Samadhan Episode – 00066 Motivational and Spirituality
CONTENTS :

१. जब जीवन में चारो तरफ से समस्याए आती है तब क्या करे?

२. भक्ति में मंत्र-जाप करने और राजयोग सीखने, दोनों में क्या अंतर है?

३. धर्म और आध्यात्म की शक्ति मनुष्य को कमजोर बनाती है या शक्तिशाली?

४. आध्यात्म और धर्म, क्या ये दोनों चीज़े अलग है?

रूपेश भाई :- नमस्कार आदाब सत श्री अकाल मित्रो स्वागत है एक बार पुनः आप सभी का समाधान कार्यक्रम में, एक ऐसा कार्यक्रम जिसमे आपकी सब समस्यायों का समाधान किया जाता है लक्ष्य हमारा यही है की हर प्रकार की समस्याए दूर हो ओर जीवन आनंद से परिपूर्ण हो| पिछली बार भी हमने चर्चा की थी कि किस तरह समस्याए जीवन को बहुत ज्यादा नुकसान पहुचा देती हैं ऐसे में हमारा दृष्टिकोण उसके लिए नकारात्मक होता है या फिर हम निराशा के गर्त में उतर जाते हैं| आवश्यकता है हम अपने दृष्टिकोण को बहुत सकारात्मक रखे ओर ऐसे पलों में अपने धीरज को, अपनी शांति को कायम रखे, इसी प्रकार की शिक्षाए, इसी प्रकार की मूलभूत बातें हमें हमेशा बताते है आदरणीय राजयोगी सूर्य भाई जी ताकि हम समस्यायों के दोर में अपने आप को स्थिर रख सके ओर सहज रूप से उसे पार कर सके क्योंकि कहा जाता है की हर अंधकार के बाद, हर एक अंधेरी रात के बाद एक सुनहरा सवेरा अवश्य आता है| अवश्यकता होती है इन क्षणों में धीरज बनाए रखने की तो आइये पुनः एक बार स्वागत करते हैं आदरणीय सूर्य भाई जी का, भ्राता जी आप का बहुत-बहुत स्वागत है| भ्राता जी पिछली बार भी हम लोगो ने चर्चा की थी बहुत सारे ई-मेल आए हुये थे, उनही ई-मेल्स को हम पुनः लेंगे क्योंकि बहुत सारे मेल्स आ रहे हैं लगातार| जैसे की पिछली बार भी हम कह रहे थे की समस्याओ का घर बनता जा रहा है आज के मनुष्य का जीवन लेकिन आवश्यकता है कि किस प्रकार से वो इन समस्यायों का निदान करे, कैसे अपनी शांति धैर्य को बनाए रखे, तो भ्राता जी इस विषय पर|

सूर्य भाई जी :- एक परिवार मेरे से मिलने आया, बिजनेस धंधा चोपट होता जा रहा है जहां कदम रखो वहीं असफलता, जैसे सबकुछ खत्म होता जा रहा है| बच्चे कोई बीमार हो रहा है, किसी का पढ़ाई से मन ऊब रहा है, पत्नी है जो घर संभालती है उसकी भी तबीयत अचानक खराब रहने लगी है मन उचाट-उचाट सा रहता है, मेरे पास आए कहने लगे की ना तो हमे ये समझ आ रहा है की ये हमारे साथ हुआ क्यों ओर ना हमें कहीं से ये पता चल रहा की इससे बाहर आए कैसे| जीवन कितना भारी हो जाता है, कोई उसे ये बताने वाला भी नहीं होता की क्या करो बल्कि लोग तो मजाक उड़ाएंगे, अंदर ही अंदर खुश होंगे की वाह, बहुत बनते थे अपने को, देख लिया अब सब खत्म होने जा रहा है| क्योंकि आजकल मनुष्य की मेंटेलिटी ऐसी हो गयी है की दूसरों को आगे बढ़ता नहीं देख सकता, वो दूसरों को सुखी नहीं देख सकता, कहीं ना कहीं उसके मन में कांटा चुभा रहता है ओर वो इंतजार करता है कब इनका पतन हो ओर हम सुखी हो (बाहर से दिखावा भले करता है की हम आपके साथ है लेकिन अंदर से खुश होता है|) इसलिए मैं ऐसे में कहूँगा एक बहुत अच्छी बात की हर समस्या का समाधान है, समस्याए है तो उनका समाधान भी है ओर कुछ समस्याए वर्तमान द्वारा क्रिएटिड है तो कुछ समस्याए पास्ट क्रिएटिड भी है| अब ये जो पास्ट क्रिएटिड समस्याए है इनको लोग प्राय: नहीं जानते की हमने किसी समस्या के किसी काल में बीज बो दिये थे अब से 10 साल पहले, 20 साल पहले, हो सकता है 50 साल पहले, हो सकता है 100-200 साल पहले भी, वो बीज अब अंकुरित हो गए तो हम इन समस्यायों के समाधान की ओर चले ओर उस बीज को पुनः पनपने ना दे, उस बीज को पुनः ना बोये जो किसी कारण वश, जो किसी भी विकार के वश होकर हमने बो दिये थे| तो समस्याए है तो समाधान भी है, ये सोचकर निराश ना हो की हम क्या करे, किसी का समाधान डाक्टर के पास होता है, किसी का समाधान बैंकों के पास होता है, किसी का समाधान उसके मित्र- संबंधी भी कर देते है, कोई सहयोग दे देते हैं, ऐसे भी संसार में बहुत अच्छे-अच्छे लोग हैं जो एक-दूसरे को सहयोग भी बहुत देते हैं| मेरे पास ऐसे गुड न्यूज़ भी आते हैं की ऐसे इन्सानो की भी कमी नहीं है जो बहुत प्रेम रखते है ओर जो समय पर दूसरों के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान भी कर देते हैं लेकिन कुछ समस्याए पूर्व जन्मो के विकर्मों के कारण भी होती हैं जो ऐसी अदृश्य चीज़ है जिनको कोई जान नहीं सकता है, कुछ लोग मानते भी नहीं है लेकिन मानना पड़ता है ओर जब उनका समाधान कराया जाता है स्प्रिचयूली, तो समझ में आता है वास्तव में स्प्रिचयुल पावर, साइलेंस पावर, पावर ऑफ माइंड, पावर ऑफ राजयोग ये ऐसी शक्तियाँ है जिनके पास हर समस्या का समाधान है| तो मुझे तो ऐसे-ऐसे अनुभव भी लोगो से मिलते हैं की ऐसी समस्या, मतलब अंधकार ही दिखाई देता था की अब तो गए, इसका तो समाधान होने वाला नहीं, हमारा तो सबकुछ खत्म होने जा रहा है चाहे तो हम सामूहिक सोसाइड करेंगे, जैसा कई लोग कर चुके है या सबकुछ गवा देंगे हम तो, पता नहीं हमारा क्या होगा ओर कुछ छोटे-छोटे स्प्रिचयुल एक्सपेरीमेंट किए तो कुछ ही दिनो में, किसी का 21दिनो में या दो मास में सब कुछ ठीक हो गया, अंधकार विलीन हो गया सबकुछ, प्रकाश ही प्रकाश हो गया, मार्ग दिखाई देने लगा ओर सब उलझन भी समाप्त हो गयी|

