Samadhan Episode – 00789 Spiritual Awakening

CONTENTS :

1. भक्ति और ज्ञान का सही अर्थ क्या है एवं इनमें क्या अंतर है ?

2. परमात्मा तक पहुँचने का रास्ता क्या है – भक्ति या ज्ञान ?

3. “गुरु का निंदक ठौर ना पाए” – इसे किस तरह से समझा जाए ?

4. अभंग और राजयोग में क्या समानता है ?

5. राजयोग का पानी पर किस प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है ?

6. ऋषि मुनि किस प्रकार से जल में शक्ति भर देते थे ?

रुपेश कईवर्त : नमस्कार, आदाब, सत श्री अकाल ! मित्रों एक बार पुनः स्वागत है

आपका, खत्म हुआ व्यवधान मिल गया समाधान कार्यक्रम में | मित्रों आप जानते

हैं कि स्वामी विवेकानंद के पिता बहुत ही धनाढ्य और बहुत ही नामी वकील थे |

लेकिन जब अचानक उनका देहवसान हुआ तो घर में आर्थिक विपदा आ गई |

अब विवेकानंदजी रामकृष्ण परमहंसजी के पास जाया करते थे, उन्होंने कहा कि

आप तो देवी माँ के बहुत ही करीब हैं तो आप उनसे कह दीजिये कि घर में थोड़ी

सम्पत्ति भेज दें, कुछ व्यवस्था कर दें, आशीष कर दें, ताकि जो विपदा है वो दूर

हो जाए | तो परमहंसजी ने कहा कि मैं क्यों कहूँ ! माँ तो वो तुम्हारी भी हैं, तो तुम

क्यों नही कहते ! विवेकानंदजी गए माँ के पास, ये कहने गए थे कि मुझे धन की

आवश्यकता है, धन की थोड़ी वर्षा कर दें ! लेकिन उनके मुख से ये बात नहीं

निकली | उन्होंने माँ के सामने जाते ही ये याचना की कि हे माँ मुझे भक्ति दो, ज्ञान

दो, वैराग्य दो,  और ये कह कर वो वापिस बाहर आ गए | परमहंसजी ने पूछा कि

क्या माँगा ? तो उन्होंने कहा कि मेरे मुख से तो यही निकला था | तो उन्होंने कहा

कि वापिस जाओ और धन मांगो ! तो वो वापिस गए, लेकिन जब उन्होंने धन की

याचना करनी चाही तो फ़िर से उनसे यही शब्द निकले कि हे माँ.. मुझे भक्ति दो,

ज्ञान दो, वैराग्य दो | फ़िर वो बाहर आ गए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शायद

जिस चीज़ की मेरी आत्मा को चाहना है वही चीज़ अंदर से बार बार निकल रही है |

और मित्रों ये हम सबके साथ भी है, चाहना मनुष्य की बनी रहती है कि उसको भक्ति,

ज्ञान या वैराग्य या उस परम तत्व की प्राप्ति हो जाए.. और शायद इसीलिए जब इसकी

चर्चा होती है तो इसमें कहीं ना कहीं हमारी रूचि बनी रहती है और ये चाहना भी

अंतर्मन में बनी ही रहती है | मित्रों आज मैं भक्ति और ज्ञान की बात इसलिए कर रहा

हूँ क्योंकि आज हमारे मंच पर जो अतिथि  विराजमान हैं दोनों का नाम ही.. एक का

भक्ति और एक का ज्ञान है | हमारे साथ पुणे से भक्तिजी और साथ ही साथ उनके

साथ उनके जीवन साथी ज्ञानेश्वरजी पधारे हुए हैं, आइए उनका स्वागत करते हैं | और

खत्म हुआ व्यवधान मिल गया समाधान कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं | आप दोनों

का बहुत बहुत स्वागत है, अभिनन्दन है |

 

भक्तिजी : थैंक यू |

 

ज्ञानेश्वरजी : थैंक यू |

 

रुपेश कईवर्त : बहुत ही सुंदर सा नाम चुनकर आप दोनों के माता-पिता ने आपके

लिए रखा है | और बड़ा ही प्यारा लगता है जब इन दोनों का संगम हो जाता है | जब

दोनों का संगम हुआ, भक्ति और ज्ञान का तब तो जीवन बहुत आनंदमय हो गया होगा !

भक्तिजी ..

 

भक्तिजी : बिलकुल ! और कहते भी हैं कि भक्ति का अर्थ ही है प्यार | लेकिन उस

प्यार में निरपेक्षता चाहिए, निस्वार्थता चाहिए.. जैसे कि संत और महात्माओं ने हमे

बताया | तो इस प्रकार से भक्ति नाम है तो भक्ति किसकी आराधना करेगी ! तो वो

जो परम ज्ञानेश्वर है, परम तत्व है जिसकी बात आपने कही, उसकी ही करेगी |

 

रुपेश कईवर्त : बिलकुल.. बिलकुल.. उनकी आराधना करते रहें और इन ज्ञानेश्वरजी

की भी आराधना हुई कि नहीं !

