Samadhan Episode – 000915 Inspirational

CONTENTS :

रुपेश भाई : मित्रों आज हमारे साथ हैं रूपा बहनजी, जो कि ग्लोबल हॉस्पिटल एंड

रिसर्च सेंटर में चीफ़ ऑफ़ नर्सिंग सर्विस हैं | आप ना केवल ग्लोबल हॉस्पिटल में बल्कि

माउंट आबू के आस-पास जो गाँव हैं, वहाँ पर भी जाकर अपनी सेवा प्रदान करती हैं |

और उन सेवाओं को देखकर भारत सरकार ने खास 2018 में फ़्लोरेंस nightingle

अवार्ड से आपको सम्मानित किया है | राष्ट्रपति महोदय ने अपने करकमलों से आपको

सम्मानित किया | ना केवल इतना 2017 में भी आपको बेस्ट नर्स का अवार्ड मिला

सिक्ससिग्मा के माध्यम से | तो मित्रों ऐसी एक महान विभूति हमारे साथ मंच पर हैं,

जिनके पास ना केवल सेवाओं का बल है, दुआओं का बल है, नर्सिंग का एक सुंदर

अनुभव है बल्कि अध्यात्म का भी सार समाया हुआ है | तो आइये अभिनन्दन करते हैं

आदरणीय रूपा बहनजी का | बहनजी आपका बहुत बहुत स्वागत और अभिनंदन है |

ओम शांति |

 

बी.के. रूपा बहनजी : ओम शांति

 

रुपेश भाई : सर्वप्रथम यही प्रश्न मन में उठता है कि आपने अपने जीवन में ये जो

करियर चुना है नर्सिंग का प्रोफेशन चुना, तो क्या कुछ खास कारण रहा कि मैं नर्सिंग

का प्रोफेशन choose करूं ! क्योंकि हरेक के मन में कुछ ना कुछ तो स्वप्न रहते हैं |

तो क्या खास कारण था इस प्रोफेशन को चुनने में !

 

बी.के. रूपा बहनजी : वैसे मुझे बचपन से लोगों की सेवा करना अच्छा लगता था |

कभी कोई बीमार है तो बचपन से मेरा संस्कार है कि जाकर उसकी सेवा करना, जाकर

उनको खाना खिलाना | और स्कूल में पढ़ते समय ऐसा हुआ कि हमे एक लेसन आता

था महाराष्ट्र में, बाबा आमटेजी, बहुत बड़े सोशल वर्कर, जो होकर गये हैं | चंद्रपुर में

आनंदवन नाम का एक आश्रम है, जहाँ उन्होंने कुष्टरोगियों के लिए सेवा आरंभ की थी

उस समय, जिस समय समाज ने कुष्टरोगियों को समाज से बाहर कर दिया था | उनका

वो लेसन मुझे बहुत प्रभावित कर गया, उस समय मैने भी सोचा कि मुझे भी इस प्रकार

से कुछ सेवा करनी चाहिए अपने समाज के लिए | जब मैं दसवीं में थी तब मैने पत्र-व्यव्हार

किया था, तब मुझे वहाँ से आंसर आया कि हमे नर्सेज की जरूरत है | इसलिए आप नर्सिंग

का डिप्लोमा करके हमारे यहाँ आ सकते हैं | उनके आश्रम में | और इसीलिए मैने 12th के

बाद नर्सिंग करने का फ़ेसला किया | नर्सिंग प्रोफेशन हमारे परिवार में किसीका भी नहीं था

तो पहले उसके लिए ही काफ़ी विरोध हुआ | लेकिन मैने ऐसा कुछ कहा नहीं कि मुझे वहाँ

जाना है, इसलिए मैं नर्सिंग कर रही हूँ | मैने कहा कि मुझे नर्स बनना है | ऐसे मैं नर्सिंग

की तरफ़ जुड़ी |

 

रुपेश भाई : ये तो बहुत अच्छी बात रही कि विशेष आपने समाज सेवा के लिए ये प्रोफेशन

choose किया लेकिन फ़िर अध्यात्म के तरफ़ आपका झुकाव किस तरह से हुआ, ब्रह्माकुमारिस

के सम्पर्क में आप कैसे आईं ? और क्या कुछ खास खोज रही मन में जिसने आपको यहाँ तक

पहुँचाया !!