रूपेश भाई :- एक ऐसी घड़ी होती है भ्राता जी जैसा आपने कहा, कई बार ऐसा होता है जीवन में चारो तरफ से समस्याए आती है जैसे आपने पत्नी की बात कही, बच्चो की बात कही, बिजनेस की बात कही तो जब चारो तरफ से इस प्रकार से समस्या आती है तो निश्चित रूप से व्यक्ति हार जाता है, निराश हो जाता है ओर ऐसे में जब आसपास वाले या जिन पर वो विश्वास करता है जब वो भी उन्हे धोखा दे जाए तो व्यक्ति पूरी तरह से टूट जाता है|

सूर्य भाई जी :- जब लोग अपनी बाते सुनाते हैं तो पहले मन भरने लगता है ओर फिर रो ही देते हैं क्योंकि जीवन के बहुत सुंदर क्षण देखे हैं ओर वो पूरे हो गए| ओर अब ऐसे अंधकार में प्रवेश कर गए की आगे का रास्ता दिखाई ही नहीं दे रहा है तो उन्हे कुछ अच्छी गाइडेंस की निश्चित रूप से जरूरत होती है| मैं देखता हूँ अगर हम उन्हे ये भी कह देते है की माता जी कोई बात नहीं, अभी आपके सुनहरे दिन आ रहे है, सबकुछ ठीक हो जाएगा तो ही उनके जीवन में होसला बढ़ जाता है|

रूपेश भाई :- भ्राता जी वही बात, जैसा की मैं मेल से पहले बहुत सुंदर चर्चा आपने की है जब इस प्रकार से चारो तरफ से व्यक्ति इस प्रकार की समस्यायों से व्यक्ति घिर जाए तो ऐसे समय पर वो क्या करे?

सूर्य भाई जी :- देखिये ये तो ऐसा चक्रव्यूह है की जैसे अभिमन्यु चारो ओर से घिर गया था ओर उसके चरो ओर आफ़ताई ही थे, कोई युद्ध नियमो का पालन करने वाले नहीं ओर उसको भी लग ही रहा था की अब मैंने मृत्यु में प्रवेश कर ही लिया है इसलिए कुछ जौहर दिखा कर ही जाना है| अगर मनुष्य ऐसी समस्याओं में घिर ही जाए तो बस बात इतनी है की वो अपनी शक्तियों को पहचाने, अगर उसने परमपिता से अपना नाता जोड़ ही लिया है तो उसकी शक्तियों में भी विश्वास करे, अपनी समस्याओ को उसपर समर्पित कर दे ओर उससे शक्तियाँ प्राप्त करके कुछ अपने मन को पॉज़िटिव करे, पीसफुल करे ओर जो हमारे स्प्रिच्यूल लाइफ में राजयोग के पथ पर हम कुछ सुंदर चीज़े सिखाते हैं की सवेरे उठकर मेडिटेसन करो, जरा खुली हवा में घूमो, चित में सुन्दर विचार क्रिएट करो तो आपको दिखाई देगा की जीवन सचमुच बहुत सुंदर है ओर समस्याए उतनी बड़ी नहीं हैं जितनी बड़ी हमें प्रतीत हो रही है| कहीं ना कहीं समाधान का मार्ग है अवशय तो ऐसी कुछ प्रेक्टिस करने पर मनुष्य के पास समाधान आ जाता है लेकिन अगर मनुष्य ऐसे सोचता है की वो समस्यायों से इतना उदास हो गया है, इतना निराशा के अंधकार में चला गया है की सो रहा है, सवेरे 10बजे उठ रहा है फिर टी.वी. खोल ली है तो उसको वो समाधान सामने होते भी दिखाई नहीं देगा इसलिए कुछ स्प्रिच्यूल प्रेक्टिस की जाए राजयोग सीख लिया जाए ओर सवेरे उठकर विशेष परमात्म मिलन का अनुभव किया जाए तो उधर से भी बहुत अच्छी बाते बुद्धि में टच हो जाएगी ओर निश्चित रूप से समाधान निकलता है, हमारे पास हजारो अनुभव है|