 

भक्तिजी : बिलकुल.. उनकी भी हुई !! और परमतत्व की भी…

 

रुपेश कईवर्त : परमतत्व की भी हुई | भक्ति का कितना सुंदर अर्थ आपने हमे बताया है,

ज्ञान का क्या अर्थ है ज्ञानेश्वर जी ?

 

ज्ञानेश्वरजी : ज्ञान, मेरे ख्याल से बहुत ही सिंपल है, ज्ञान को हमने बहुत ही क्लिष्ट कर दिया है !

बहुत बार कहते हैं मुझे बहुत आत्म ज्ञान है, आत्म ज्ञान  है.. | कहते हैं आत्म ज्ञान के ऊपर

बहुत बड़ी बड़ी किताबे मिलती हैं, लेकिन बाद में पता चला कि वाकई में आत्म ज्ञान बस दो

ही शब्दों का है | मैं आत्मा हूँ ये ज्ञान.. और भक्ति का एक और महत्त्व मुझे लगता है, भक्ति जो

है वो अनुभव नहीं है | भक्ति जो है रुपेश भाईजी को जो अनुभव आ गया, वो मैंने कीर्तन किया

कि रुपेश भाईजी कितने श्रेष्ठ हैं, वो भक्ति है | और रुपेश भाईजी ने जो अनुभव किया, वो अनुभव

मैंने भी किया, वो ज्ञान है |

 

रुपेश कईवर्त : वाह ! क्या बात है ! आपने कितना स्पष्ट कर दिया | मैं इसे आपके शब्दों

में जानना चाहूँगा भक्तिजी | भक्ति का उद्देश्य क्या है ?

 

भक्तिजी : मुझे लगता है कि जब भी कोई मनुष्य भक्ति करता है इसी उद्देश्य से कि उसके

अंदर.. डर कहो, खालीपन कहो.. वो खालीपन, भक्ति के द्वारा भरना चाहता है, और इसी

लिए वो भक्ति करता है | कुछ लोगों के मन में ये भी है कि भक्ति इसलिए भी की जाती है

कि उनकी कुछ मांग है | मुझे नहीं लगता कि केवल भगवान से कुछ मांगने के लिए भक्ति

की जाती है | मुझे ऐसा लगता है कि भक्ति इसलिए की जाती है कि हमारे अंदर की एक

आश है, परमात्मा के प्रति जो स्नेह है उसके लिए भक्ति करनी चाहिए | मैंने इस प्रकार से

भक्ति की थी |

 

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. माना उस प्रेम का प्रदर्शन है भक्ति | ज्ञान का या सद्ज्ञान ही कह लें,

इसका परमुद्देश्य क्या है ज्ञानेश्वर जी?

 

ज्ञानेश्वरजी : देखिये मुझे लगता है कि ज्ञान में अगर भक्ति नहीं है तो संसार पूरा नहीं है |

और इसलिए अगर भक्ति बिना ज्ञान है तो रुखा-सूखा हो जाता है | और अगर साथ में

भक्ति आती है तो ज्ञान पूरा हो जाता है, उसका बहुत सरल उदहारण है कि आज मैं ये

कहूँ कि मैं बहुत ही सीधा-साधा आदमी हूँ, तो मैं ये कहता हूँ i may be god fearing

person | तो हमे बचपन से ये सिखाया जाता है कि हमे भगवान से डरना है | जब मैं भक्ति

करता हूँ तो हमे भगवान से प्यार करना चाहिए | एंड फ्रॉम गॉड fearing पर्सन माय ट्रेवल

शुड be टुवर्ड्स गॉड लविंग पर्सन |

 

रुपेश कईवर्त : ये ज़्यादा बेहतर है डरने की बजाय.. यदि हमे ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो

क्या लगता है कि हमे भक्ति से मिलेंगे या ज्ञान से मिलेंगे ?

 

भक्तिजी : जैसा इन्होंने कहा कि भक्ति युक्त ज्ञान चाहिए | ज्ञान अर्थात बुद्धि में वो समझ

चाहिए, एक शक्ति चाहिए कि जो मैं कर रही हूँ वो सही है ! मुझे जो करना है वही मैं कर

रही हूँ या कर्मकांड कर रही हूँ | रुपेश भाईजी मुझे ऐसे लगता है कि भक्ति का मतलब

हरेक अपनी अपनी रीति से समझता है लेकिन इसका मतलब कर्मकांड में फंसना नहीं है..