 

बी.के. रूपा बहनजी : हाँ, विशेष यह रहा कि बचपन से मुझे एक प्रश्न बहुत सताता था, कि

हमारे परिवार में, ब्राह्मण होने के कारण, भक्ति पूजा बहुत ज्यादा होता था | मेरी माताजी बहुत

व्रत, जैसे सोलह सोमवार का व्रत, निर्जला व्रत, तो ये 2-3 उन्होंने काफ़ी बार किये हुए होते थे,

तो मेरा ये प्रश्न रहता था कि भगवान को याद करने के लिए हमे उपवास करने की क्या ज़रूरत है ?

हमे क्यों उपवास करना चाहिए ? क्या बिना उपवास के हम उन्हें याद नहीं कर सकते ? मैं सबको

ये पूछती थी पर कोई इसका प्रॉपर आंसर दे नहीं पाया था | लेकिन मैं ब्रह्माकुमारीस में आई और

मुझे उसका प्रॉपर आंसर मिला, कि उपवास का रियल अर्थ क्या है, ये मुझे पता पड़ा तो मुझे बहुत

अच्छा लगा | मैं बचपन से जिस बात की खोज कर रही थी, वो पूरी हुई | और जैसे नॉलेज लेती गई,

मुझे बहुत अच्छा लगता गया | और फ़िर मुझे लगा कि मुझे अपना जीवन इस सेवा की ओर मोड़ना है |

और जब मैं ब्रह्माकुमारीस श्वेत वस्त्रधारी बहनों को देखती थी तो बहुत अच्छा लगता था उनको देखकर,

फ़िर इस तरह से मैं अध्यात्म की तरफ़ मुड़ी |

 

रुपेश भाई : क्या परिवार की तरफ़ से कोई सपोर्ट रहा क्योंकि जैसे ही हम एक नए path से जुड़ते हैं,

अध्यात्मिक मार्ग से जुड़ते हैं, तो घर में थोडा सा ये तो होता है कि पता नहीं कहाँ जा रहे हैं ! मित्र

सम्बन्धी ऐसा कहते हैं | तो क्या घर में ऐसी विरोध जैसी समस्या हुई ?

 

बी.के. रूपा बहनजी : शुरुआत में तो नहीं आया, मुझे इस बात के लिए विरोध क्योंकि मेरी माताजी

इसमें चलते थे लेकिन मैने अपना गवर्नमेंट जॉब छोड़कर, बॉम्बे जैसी सिटी में मैं वहाँ कामा एंड अल्बलेस

हॉस्पिटल में गवर्नमेंट जॉब करती थी, वो छोड़कर मैने जो डिसिशन लिया कि मुझे पूरा अपना जीवन यहाँ

देना है, उस वक़्त मेरा काफ़ी विरोध हुआ | खास करके मेरे भाई का भी हुआ, मित्र-सम्बन्धियों से तो

होता ही होता है | और उस समय ऐसा था कि राजस्थान में रिमोट एरिया में आप रह रहे हो तो कहाँ

रेगिस्तान में आप जा रहे हो ! कहाँ बॉम्बे और कहाँ उस रेगिस्तान में आप जा रहे हो, तो ऐसा मुझे

उस समय सबका विरोध सहन करना पड़ा |

 

रुपेश भाई : तो क्या खास आपके मन में रहा कि मुझे यहाँ जाना ही है, करना ही है, कोई ठोस

विचार या कोई ठोस संकल्प तो रहता ही है, जो आपको प्रेरित करता रहता था ?