रूपेश भाई :- मतलब मूल बात है की ऐसे में हिम्मत न हारे जैसे हमे आजकल बहुत सारे न्यूज़ पेपर ओर टी.वी. चेनल में देखने को मिलता है की किसी ने पहले अपने बच्चो को मार दिया, अपनी पत्नी को मार दिया फिर खुद ट्रेन के आगे कूद गया या इस प्रकार से उन्होने समूहिक रूप से सोसाइड कर लिया| तो ये कहीं न कहीं लगता है की उन्होने जीवन से हार मान ली ओर उन्हे लगा की अब शायद कोई ओर आशा की किरण नहीं है लेकिन आशा की किरण तो होती ही है| समाधान ये नही है की हम अपने जीवन का अंत कर दे बस ये है की हिम्मत ना हारते हुये थोड़ी शांति ओर धैर्यता का परिचय दे|

सूर्य भाई जी :- एक व्यक्ति ने मुझे सुनाया की उस पर कर्ज है ओर 5-7 लोगो का है वो रोज आते हैं ओर फोन पर बुरी-बुरी बाते बोलने लगते है, अपमानित होना पड रहा है, कोई कोई घर के द्वार पर आकर ही अपमानसूचक शब्द बोलता है, अब ये सुन-सुन कर टूट गए है तो बस मरने का ही एक रास्ता उन्हे दिखाई देता है| न जिंदा रहेंगे, न कोई आएगा लेकिन राजयोग में ऐसी शक्ति है अगर हम राजयोग का अभ्यास अच्छी तरह करेंगे तो मार्ग निकल जाता है|

रूपेश भाई :- भ्राता जी, जैसे आपने कहा की बहुत सारे लोग इस प्रकार की समस्यायों से राजयोग का अभ्यास करके निकल चुके है ओर आपके पास तो बहुत सारे फोन काल्स आते है, बहुत सारे लोग व्यक्तिगत रूप से मिलते हैं तो क्या कोई ऐसा अनुभव आप हमारे दर्शको के सामने रखेंगे जिसमे ऐसे ही कोई चारो तरफ से घिरा हुआ था जहां कोई आशा की किरण नहीं दिखाई दे रही थी लेकिन उसने राजयोग का अभ्यास किया, ईश्वर को याद किया ओर वो इस समस्या से बाहर निकल गया|