लेकिन अंदर से एक निरपेक्ष, एक निस्वार्थ.. अगर अंदर का खालीपन है वो भरना है | मुझे

ऐसे लगता है |

रुपेश कईवर्त : बिलकुल बिलकुल.. तो क्या भक्ति करते हुए हम परमात्मा तक पहुँच सकते

हैं या परमात्म प्राप्ति हो सकती है आपके विचार से !

 

भक्तिजी : मेरे विचार से ही नही.. मेरे अनुभव से भी मैंने ये देखा है कि जब हम भक्ति करते

हैं जिसमे ऐसी कोई आस नहीं है तो हम उस तक ज़रूर पहुँच जाते हैं |

 

रुपेश कईवर्त : मतलब उसमे कोई अपना स्वार्थ नहीं होना चाहिए, कोई अपेक्षा नहीं होनी

चाहिए | ज्ञानेश्वरजी, ज्ञान हमे ईश्वर तक सहज पहुँचा देता है या भक्ति, आपके विचार से !!

 

ज्ञानेश्वरजी : मुझे ऐसा लगता है.. जैसे मैं साइंस ग्रेजुएट हूँ इंजीनियरिंग से.. तो जैसे बहुत सारे

सब्जेक्ट्स होते हैं, जैसे फिजिक्स है, स्टेटिस्टिक्स है, मैथमेटिक्स है.. वो हमने पढ़ा | लेकिन

उसके बाद और भी सब्जेक्ट्स हैं जैसे एप्लाइड फिजिक्स, एप्लाइड मैथमेटिक्स, एप्लाइड

स्टेटिस्टिक्स | सो जबतक हम भक्ति को अप्लाई नहीं करते अपनी जिंदगी में, तबतक ज्ञान

नहीं है | तो ज्ञान कब होता है जब एप्लीकेशन हो जाता है | एंड unless it is एप्लाइड वो

प्रैक्टिकल हो जाये, और जब मैं अप्लाई करता हूँ तब वो प्राप्ति होती है | थ्योरी पर रुक जाता

हूँ तो वो भक्ति है और अप्लाई करता हूँ, जब एप्लीकेशन करता हूँ तो वो ज्ञान है |

 

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. तो मतलब ढोल नगाड़े बजाने से काम नहीं होगा, उसे अप्लाई भी

करना होगा | जो अच्छी अच्छी बातें हम सुनाते हैं, जो भजन में करते हैं, तब जाकर हम ईश्वर

तक पहुंचेंगे | या ईश्वर के समान बन पाएंगे |

 

ज्ञानेश्वरजी : माय एम एंड ऑब्जेक्ट अगर मुझे ईश्वर को पाना है तो मुझे उनके अनुसार

चलना भी चाहिए | मैं सिर्फ़ बैठा रहूँगा, चलूँगा नहीं तो फ़िर फ़ायदा नहीं |

 

रुपेश कईवर्त : तो फ़िर क्या समझा जाए, भक्ति श्रेष्ठ है या ज्ञान ?

 

भक्तिजी : दोनों ही श्रेष्ठ हैं मुझे ऐसा लगता है भाईजी | किस प्रकार से जैसे कि हमने

कहा कि किसी एक ने जैसी भक्ति की मुझे भी वैसी नहीं करनी है, मेरे भक्ति करने

की रस्म अलग हो, भावना होनी चाहिए..

 

रुपेश कईवर्त : भावना.. प्यार होना चाहिए, मतलब दोनों का संगम होना चाहिए ..

 

ज्ञानेश्वरजी : ज्ञान भी होना चाहिए |

 

रुपेश कईवर्त : भक्ति का ज्ञान होना चाहिए..

 

ज्ञानेश्वरजी : या ज्ञानयुक्त भक्ति होनी चाहिए |

 

रुपेश कईवर्त : जी जी.. बहुत ही सुंदर बात है ये | मतलब अगर दोनों का सुंदर संगम

होगा तो उस तक पहुँच पाएंगे | तो क्या कभी इस बात को लेकर आपमे द्वन्द तो नहीं

होता रहा जीवनभर, कि मैं श्रेष्ठ हूँ या मैं श्रेष्ठ हूँ .. !

 

ज्ञानेश्वरजी : देखिए, जब हमारी शादी हो गई.. तो मेरा नाम ज्ञानेश्वर था, लेकिन इसका नाम

भक्ति नहीं था | लेकिन महारष्ट्र में परम्परा है कि नाम बदल देते हैं | मेरा नाम संत ज्ञानेश्वर के

ऊपर था क्योंकि मेरा जन्म ज्ञानेश्वर बीच में हुआ था,  तो मेरे पिताजी-माताजी ने मेरा नाम

ज्ञानेश्वर रखा था | तो मेरा नाम ज्ञानेश्वर है इसलिए इनका नाम भक्ति रखा | और संयोगवश

ऐसे हो गया, भक्ति और ज्ञान.. जब इनका मिलाप हो जाता है तो संसार सुंदर बन जाता है |