 

बी.के. रूपा बहनजी : यही था कि जब मुंबई का जीवन देखती थी और बीमार व्यक्तियों का भी

जीवन देखती थी तो मुझे लगता था कि सिटी में तो सारी facilities (सुविधाएँ) मिलती ही हैं,

लेकिन माउंट आबू जैसी जगह में भी हम आते थे पर वहाँ ऐसी कोई सुविधा नहीं है, एक छोटा

सा ही गवर्नमेंट हॉस्पिटल था | और वहाँ पर भी काफ़ी सारे इंस्ट्रूमेंट्स बंद होते थे, माना जो प्रॉपर

ट्रीटमेंट होनी चाहिए वो नहीं होती थी | तो मुझे लगा कि मुझे ऐसी जगह पर जाकर अपनी सेवाएँ देनी

चाहिए, तो फ़िर मैने ये डिसिशन लिया | बॉम्बे से मैने अपना resignation भी नहीं दिया था ऐसे

ही छोड़कर मैं माउंट आबू आ गई |

 

रुपेश भाई : तो क्या यहाँ आने के बाद कभी ये ख्याल आया कि मैं कहाँ आ गई, मुझे वहीं

रहना चाहिए था ! वो अच्छी जगह थी कभी मन में ये ख्याल तो नहीं आया ?

 

बी.के. रूपा बहनजी : नहीं ये ख्याल कभी नहीं आया मुझे, बल्कि उल्टा ख्याल आता था कि

बॉम्बे या मेट्रोसिटी में जैसी फैसिलिटी लोगों को मिलती है, उस प्रकार की फैसिलिटी यहाँ भी

मिलनी चाहिए, उस प्रकार का नॉलेज अपने प्रोफेशन का मुझे भी अपडेट रखना चाहिए |

अध्यात्मिक नॉलेज के साथ साथ प्रोफेशनल नॉलेज को भी मैने महत्व दिया यहाँ |

 

रुपेश भाई : तो जो विरोध हुआ था आपके घर में, क्या वो कम हुआ कि आपने जो

डिसिशन लिया है वो सही है ?

 

बी.के. रूपा बहनजी : शुरू में तो विरोध ही रहा, फ़िर धीरे-धीरे हर सम्बन्ध से मैं परमात्मा

को बहुत याद करती थी | जैसे मुझे अपने भाई का बहुत लगता था, तो मैने परमात्मा को

अपना बड़ा भाई बनाया, वो मेरी केयर कर रहा है, क्यूँकि घर में सबसे छोटी मैं थी, मुझसे

बड़ा मेरा भाई था | और जब मैं यहाँ आई तो ऐसा हुआ कि हम दोनों का रिलेशन जैसे ना के

बराबर हो गया था | उसने कहा था कि आप वहाँ कहाँ जाकर रहोगे ? नैचुरली है कि कोई

गवर्नमेंट जॉब छोड़कर जाये तो वही होगा | तो उस समय मैं परमात्मा को बन्धु के रूप में याद

करती थी | और फ़िर मैने देखा कि जो उसका विरोध था वो धीरे-धीरे कम होने लगा | और

ये परमात्मा की कृपा कहो या कुछ और कि उसकी बेटी का जन्मदिन और मेरा जन्मदिन एक

ही दिन पर है | उसको एक ही बेटी है, और ये भी एक coincidence (इत्तेफ़ाक) है |

उसको माता-पिता से ज़्यादा मुझसे अटैचमेंट है जबकि मैं उससे काफ़ी दूर हूँ | वो मुंबई में

है और मैं यहाँ माउंट आबू में थी | तो ये भी एक coincidence है | और अभी तो सारे

एकदम खुश हैं माना मेरे भाई का तो सवाल ही नहीं है, काफ़ी सहयोगी आत्मा बनी हुई है |

 

रुपेश भाई : आपकी सेवओं को देखते हुए और आपने जो जीवन में उपलब्धियां हासिल की हुई हैं,

इन सबको देखके उनको गर्व अवश्य महसूस होता होगा | उनकी ओर तो मैं आऊंगा ही पर यहाँ

से जैसे ही हम अध्यात्म के पथ पर चलते हैं तो कोई ना कोई विघ्न बाधाएं तो ज़रूर हमारे मार्ग में

आती है | जैसे अपने मन को जीतना ये भी एक बड़ी बात होती है, अपनी पुरानी आदतों को

जीतना भी एक बड़ी बात होती है, मतलब कि दुनिया को जीतना सहज है पर अपनेआप को जीतना

कठिन है ऐसा लोग कहते हैं | कभी ऐसा लगा कि मुझे इस मार्ग में थोड़ी तकलीफ़ हुई या समस्या

आई | तो क्या समस्या आई और आपने कैसे समाधान किया इसका ?