सूर्य भाई जी :- हाँ बिलकुल ऐसे बहुत सारे अनुभव है लेकिन मुझे यही एक अनुभव याद आ रहा था जिसकी चर्चा मैंने की थी, मेरे पास एक ऐसा परिवार आया था ओर मैंने उन्हे बहुत धैर्य दिया की आप घबराए नहीं, बुरे दिन आये है ये निकल जाएंगे| सदा एक सा समय मनुष्य के पास नहीं होता, ये संसार एक विशाल नाटक है, जो अब है वो थोड़ी देर बाद चेंज हो जाएगा इसलिए बुरे दिन भी मनुष्य के जीवन में आते हैं| जैसे हम अच्छे दिनो को एंजॉय करते है ऐसे बुरे दिनो का भी साहस से सामना करे तो ये पार हो जाएंगे फिर मैंने उन सबको समझाया की अपने चित को बिलकुल शांत कर दो, सोच लो अभी 21दिन आपको बहुत अच्छी स्प्रिच्यूल साधना करनी है, बाकी कुछ सोचना नहीं है| क्या होगा, कैसे होगा, होगा या नहीं होगा, मन को निगेटिव सोच-सोच कर निराश नहीं करना है मैंने उन्हे तैयार किया ओर बहन जी, माता जी जो थी ओर उनके पति जो थे, बड़े थे जो परिवार के, वो दोनों ही इस बात को अच्छी तरह समझ गए, दोनों ही मेरे पास आए थे ओर मैंने उन्हे सवेरे उठने की राय दी की आप 4बजे उठे अच्छी तरह क्योंकि क्या हो रहा था की निराश होकर नींद नहीं आ रही तो फिर देर तक सो रहे थे| मैंने कहा नहीं, अब आपकी समस्या समाप्त होने जा रही है, ये मानकर की 21दिन में आपके सुनहरे दिन फिर से आ जाएंगे आपके जीवन में, बिलकुल निश्चिंत हो जाओ| आराम से सोओ, सवेरे उठो, राजयोग मेडीटेसन करो ओर फिर उन्हे मैंने सिखाया की एक घंटा विशेष रूप से 21दिन तक अमृतवेला योग करने के अलावा बिलकुल शांत मन से दोनों दो संकल्प लेकर पावरफुल योग करना| जो राजयोग करते है वो जानते हैं पावरफुल योग किसे कहते हैं, जिसमे हमारा मन पूरी तरह शांत ओर एकाग्र हो जाता है परमात्म स्वरूप पर| ओर उसमे ये दो संकल्प थे की मैं भगवान की संतान शक्तिशाली आत्मा हूँ यानि वो सर्वशक्तिमान है तो मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ ओर विघ्न विनाशक हूँ, विघ्नो को नष्ट करने की शक्ति मेरे पास है ओर राजयोग जब एक घंटे का पूरा हो जाए तो संकल्प करना इस राजयोग की शक्ति से ये जो परिवार पर विघ्न आए है ये नष्ट हो जाए| उन्होने ये बात स्वीकार कर ली ओर उन्होने ये realize कर लिया की अब हमे समाधान की ओर बढ़ना है, इस क्या-क्यों की उलझन में अपने को उलझाना नहीं है की क्यों आया, किसने क्या किया, उसने ये किया होगा, बच्चे बुरे संग में गए होंगे, किसी ने कुछ करा तो नहीं है| ये नहीं, जैसे बीमार होता है व्यक्ति तो डाक्टर कहता है अब द्वाई खाओ यानि समाधान करना है तो उन्होने सचमुच 21दिन बहुत दृढ़तापूर्वक ये सब साधनाए की ओर फिर मुझे 2-4दिन में ही फोन किया की सचमुच हमारे जीवन पर छाए हुये काले बादल हट गए हैं फिर से सबकुछ ठीक हो गया है|

रूपेश भाई :- बहुत सुंदर, मतलब ये एक बहुत सुंदर तरीका हो सकता है भ्राता जी, राजयोग का अभ्यास, मेडीटेसन, ईश्वर पर आस्था ओर साथ ही अपनी जो आंतरिक शक्तियाँ है उनका भी विकास| इनके माध्यम से भी हम जितनी भी समस्याए है, उनका भी निदान कर सकते हैं| आमतौर पर इस ओर हमारा ध्यान नहीं जाता, बाहरी चीज़ों पर ही ध्यान जाता है की इसने ऐसा किया, उसने ऐसा किया, क्या होगा, कैसे होगा| इसमे हम इतना उलझ जाते है की कोई राह दिखाई ही नहीं देती|

सूर्य भाई जी :- बहुत लोग निगेटिव  सोच-सोचकर अपनी शक्तियों को पूरी तरह भूल जाते हैं यानि समाधान की ओर ही नहीं बढ़ते, जैसे पेशन्ट केवल बीमारियो का ही चिंतन कर रहा है, दवाई खाने के बारे में कुछ नहीं सोच रहा है या वो कहता है दवाई खाना तो मैं भूल गया, खानी तो पाँच बार थी दिन में ओर मुझे तो भूल गया| बहुतों के साथ यही हो रहा है इसलिए बहुत सुंदर सिद्धांत मैं लोगो को कहता हूँ की चित को शांत कर दो तो समस्याए स्वत: ही शांत हो जाएगी ओर मैं ऐसे केसेज में जहां लोग बिलकुल उखड़ चुके होते है बिलकुल क्या कहे की चित चैन नहीं पा रहा है उनका ओर मरने तक की सोचते रहते है| मैं उन्हे 2-4 बाते सीखा देता हूँ की इनको स्मरण करके, इनके अभ्यास से चित को पहले शांत करो मैंने बहुत अनुभव में देखा की चित शांत तो सब समस्याए शांत|

रूपेश भाई :- बहुत सुंदर बात है भ्राता जी, इस पर भी अवश्य अमल करेंगे हमारे दर्शक इस को जो सुन रहे है ओर आध्यात्मिकता, मेडीटेसन या राजयोग हमारी समस्यायों का समाधान किस प्रकार से कर सकता है इस पर भी वो अवश्य विचार करेंगे| भ्राता जी मैं मेल की ओर आ रहा हूँ, ये जो आज हमारे पास मेल आया है प्रथम, ये है शिरांपुर से भक्तिमाली लिखती हैं की भक्ति में लोग मंत्र-जाप करते है ओर आप राजयोग सीखाते हैं, दोनों में अंतर क्या है?