वैसा ही हमारा रहा |

 

रुपेश कईवर्त : चलिए, बहुत सुंदर है, आप लोगों का परिवार, संसार, ये पूरा जीवन सुखमय

रहा है और सुखमय रहेगा, ऐसी हम कामना करते हैं माना द्वन्द नहीं रहा | दोनों आपस में

प्रेम से रहे हैं | चलिए एक चीज़.. आपने भक्ति की बात कही ज्ञान की सुंदर बात कही,

भक्तिजी आपने मेल में लिखा था कि बहुत भक्ति किया करती थीं आप, बहुत सारे गुरु

किये आपने, तो इतने सारे गुरु और भक्ति करने के पश्चात् भी जब आप प्रजापिता

ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय में आईं आप, तो किस रूप से इस ज्ञान को लिया,

क्या इसकी आवश्यकता तब भी आपको महसूस हो रही थी या फ़िर आपने दोनों का

तुलनात्मक अध्ययन किया, उसके बाद आप आध्यात्मिक मार्ग में आगे बढ़ेंगी !

 

भक्तिजी : बहुत सुंदर प्रश्न पूछा आपने भाईजी ! दरअसल, बहुत गुरु किये थे मैंने,

लेकिन मेन तो मैं 12 साल तक संत श्रेष्ठ श्री गजानन महाराज, जो नागपुर में श्रीगांव है..

काफ़ी लोग उसको जानते हैं महाराष्ट्र में | तो उनकी भक्ति करती थी या कहो आराधना

करती थी | और मैं उसमें इतनी खुश थी क्योंकि कई बार उसमे मुझे साक्षात्कार जैसी

बात हो चुकी थी और अंदर से मुझे एक संतुष्टता थी | इसलिए जब मैंने ये ज्ञान लिया,

राजयोग का ज्ञान लिया, तब नेचुरल है कि मैं थोड़ी तुलना करने लगी | लेकिन मुझे लगा

संत श्रेष्ठ गजानन महाराज उन्हें कहा जाता है, उन्होंने मुझे काफ़ी कुछ दिया है | मैं उनकी

इतनी निस्वार्थ भक्ति करती थी, प्यार में जैसे मैं डूब गई थी | तो उन्होंने चाहा कि मुझे

अपने भक्त को मंज़िल तक पहुँचाना चाहिए | क्योंकि कोई भी गुरु जो होता है ना वो

अपने शिष्य को मंज़िल तक ले जाना चाहता है | इसलिए मैंने ऐसा समझा उसका अर्थ

कि राजयोग का जो ज्ञान है.. मुझे गजानन महाराज ने ही वहाँ तक पहुँचाया है | क्योंकि

आध्यात्मिक उन्नति ही हम चाहते हैं |

 

रुपेश कईवर्त : जी.. जी.. आपकी अनुभूति कैसी रही.. क्योंकि आप भी भक्ति में काफ़ी रहे,

किस चीज़ को आपने देखा यहाँ, क्या खास आपको प्राप्ति हुई ?

 

ज्ञानेश्वरजी : प्राप्ति तो बहुत सारी हो गई, पहले भक्ति ने बताया, वो एक गुरु थे | हमे दूसरा

रास्ता अपनाना है तो मन में एक प्रश्न था, कि हम ये गुरु को छोड़ रहे हैं | फ़िर जैसा कि आपने कहा..

 

रुपेश कईवर्त : जैसे भक्ति में कहा जाता है कि गुरु का निंदक ठौर ना पाए.. एक गुरु को छोड़कर

दूसरे के पास गए, तो तुम्हारी कोई गति-सद्गति नहीं होगी |

 

ज्ञानेश्वरजी : तो ये मेरे मन में प्रश्न था | लेकिन जैसे आपने अभी एक उदहारण दिया वैसे

मैंने भी एक उदहारण सोचा कि समझो मैं फर्स्ट स्टैण्डर्ड में हूँ और टीचर समझो बहुत

प्यारा है या प्यारी है | और मुझे उनसे बहुत प्यार है | अभी सेकंड स्टैण्डर्ड में वो टीचर

तो नहीं रहेगी, मैंने मम्मी-पापा को कहा कि मुझे अगर यही टीचर मिलेगा तभी मैं सेकंड

स्टैण्डर्ड में जाऊंगा नहीं तो मैं नहीं जाऊंगा | तो टीचर भी कहेगा कि अगर तुम्हे प्रगति

करनी है तरक्की करनी है तो तुम्हे सेकंड स्टैण्डर्ड में जाना पड़ेगा | वहाँ नई टीचर होगी |

इसका मतलब ये नहीं है कि फर्स्ट स्टैण्डर्ड वाली टीचर बुरी है, या उसे प्यार नहीं है |