 

बी.के. रूपा बहनजी : शुरुआत में मैं जब आई तो मैने पहले भी कहा था कि मैं बॉम्बे की थी तो

मुझे बाहर में होटल का खाने-पीने का शौक बहुत था | और आपको तो जैसे पता है कि मुंबई में

जैसे गली-गली में पानी-पुरी, गोलगप्पे वाले होते हैं, वडा पाओ, तो ये सब खाने की मेरी बहुत

आदत थी | सेकंड, फैशन की भी बहुत आदत थी | नैचुरली, शुरू से हमे परिवार में बहुत फ़्री रखा

था, तो ये सारी बातें थीं | और बालों में गजरा लगाना तो महाराष्ट्र में बहुत होता है, ये तीन-चार चीज़े

जो हैं.. जब मैं कभी शाम को वाकिंग के लिए जाती थी तो ये सभी बातें मुझे बहुत याद आती थीं |

फ़िर अपनेआप ही कुछ बातें हुईं कि ये सारी बातें चली गईं | हाँ लेकिन इसके लिए मुझे थोड़ी सी

मेहनत करनी पड़ी, इन सभी बातों पर विजय प्राप्त करने के लिए |

 

रुपेश भाई : क्या लगता है, ये जो चीजें हैं, अध्यात्म के माध्यम से या योग के माध्यम से बहुत सहज

हो जाता है ? क्योंकि लोग ऐसा सोचते हैं कि शायद अपने मन का दमन करते हैं वो जो अध्यात्मिक

पथ पर चलते हैं | मतलब उनकी इच्छाएं होती हैं पर वो इसका दमन करते हैं | तो क्या ये दमन है

या स्वेच्छा से होने लगता है, या मन अन्य चीजों के माध्यम से भी ख़ुशी महसूस करने लगता है !

 

बी.के. रूपा बहनजी : जब हम परमात्मा की याद में रहते हैं तो जो प्राप्ति हमे मिलती है तो इससे

धीरे-धीरे स्थूल वस्तुओं की इच्छा अपनेआप कम हो जाती है | जो मैने स्वयं के लिए अनुभव किया कि

मुझे पता ही नहीं पड़ा कि कब मेरा इन सब चीजों से … माना शुरुआत में होता था मुझे कि उसके

ऊपर मुझे कंट्रोल करना पड़ता था | एक example बता रही हूँ, जिस दिन में ऐसे ही घूमने गई हूँ

और मुझे याद आये वो पानी पुरी वाला scene तो next day ही संस्था में पानी-पुरी का प्रोग्राम बनता

था | तो ऐसे ही कई सारी बातें हुई हैं, और अपनेआप ये सारी बातें मेरी छूट गई हैं | और फैशन का

तो मुझे थोड़े दिन ही लगा होगा, जब में शुरुआत में आई तो ये सफ़ेद वस्त्रधारी बहनों को देखती थी,

दादी को देखती थी तो मुझे बहुत अच्छा लगता था | तो इसलिए फैशन का तो मुझे इतना लगा नहीं |

वो सहज ही छूट गया | मतलब ऐसे लगा नहीं कि मुझे विशेष दमन करना पड़ा है |

 

रुपेश भाई : एक प्रश्न लोगों की ओर से पूछना चाहूँगा मैं, कि इतना सब त्याग करने की आवश्यकता

क्या है, अगर हम उन चीजों का आनंद ले रहे हैं, मान लीजिये फैशन की बात है, चाहें बाहर खाने-पीने

की बात है, घूमने-फ़िरने की बात है यदि उसमे मुझे आनंद आ रहा है तो इसे छोड़ने की क्या आवश्यकता

है ? क्या अध्यात्म इन सभी चीज़ों को छोड़ना ही सिखाता है या अध्यात्म के माध्यम से इन सभी से ज़्यादा