सूर्य भाई जी :- बहन जी भक्ति की बात तो कर ही रही है, नाम ही भक्तिमाली है, मंत्र-जाप भी आज कितने लोग करते हैं, मेरे से बहुत भक्त लोग मिलते हैं ओर ये प्रश्न मेरे से भी पूछा जाता है| मैं जब उनसे पूछता हूँ की कितनी माला फेरते हो, मैंने कहा की सचमुच माला पर मन लगता है, मंत्र पर तो जैसे सब लोगो के अनुभव है की माला कुछ जप रहे हैं ओर मंत्र भी याद आ रहा है लेकिन मन ओर भी कहीं भाग रहा है या मंत्रो को छोड़कर कभी ओर ही कुछ करने लगे या इधर-उधर देखने लगे की वो काम हुआ है या नहीं हुआ है तो मंत्र जाप भी वास्तव में सच्चे मन से नहीं किया जा रहा है लेकिन मैं मंत्र जाप का महत्व सबके सामने रखूँगा| मंत्रो में बहुत शक्ति होती है लेकिन मंत्रो का यथार्थ रूप से उच्चारण, एक तो इसका महत्व है क्योंकि उससे वेवज निकलनी चाहिए जो वेवज वहाँ तक पहुंचेगी जिसके लिए हम मंत्रो का जाप कर रहे हैं| दूसरी चीज ये है की शुद्ध मन से किया जाए| अगर मन शुद्ध नहीं है तो मंत्रो की शक्ति भी ज्यादा काम नहीं करेगी| तीसरी चीज ये की मंत्रो का उच्चारण बार-बार यदि किया जाए बहुत एकाग्रता के साथ तो मन पूरी तरह शांत हो जाता है, शांत मन से पूरी एनेर्जी जेनरेट होती है ये इसका फायदा है इसलिए मंत्र शक्ति के बहुत चमत्कारी प्रभाव प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के द्वारा देखे गए, दिखाये गए लेकिन आज वो शक्ति लोगो में नहीं रही क्योंकि इसके पीछे पवित्रता का बल चाहिए तो वो तो लोगो में रहा नहीं, सन्यासियों में भी नहीं रहा, बहुत कम अच्छे संतगन जो बिलकुल दूर रहते है, लोभ-लालच से भी परे रहते है, शिष्यो के चक्कर से भी परे रहते हैं उनके पास कुछ ऐसी शक्तियाँ अवश्य रहती हैं| लेकिन राजयोग, ये तो सीधा परमात्मा से मिलन है, राजयोग परमात्मा की खोज नहीं है, उससे मिलन है ओर इस राजयोग की विशेषता यही है की ये राजयोग की विद्या स्वयं योगेश्वर भगवान ही देते हैं। ये मनुष्यो के द्वारा दी ही नहीं जा सकती क्योंकि मनुष्य को ना आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान है, ना परमात्मा का| परमात्मा कहते तो है लेकिन वो क्या है, कहाँ है, उसका स्वरूप क्या है, उसके गुण कर्तव्य क्या है इसका बोध मनुष्यो के पास नहीं होता| हम कौन है ये तो एक खोज ही बनी रही संसार में, हमारे दर्शनों में, हमारे जो मनीषी रहे हैं, ऋषि-मुनि रहे है वो भी खोज करते रहे की आखिर तुम हो कौन| लेकिन परमात्मा आकर एक बहुत ही स्पष्ट सा ज्ञान हमे दे देते हैं, हम आत्माऐ हैं, देहभान से न्यारे हो जाओ, पहली जो इंपोर्टेंट चीज होती है स्वयं को इस बॉडी-कोंसियस से परे करना, बॉडी-कोंसियसनेस से जुड़े हैं समस्त विकार तो जैसे हम इस बॉडी-कोंसियसनेस से बिलकुल डिटेच होने लगते है तो भौतिकता से भी हम थोड़े डिटेच हो जाते है ओर संसार में जो हमारी इच्छाए, तृष्णाओं के रस में दोड़-भाग कर रहे हैं, बांध रहे है वो छूट जाते है ओर दूसरी ओर ये मनोविकार भी ढीले पड़ने लगते है| हजारो-लाखो के अनुभव है वो क्रोधी थे, बॉडीलेस का अभ्यास करने से क्रोध शांत हो गया अब उनके जीवन में शांति है, उनके परिवार में शांति है ओर दूसरी चीज़ परमात्मा से बुद्धियोग जोड़ना, बिना इसके योग incomplete है| केवल मंत्र जाप, ये भी एक योग है, मंत्र योग, प्रेमयोग भी है भगवान से प्रेम जोड़ना लेकिन जब तक हमने उससे बुद्धियोग नहीं जोड़ा, उसके स्वरूप पर मन-बुद्धि को स्थिर नहीं किया तब तक ये राजयोग कम्पलीट नहीं होता| तो अशरीरी होकर, आत्म-स्वरूप में रहकर परमात्मा से नाता जोड़ना, उसके स्वरूप पर मन-बुद्धि को स्थिर करना ओर उससे शक्तियाँ ग्रहण करना, उससे प्योर वाईब्रेसन्स रिसिव करना ये राजयोग है|

रूपेश भाई :- तो ये जो मंत्र-जाप कर रहे हैं भ्राता जी, आप उन्हे क्या suggest करेंगे की क्या मंत्र-जाप करते रहे या राजयोग का अभ्यास करे?