प्यार है, उसने काम भी बहुत अच्छा किया है, और वो मुझे छुट्टी भी दे रही है कि आप

सेकंड स्टैण्डर्ड में जाओ | वही एप्लीकेशन हम हमारे अध्यात्मिक बैकग्राउंड में करें तो

मेरे गुरु हैं, अभी भी गजानन महाराज के प्रति हमारा प्यार है तो जैसे वहाँ मैं गया था तो

वहाँ मैंने कविता भी की थी गीत भी लिखे थे | आँखों में से पानी आता था इतना प्यार था,

अभी भी प्यार है | ऐसा नहीं है कि अभी प्यार नहीं है लेकिन अभी रास्ता चलना है | इसलिए

कहते हैं कि गुरु का हाथ पकडकर चलना है, गुरु हाथ देता है लेकिन चलना हमे है |

 

रुपेश कईवर्त : मतलब गुरूजी ने आपको यहाँ तक पहुँचाया, और आगे बढ़ाया और आप

लोग आध्यात्म के मार्ग पर एक कदम और आगे बढ़ गए | ब्रह्माकुमारिज में जब आप आये

ज्ञानेश्वरजी तो क्या खास आपको लगा कि ये चीज़ थोड़ी सी मिस्सिंग थी या ये चीज़ हमे एक

अमूल्य हीरे की तरह प्राप्त हो गई या फ़िर जैसे एक न्यू feather जुड़ जाता है हमारी

आध्यात्मिक साधना या मार्ग में.. वो कौनसी चीज़ थी |

 

ज्ञानेश्वरजी : देखिये, गजानन महाराज का जैसे मैंने बताया वैसे मैं वार्करी भी हूँ | वंडरपुर

मैं पैदल ही जाता था वहाँ संत ज्ञानेश्वरजी हैं, तुकारामजी हैं उनके जो अभंग गाते थे.. मैं

भी बहुत अच्छी तरह से गाता था, और इतना भाव-विभोर हो जाता था | लेकिन उसका जो

अर्थ है उसका शब्दार्थ समझ में आता था | लेकिन ब्रह्माकुमारीज में आने के बाद, वही गीत,

वही शब्द, लेकिन उनका भावार्थ, अन्वयार्थ, अपितार्थ वो सब समझ में आया | फ़िर ज्ञान का

सही अर्थ समझ में आया, कि भगवान क्या है, ईश्वर क्या है, जो निरपेक्ष है | क्योंकि वो सब

मराठी में अवन्द है, वो निरपेक्ष है, उसका पता चला |

 

रुपेश कईवर्त : और वो उस निराकार की ही स्तुति है, और वो सारी चीज़े हैं, जो मूल्यों की

बात हैं उसे जीवन में लाना आपने शुरू कर दिया | कई लोग, भक्ति जी, ऐसा मानते हैं कि

आप किसी नई जगह पर जुड़ गए.. चलिए आप ब्रह्माकुमारीस में आ गए, किसी ना किसी

नई जगह पर चले गए.. तो आपको पुरानी चीज़ को नहीं छोड़ना चाहिए.. या फ़िर इससे बहुत

अनिष्ट होता है या कई प्रकार की चीज़े ऊपर-नीचे हो सकती हैं | ऐसा आदि मानते हैं, इसीलिए

आप जहाँ हो वहीँ रहो | आप के विचार से कभी ऐसा हुआ कि आपने एक नया मार्ग अपनाया,

आपने वैसे कह ही दिया है कि वो अब भी हमारे साथ हैं, लेकिन ऐसी बहुत सारे लोगों की

मान्यता होती है कि ये तो कोई नई चीज़ है, नया धर्म है, नया पन्त है, हमे वहाँ नहीं जाना है ! आप

क्या कहेंगे इस विषय में |

 

भक्तिजी : बहुत सुंदर बात है ये मेरे जीवन की और ये मुझे हमेशा याद आती है कि कईयों

को मैंने.. अपने फ्रेंड्स को मैंने ये बात बताई है | बात ये हुई है कि जब मैंने राजयोग का ज्ञान

लिया और हमेशा की तरह मैं जब श्रीगांव गई, गजानन महाराज का एक ग्रन्थ है, उसमे

इक्कीस अध्याय हैं, वो मैं पढ़ती थी, सुबह बहुत जल्दी उठकर, और हमेशा से ये मेरा नियम

रहता था | तो मैं उस समय राजयोग का ज्ञान लेकर वहाँ गई, और मैंने वो ग्रन्थ पूरा पढ़ा..

इक्कीस अध्याय पूरे पढ़े, और मैं देखती रही गजानन महाराज का जो फ़ोटो है.. देखती रही !

