जहाँ पवित्रता रहेगी वही हम रहेंगे! तो मित्रों जहाँ पवित्रता है वही सुख है, वही

शांति है, वही लक्ष्मी है अर्थात सम्पति है, वही स्वास्थ्य है, वही समृद्धि है और

जहाँ ये सब चीज़े है वहा संसार स्वर्ग है, वहां परिवार स्वर्ग है! इसीलिए हम

पवित्रता के महत्व को समझने की कोशिश करें इसे अपने आचरण में लाये तो

जीवन सचमुच दिव्य हो जायेगा, सुन्दर हो जायेगा और एक नई शुरुआत आप

अपने जीवन की कर पायेंगे! आज के लिए इतना ही, दीजिये इजाज़त! नमस्कार!

Like us on Facebook
error: Content is protected !!
Home