सूर्य भाई जी :- मैं तो यही suggestion दूंगा की मंत्र-जाप तो करके देख लिया, ठीक है किसी को शांति मिली होगी, अच्छा है, ना कुछ करने से तो कुछ करना ही बेहतर होता है लेकिन राजयोग तो एक सम्पूर्ण योग है, परमात्म मिलन का मार्ग है इस योग के अभ्यास से तो साधक को ये महसूस होता है की हम भगवान से मिलते है, जब योग किया माना मिलन की अनुभूति हुई ओर मेरे जीवन में भी यही हुआ की 1964 मे मैंने जब प्रथम बार योग किया था तो लगा की भगवान से मिलन हो गया ओर उसने मुझे आकर्षित कर लिया तो मैं सबको यही राय दूंगा की मंत्र-जाप कर लिया, अच्छा किया अब परमात्मा से मिलन का सुख अनुभव करे|

रूपेश भाई :- जी बिलकुल बहुत सुंदर भ्राता जी, अगली मेल की ओर मैं चल रहा हूँ, ये आया है हमारे पास आनंदपुर से ओर सतीश श्रीवास जी लिख रहे है की क्या धर्म ओर आध्यात्म की शक्ति संसार को कुछ दे पाएगी या धर्म केवल मनुष्य को कमजोर ही बनाता जाएगा, इतिहास साक्षी है की धर्म ने सत्ता को निर्बल किया ओर अनेक लोग भय के शिकार हो गए, कृपया इस पर प्रकाश डाले|

सूर्य भाई जी ;- बहुत ही सुंदर प्रश्न है सतीश का, बिलकुल हम भी इसी तरह का चिंतन करते आते थे की धर्म ने मनुष्य को कमजोर किया, सम्राट अशोक जो अशोक महान के नाम से हमारे इतिहास में प्रसिद्ध है मैं उनका ही उदाहरण दूंगा जो इतिहास में बहुत वेलनॉन है ओर भी कुछ है की उन्होने बोधधर्म को स्वीकार कर लिया, युद्ध का मार्ग त्याग दिया, युद्ध को उन्होने हिंसा समझा क्योंकि कलिंग का युद्ध उस समय बहुत हिंसात्मक रूप ले चुका था लेकिन उसके बाद क्या हुआ की उन्होने सेनाओ पर ध्यान नहीं दिया इसलिए उसके बाद उनका शासन कमजोर पड़ गया, दिखाया है की मोर्यवंश उसके बाद ढीला पड़ने लगा ओर 7पीढ़ी साथ चली ओर उसके बाद वो समाप्त हो गया| तो ये सत्य है की इतिहास भी गवाह है की धर्म ने मनुष्य को निर्बल किया लेकिन इसका एक कारण है की धर्म का सम्पूर्ण ज्ञान मनुष्य के पास तब भी नहीं था, हो सकता है मेरी ये बात हमारे दर्शको को, चिंतको को भाए नहीं पर देखिये मैं बिलकुल साफ कहूँगा क्रिश्चयन धर्म में प्रेम, बोध धर्म में भी द्या-अहिंसा, जैन धर्म में भी ऐसा ही कुछ ओर धर्मो में भी एक-एक क्वालिटी ले लीजिये, संपूर्णता जो है वो नहीं रही| वो केवल एक धर्म में ही दिखाई देती है लेकिन वो अब केवल पुस्तकों में रह गयी ओर वो है भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म उसमे वो संपूर्णता है तो मनुष्य को अहिंसक भी होना चाहिए ओर शक्तिशाली भी, उसको दयावान भी होना चाहिए लेकिन सबकी सुरक्षा करने वाला भी, उसे सबके लिए प्रेम-भाव भी रखना चाहिए लेकिन बहुत सशक्त भी होना चाहिए की यदि उस पर कोई आक्रमण करे तो वो उसका सामना करने में, उसको जवाब देने में बहुत सक्षम है|

रूपेश भाई :- मतलब अहिंसा को हमे सही अर्थो में समझना होगा की अहिंसा का भाव ये नहीं है की हम अपने हथियार ही डाल दे लेकिन ये भी भाव है की हम आत्म-रक्षा अवश्य करे|