और आपको बताने में मुझे इतना हर्ष हो रहा है कि मुझे एक सेकंड में गजानंद महाराज का

जो फ़ोटो है उसमे मुझे ब्रह्मा बाबा दिखाई देने लगे, फ़िर गजानंद महाराज | फ़िर मैंने उनको

कहा कि मैं तो आपको मिलने को आई हूँ, मैं ब्रह्मा बाबा को मिलने नहीं आई हूँ ! लेकिन वो

एक प्रकाश, वो एक बात.. मुझे ऐसा लगता है कि मुझे गजानंद महाराज ने ही वो साक्षात्कार

कहो या वो एक दृश्य दिखाया, कि जहाँ तुम जा रही हो वो बिलकुल ही सही रास्ता है | संत

श्री श्रेष्ठ ने कहा कि साकार से आकार, आकार से निराकार या सगुन से निर्गुण भक्ति ये अर्थ

मुझे उन्होंने बताया | अगर उन्होंने कुछ मुझे बताया तो संदेह की बात ही नहीं |

 

रुपेश कईवर्त : मतलब उन्होंने अपनी सहमती प्रदान कर दी कि बिलकुल सही जगह पर जा

रहे हो, इसीलिए आगे बढ़ते रहो | और आपने बहुत अच्छी बात कही कि साकार से आकार

और निराकार की ओर बढना, निरंतर उन्नति करना यही हमारे गुरु श्रेष्ठ चाहते हैं | तो जो लोग

इस पन्त से जुड़े हुए हैं, जहाँ आपने जैसे संत महोदय की बात की, उनके बहुत सारे अनुयायी हैं,

भक्त हैं जो वहाँ जाते हैं उन्हें कोई सन्देश अगर इस मंच से देना चाहें तो क्या कहेंगे ! कि वो भी

एक बार ब्रह्माकुमारीस में आकर देखें, राजयोग करके देखें, तो वो भी एक स्टेप और आगे बढ़ जाएंगे |

 

भक्तिजी : जब हम इतना निसीम कहो, या निरपेक्ष प्यार करते हैं, चाहे कोई भी हमारा गुरु हो,

लेकिन वो ज़रूर मदद करता है | और वो मदद भी ऐसी करता है कि हम अंदर से कुछ बात

मानने लगते हैं, स्वीकार करने लगते हैं | और इसमें कोई छोड़ने और पकड़ने की बात ही नहीं

आती | क्योंकि जब उन्होंने ही हमे कहा, कि मैं भी इसी से ही हो गया हूँ और ऐसा कोनसा गुरु

होगा जो अपने शिष्य की ऐसी उन्नति नहीं चाहेगा !

 

रुपेश कईवर्त : मतलब, एक बार सभी आयें ज़रूर | और सभी लोग यहाँ पर से राजयोग

सीख करके जाएँ | अपनी आध्यात्मिक उन्नति को आगे बढ़ाएं |

 

भक्तिजी : बिलकुल हमारी चाहना है कि जब भक्ति हमने पूरी की है तो सत्य ज्ञान जो है

वो विवेक शक्ति से जाने, और उनके भी जो गुरु होंगे, ऐसी अनुभूति उनको ज़रूर करायेंगे,

अगर मेरा उनपर विश्वास है तो !

रुपेश कईवर्त : बहुत सुंदर !! चलिए, तो सभी को यही कहना चाहेंगे कि इस पथ पर आगे बढ़ें

और ज्ञान को और ज़्यादा गहराई से समझें | वार्करी सम्प्रदाय से आप जुड़े रहे हैं, और आपने

कहा अभंग भी आप गाते रहे हैं, बहुत सारे लोग इस सम्प्रदाय से जुड़े हुए हमारे और भी भाई

बहन हैं | आपने गहराई से उन सब चीजों को समझा और अनुभव किया है तो उन सब के लिए

इस मंच से कोई सन्देश देना चाहेंगे कि वो भी ज्ञान को और थोड़ा गहराई से समझें, अपने जीवन

में और परिवर्तन की ओर आगे बढ़ें |

ज्ञानेश्वरजी : बिलकुल.. मैं तो यह संदेश देना चाहता हूँ वार्करी सम्प्रदाय को कि अगर हमे

हरी पाठ.. हरी पाठ एक अभंग का ही है, बड़े प्यार से और बड़ी श्रद्धा से उसे गायन करते हैं..

और दूसरा संत ज्ञानेश्वर.. मेरा नाम भी ज्ञानेश्वर है | संत ज्ञानेश्वरजी ने ज्ञानेश्वरी लिखी थी, और

उसके बाद पसायदान लिखा था | पसायदान में उन्होंने ईश्वर से माँगा था | और जो ईश्वर से

माँगा था.. आप पसायदान देखिए, मैं पसायदान बहुत करता था… तो वो मैं करता था, गाता

भी था, लेकिन राजयोग का कोर्स करने के बाद मुझे ये लगा कि ज्ञानेश्वरजी.. संत ज्ञानेश्वरजी..

ज्ञानेश्वर महाराज ने ये देखा है, जो माँगा है.. जो सतयुग का जो रोडमैप है, जो राजयोग में हम

कहते हैं, वो जो रोडमैप है वो बिलकुल पसायदान में है | तो मुझे ये संदेश देना है कि सही

अर्थ से, सही तरीके से अगर हमे अभंग गाने हैं, अभंग समझने हैं तो राजयोग का अभ्यास

करना ज़रुरी है | तो विट्ठल क्या है वो पता चलेगा |

 

रुपेश कईवर्त : बिलकुल.. बिलकुल.. जो रोडमैप दिया है संत ज्ञानेश्वरजी ने, जो ज्ञानेश्वरजी

की चाहना थी सभी अपने अनुयायियों के लिए वो पूर्ण हो ऐसी हम भी कामना करते हैं !!

आपने एक सुंदर सा संदेश उनको दिया है | समाधान कबसे देख रहे हैं भक्तिजी आप,

आपने लिखा था लगातार देखते हैं आप, बहुत सारे अभ्यास भी करते हैं, और कराते भी हैं !

कबसे देख रही हैं समाधान आप, और क्या क्या सीखा ?

 

भक्तिजी : जबसे समाधान कार्यक्रम शुरू हुआ.. वैसे भी सूरज भाईजी के क्लासेज मैं सुनती

थी या कहो बहुत सारे लोग उनके फेन हैं, आज की भाषा में कहें तो | तो इसलिए क्योंकि

उनके बताऐ हुए तरीके हैं, जो उन्होंने योग के प्रयोग बताये हैं, वो मुझे अपनी निजी जिंदगी

में काफ़ी.. कह सकते हैं कि 99% सक्सेसफुल किए हैं मैंने | इसलिए मैं तबसे देख रही हूँ..

और ना केवल देख रही हूँ अपने फ्रेंड सर्किल में भी बताती रही हूँ कि ये बहुत सिंपल है, ये

प्रैक्टिकल लाइफ में करने जैसा है | और इसमें हमारी पाजिटिविटी बढ़ती है, सकारात्मकता

बढ़ती है, एक चेकिंग होता है अंदर का कि मैं कहाँ हूँ ! इसलिए मैं बहुत साल से ये समाधान

प्रोग्राम देख रही हूँ |

 

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. व्यवधान दूर होते जाते हैं | आपने पानी की बात कही थी.. अच्छा

अनुभव है आपका प्रयोग करने का, अगर आप छोटी सी बात सुनाना चाहें तो !

 

भक्तिजी : बिलकुल | मुझे बहुत ख़ुशी होगी | जब मैं अमेरिका में गई थी तो .. इंडिया

से गई थी, टिकेट निकल चुका था, उस समय मैं यहाँ दो बार गिरी थी, तो मेरे घुटने में

बहुत दर्द था | अब टिकेट तो कैंसिल नहीं कर सकते थे, और हमारा स्टे भी कुछ चार-पांच

महीने का था, हम सेवा के लिए भी गए हुए थे.. तो अब क्या करें ! जैसे ही मैं पहुंची तो

बहुत घुटने में दर्द हो रहा था और ये किसीको बात बता भी नहीं सकती, नहीं तो बहुत

सारा लेक्चर सुनने को मिलेगा | तो इसलिए जो सूरज भाईजी बताते हैं, जल का प्रयोग

अर्थात उसको अभिमंत्रित करना या एक ऊर्जा देना वो प्रयोग मैंने इक्कीस दिन के लिए

किया था | सुबह और शाम, एक एक घंटा या आधा घंटा, जैसे भी मुझे पॉसिबल था, जिस

दिन.. उस प्रकार से मैंने प्रयोग किया था | उस जल में मैंने एक स्वमान भी लिया था, मैंने

शिवबाबा को भी कहा था.. बाबा आप जानते हैं कि आपकी बच्ची अमेरिका आई है,

अमेरिका में मेडिकल, वो सारी फैसिलिटी अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते, इसलिए आपको

उसे ठीक करना ही है | भाईजी मुझे ये बताने में अत्यंत हर्ष होता है और इस मंच द्वारा

मैं ये संदेश भी देना चाहती हूँ कि इक्कीस दिन के बाद या कहो इक्कीसवें दिन, मेरे

घुटने में पॉइंट परसेंटेज भी दर्द नहीं था |

 

रुपेश कईवर्त : क्या बात है !!