सूर्य भाई जी :- लोग कह रहे थे की मच्छरों को क्यो मार रहे हो ये भी तो हिंसा है, अरे भई मच्छर तुम्हें मार रहे हैं, तंग कर रहे हैं, सोने नहीं दे रहे तो आपने आल-आउट लगा ली तो इसमे कौन सी हिंसा हो गयी तो लोगो ने क्या अहिंसा को कायरता बना दिया ये वास्तव में अहिंसा है ही नहीं| आत्म-रक्षा के लिए यदि कोई हम पर आक्रमण कर रहा है यदि हमारे सामने कोई बुरा काम कर रहा है तो हम इतने शक्तिशाली होने चाहिए की उसको भी रोक सके ओर अपने को भी बचा सके यही सच्ची अहिंसा है तो धर्म वास्तव में मनुष्य को शक्तिशाली बनाता है| कहा जाता है रिलीजन इज माइट, धर्म में बहुत शक्ति है लेकिन उस धर्म के सत्य स्वरूप को जानना पड़ेगा| आध्यात्म में रियल शक्ति है धर्म की, धर्म को लोगो ने यही मान लिया की पूजा-पाठ करो, मंदिर निर्माण करा दो की इन्होने अहिंसा का पाठ पक्का कर लिया तो किसी ने ओर कुछ लेकिन ये अपूर्ण स्वरूप है धर्म का| वास्तव में मैं ये कहना चाहूँगा की जहां धर्म ओर आध्यात्म दोनों मिल जाए, जहां धर्म का सम्पूर्ण स्वरूप मनुष्य के जीवन में आ जाए उस मनुष्य से शक्तिशाली संसार में कोई नहीं हो सकता ओर ऐसा धर्म ओर आध्यात्म, ना केवल भारत का लेकिन सारे संसार का कल्याण करेगा ओर उसे निर्बल नहीं ऐसा शक्तिशाली बनाएगा| मान लो भारत में हम आध्यात्म ओर धर्म का बल बढ़ा दे तो हम इतने शक्तिशाली बन जाएंगे जो संसार की बड़ी से बड़ी शक्ति भी हमारी ओर आँख उठाकर नहीं देख पाएगी|

रूपेश भाई :- तो मूल रूप से भ्राता जी, धर्म के मूल स्वरूप को हमे समझने की आवश्यकता है जिसे शायद हम कहीं न कहीं भूल गए हैं ओर इसलिए एक प्रकार से ये मान्यता प्रचलित होने लगी है की धर्म शक्तिहीन बनाने लगा है ओर कई लोग भ्राता जी, एक प्रश्न मैं अपनी तरफ से पुछ रहा हूँ कई लोग ये कहते हैं की धर्म एक अफीम की तरह है जो नशा चढ़ा देती है ओर वास्तविकता से हमें दूर ले जाती है, इस विषय पर आप क्या कहेंगे|

सूर्य भाई जी :- ये गलत है वास्तव में, जिन लोगो ने धर्म के रीयल मर्म को नहीं समझा है वो धर्म की ऐसी व्याख्या करते है जिनहोने धर्म के सत्य स्वरूप समाज के आगे नहीं रखा| देखिये मैं रीयल बात एक ओर कहना चाहूँगा परमात्मा भी आकर एक सत्य धर्म की स्थापना करते हैं सृष्टि पर। हमने देखा मनुष्यो ने तो अपने आत्मबल के आधार से अनेक धर्म स्थापित किए क्राईस्ट ने क्रिश्चन धर्म, महात्मा बुद्ध ने बोध धर्म ऐसे ही लेकिन एक धर्म स्वयं परमात्मा के द्वारा भी स्थापित होता है ओर वो है आदि सनातन देवी-देवता धर्म ओर धर्म की इतनी शक्ति उसमे भर जाती है की वो धर्म आलमाईटी रिलीजन बन जाता है ओर वो धर्म जब भारत में होता है तो संसार की कोई शक्ति भारत की ओर आँख उठाकर नहीं देखती| वो आलमाईटी रिलीजन आलमाईटी गवर्नमेंट वाला धर्म हो जाता है तो धर्म तो मनुष्य को बहुत शक्तिशाली बनाता है|

रूपेश भाई :- आपने भ्राता जी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की बात कही तो ये धर्म तो आजकल हम सुनते ही नहीं, ये धर्म कौन सा है, क्रिश्चयन हम देखते है, बुद्धिस्ट हम देखते हैं, जैनी हम देखते हैं, हिन्दू हम देखते हैं लेकिन ये जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म है इसका तो कहीं|

सूर्य भाई जी :- देखिये ये लोप: ही हो गया है, लोग केवल अपने को सनातन ही कहने लगे हैं यानि जो श्रीराम के भक्त है, ये सनातन भी एक सेक्ट बन गया है जैसे वैष्णव एक सम्प्रदाय बन गया है, तो एक स्वामी नारायण समप्रदाय बन गया है| हिन्दू धर्म में ऐसे भिन्न-भिन्न भेद हो गए हैं कोई सेव मत को मानने वाले हैं, कोई वैष्णव मत को, विष्णु के पूजारी हैं उसमे मान्यता रखते हैं वो उसको लेकिन ये वास्तव में सब एक ही धर्म था जिसका अब से कुछ समय पहले नाम था हिन्दू धर्म| शंकराचार्य आया उससे पहले, ये धर्म के जो बहुत सारे सेक्ट जो बन गए हैं, सम्प्रदाय बन गए हैं ये पहले नहीं थे ओर उससे पहले उसी धर्म का मूल नाम था आदि सनातन देवी-देवता धर्म| तो ये धर्म सतयुग-त्रेतायुग चला, दो युग तक इस धर्म का आदिपत्य रहा ओर बाद में इसी का नामांतरण हुआ हिन्दू रूप में ओर फिर हिन्दू धर्म में बहुत सारे सेक्ट सम्प्रदाय बन गए ओर इस तरह धर्म का स्वरूप थोड़ा बिगड़ता भी गया ओर थोड़ा निगेटिव भी होता गया|