भक्तिजी : और मैंने मेरी ग्रैंड डॉटर के लिए ये प्रयोग किया था, इसलिए मेरी बेटी भी

इससे बहुत अच्छे से परिचित है और मुझे बहुत ख़ुशी होती है कि किस प्रकार से

परमात्मा ने, बाबा ने मुझे मदद की.. वो सुनता है |

 

रुपेश कईवर्त : जी..जी.. भक्ति मार्ग में कहते भी हैं कि भले से वो दिखाई ना दे,

पर वो सुनता तो ज़रूर है और मदद भी करता है | और हम प्रैक्टिकल फ़ील करते

हैं इन सब अभ्यासों से |

 

भक्तिजी : मुझे लगता है कि जब हम उसे अधिकार से कहते हैं कि आपको करना

ही है आप जानते हो ना आपकी बच्ची कहाँ आई है, तो वो और भी ज़्यादा जल्दी ठीक

कर देता है |

 

रुपेश कईवर्त : कई बार अधिकार की डोर से उसे बांधा जा सकता है | ज्ञानेश्वरजी

आपका क्या एक्सपीरियंस है, समाधान कार्यक्रम आप कबसे देख रहे हैं ! क्या क्या

आपने भी प्रयोग किए हैं, लाभ लिए हैं !

 

ज्ञानेश्वरजी : देखिए, हम जो करते हैं मिलकर करते हैं | जहाँ भक्ति है वहाँ ज्ञान | तो

उन्होंने अपना अनुभव तो बताया, मैं उनको सपोर्ट कर रहा हूँ | क्योंकि बहुत बार लोगों

के मन में, दर्शकों के मन में ये आ सकता है कि पानी को अभिमंत्रित करना है, उसे

प्रयोग करना है लेकिन उसका आधार क्या है | तो उसको मैं बताना चाहता हूँ | जब मैं

उसके ऊपर सोच रहा था तो उसका आधार भक्ति मार्ग में है | देखिए, जल वही है..

पहले हम सुनते थे ऋषि मुनि जो होते थे, ऋषि मुनि हाथ में जल लेते थे और जब उनको

क्रोध आता था तो क्रोध के संकल्प लेकर आपके ऊपर जल छिड़कते थे, और आपको

श्राप देते थे | और वहीं मंदिर का जो पुजारी है वही जल, वो ये भावना रखता है कि

आपका कल्याण हो, और वो जल देता है तीरथ बन जाता है |

 

रुपेश कईवर्त : हम इन्हीं चीजों को कर रहे हैं, करा रहे हैं, अच्छे अनुभव प्राप्त कर रहे हैं,

और आनंदित हैं और इसी आनंद को, अनुभव को सभी तक पंहुचा रहे हैं ऐसी हमारी

कामना है | और बारम्बार इस मंच पर आते रहें ऐसी भी हमारी कामना है | बहुत बहुत

आनंद आया आप दोनों से बात कर के, वेसे भी भक्ति और ज्ञान का कहीं कोई अंत नहीं

है इसीलिए चर्चा लगातार चलती रहे ऐसा लग रहा है लेकिन वक़्त इजाज़त नहीं दे रहा है |

आप लोगों का यहाँ आने के लिए, अनुभव बाँटने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |

बहुत बहुत धन्यवाद |

 

ज्ञानेश्वरजी : थैंक यू |

 

भक्तिजी : थैंक यू |

 

रुपेश कईवर्त : मित्रों, ज्ञान और भक्ति का सुंदर संगम, अनुभव, सुंदर बातें आज हम

सबने सुनी और निश्चित रूप से आनंदित भी हुए | बहुत गहराई तक मैं कहूँ, साइंस

जो है इसके पीछे, जो अभ्यास  करते हैं, उस चीज़ को हम लोगों ने ज्ञानेश्वरजी के द्वारा

समझा कि कैसे पानी को चार्ज करना कितना साइंटिफिक है और युगों से हम इस चीज़

को भक्ति के रूप में, फ़िर श्लोक के रूप में पढ़ते आए हैं | रियली, इसके पीछे का जो

साइंस है उसे समझने के बाद हमारा विश्वास और भी गहरा हो जाता है | और साथ ही

साथ मित्रों, ये बात भी बहुत पते की है कि राजयोग या आध्यात्मिक मार्ग जो ब्रह्माकुमारीज

दे रही हैं, ये एक ऐसा ज्ञान है जो आत्मा को प्रकाशित कर देता है, आत्मा में ज्ञान भर देता है |

और साथ ही साथ सभी प्रकार की तकलीफों को दूर कर देता है, ईश्वर के बहुत नज़दीक ले

जाता है और जब उसका हमे सानिद्ध्य मिल जाता है, तबतो फ़िर ज़िंदगी बहुत खुशनुमा हो

ही जाती है | और जीवन का हम सचमुच भरपूर आनंद ले पाते हैं | तो क्यों ना ईश्वर के नज़दीक

हम भी पहुंचे इस आध्यात्मिक मार्ग के माध्यम से, और जीवन को आनंद से परिपूर्ण करें |

कुछ नए मेहमानों के साथ पुनः आपसे मुलाकात होगी, तबतक अपना ख्याल रखिएगा, नमस्कार |

 

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