रूपेश भाई :- तो वास्तव में जैसे हम पढ़ते भी है इतिहास में की चूकी सिंधु नदी के किनारे बसे हुये थे ये सभी इसलिए हिन्दू कह दिया है इनको लेकिन वास्तव में ये आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे भले ही बाद में हिन्दू नाम पड़ गया है| भ्राता जी मैं अगले मेल की ओर चल रहा हूँ, ये मेल आया है हमारे पास कोल्हापुर से ओर ये आनंद मान जी लिख रहे हैं की मैं आपका कार्यक्रम समाधान नियमित देखता हूँ ओर आप लोग प्राय: आध्यातम शब्द का प्रयोग करते हैं, धर्म का नहीं, मैं जानना चाहता हूँ की आध्यात्म ओर धर्म, क्या ये दोनों चिजे अलग है? शायद इसी की चर्चा आप अभी कर रहे थे|

सूर्य भाई जी :- हाँ नहीं, ओर भी इस पर ये तो देखिये एक ऐसा विस्तृत ओर विशाल विषय है जिस पर बहुत अच्छी चर्चायेँ की जा सकती है, धर्म के स्वरूप तो हम सब देखते हैं ओर धर्म अलग-अलग हैं ये भी दिखाई देता है ओर लोग ये भी कोशिश करते हैं की सभी धर्म मिलकर एक हो जाए, जोकि बिलकुल असंभव कार्य है, लोगो ने कोशिश करके देख लिया| क्योंकि धर्म आज-कल ऐसा एक स्वरूप ले चुका है हर व्यक्ति ये सोचता है की मेरा धर्म सबसे श्रेष्ठ है मुझे अपने ही धर्म का पालन करना चाहिए, दूसरों का धर्म तो बेकार है, उनके लिए लोगो के मन में सम्मान भी नहीं रहा तो धर्म के साथ अगर आध्यातम भी जुड़ जाता है तो धर्म रीयल स्वरूप ले लेता है मनुष्य के जीवन में, तब उसे पूजा-पाठ की जरूरत नहीं होती, उसका जीवन ही धर्म का स्वरूप होता है, उसे ग्रंथ पढ़ने की भी जरूरत नहीं होती उसका जीवन ही एक सुंदर ग्रंथ होता है, उसका जीवन ही अपना एक तीर्थ बन जाता है| तो वास्तविक चीज़ आध्यात्म ही है, आध्यातम के बिना धर्म में गिरावट होती आई है जो हमने चर्चा की धर्म बहुत सतोप्रधान स्वरूप में था, बहुत पवित्र था लेकिन अब धर्म का स्वरूप ऐसा हो गया है की विदेशो में तो धर्म के नाम से ही लोग चिढ़ने लगे हैं| क्रिश्चयन जो इतना बड़ा धर्म कहलाता है अगर उसमे सर्वे किया जाए कितने लोग धर्म को मानने ओर जानने वाले हैं तो शायद 1% भी ना मिले| (वहाँ तो विभाजन भी बहुत हो गया है|) वहाँ तो भगवान के नाम से ही लोग चिढ़ने लगे है, हमारे भारत में कम से कम वो स्थिति तो नहीं है, युवक कम से कम फिर भी धार्मिक भावनाओ से जुड़े रहते हैं तो आध्यात्म को अगर समझ लिया जाए यानि आत्मा ओर परमात्मा को जानना, दोनों का संबंध जोड़ लेना, अपनी आत्म उन्नति करना, चित को शुद्ध करना, मनोविकारों का त्याग करना| ये सब आध्यात्म कहलाता है|

रूपेश भाई :- बहुत सुंदर भ्राता जी, ये चर्चा तो मुझे लगता है की बहुत गहन हो सकती है, इस पर चर्चा होनी भी चाहिए क्योंकि लोग शायद इस चीज को भूलते जा रहे है या उतना महत्व नहीं दे रहे है| धार्मिक कर्म-कांडों में ही ज्यादा लिप्त है चाहे वो पूजा-पाठ की हो, चाहे गिर्जाघर जाने की हो, चाहे नमाज पढ़ लेने की हो लेकिन आध्यात्म जो आपने कहा की वो हरेक धर्म का मूल है वो चीज कहीं ना कहीं खोती जा रही है| इस पर चर्चा हम भ्राता जी आगे भी आपके साथ जारी रखेँगे, आज की तमाम चर्चा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद| बहुत सुंदर धार्मिक ओर आध्यात्मिक चर्चा है ओर हम सबके जीवन का सार यही है की हम अपनी आत्म उन्नति करे यदि हम संसार में आए हैं तो स्वयं को सम्पूर्ण रूप से जाने ओर उस परम सत्ता को भी जाने जिसने हमे इस संसार में भेजा है की हम क्या करे, क्या ना करे, किस प्रकार से संसार में रहते हुये सम्पूर्ण आनंदित रहे ओर दूसरों को भी आनंद प्रदान करे| लेकिन ये तभी हो सकता है जब हम स्वयं को अच्छी तरह समझे ओर ये संभव है आध्यात्म को समझने से, इस चर्चा को हम आगे भी जारी रखेंगे, आज के लिए इतना ही| दीजिये इजाजत, नमस्कार!

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