सुख मिलता है कि ये सभी चीजें अपनेआप ही छूट जाती हैं | लोगों के मन में ये प्रश्न हमेशा रहता है |

क्या कहेंगी आप अपने अनुभव से |

 

बी.के. रूपा बहनजी : ऐसा है कि लोगों ने प्राप्ति इन्ही बातो के लिए मानी हुई है, स्थूल बातों के लिए

समझते हैं कि ये ही हमारी प्राप्ति है, ये ही हमारा जीवन है | जैसे घूमना-फिरना है, खाना-पीना है,

मौज-मस्ती करना है, तो उनको लगता है कि ये ही एक जीवन है | कहते हैं ना कि चार दिन की जिंदगी

है मौज से जियो, कल किसने देखा ! लेकिन जब हम अध्यात्म की ओर आते हैं और उससे जो हमे प्राप्तियां

मिलती है, तो उस प्राप्ति के आगे ये प्राप्ति कुछ भी नहीं है | अध्यात्म में आने से हमे अपने जीवन की

रियल प्राप्ति क्या है वो पता पड़ती है, इसलिए ये प्राप्तियां उसके सामने बहुत छोटी लगती है |

 

रुपेश भाई : शायद लोग वो प्राप्तियां नहीं समझ पाते हैं, कि वो क्या है !  आपके प्रोफेशन की

बात करना चाहूँगा मैं | आपका नर्सिंग का प्रोफेशन है, बहुत सारे लोगों से डील करती होंगी आप,

इतना मैनेजमेंट देखती होंगी आप, क्यूँकि आप चीफ़ हैं नर्सिंग में ग्लोबल होस्पिटल की और उसके

अन्य यूनिट्स की भी देख-रेख करती हैं आप | तो इतना सारा कार्य करते हुए, क्या अध्यात्म आपकी

मदद करता है, क्या ऐसा लगता है कि उसके लिए आपको समय निकालना पड़ता है, क्योंकि इतनी

सारी responsibility (जिम्मेदारियां) हैं आपके पास |

 

बी.के. रूपा बहनजी : इसमें अध्यात्म की बहुत हेल्प होती है, जितना हम मैडिटेशन करते हैं

हमारी कंसंट्रेशन पॉवर बढती है, इससे हमारे डिसिशन लेने की पॉवर काफ़ी ईजी हो जाती | मैं

चीफ़ ऑफ़ नर्सिंग डायरेक्ट नहीं बनी हूँ | जब मैं पहले आई थी तो मैने स्टाफ़ नर्स के पद पर

काम किया, उसके बाद ऑपरेशन थिएटर में हमारे पास कोई नर्स नहीं थी | फ़िर मुझे कहा गया

कि ऑपरेशन थिएटर का look after (देखरेख) करो, जिसका मुझे कोई नॉलेज नहीं था |

नॉलेज माना जैसा एक रियल ऑपरेशन थिएटर एक्सपर्ट सिस्टर को होता है, वैसा मेरे पास नहीं

था | फ़िर डॉक्टर अशोक मेहता, जो कि सुप्रसिद्ध सर्जन हैं कैंसर के, जो ग्लोबल हॉस्पिटल के

डायरेक्टर भी रहे हैं, तो उन्होंने मुझे टाटा होस्पिटल में भेजा | वहाँ ऑपरेशन थिएटर में कैसे

assist (मदद) करते हैं, वो सिखाया | और जैसे कि मैने आपको शुरुआत में बताया कि मैं ये

अभ्यास काफ़ी करती थी, परमात्मा को भी हम सुप्रीम सर्जन के रूप में मानते हैं | जब कभी

होपलेस केस आता है तो हम यही कहते हैं कि अब उसको ही याद करो, वो ही कुछ कर सकता

है | तो जब भी मैं ऑपरेशन थिएटर में जाती थी तो सुप्रीम सर्जन को लेकर ही जाती थी | तो मैने

देखा कि कई बातें मेरे लिए बहुत ही सहज होती गईं | जैसे आज किसी ऑपरेशन थिएटर की लिस्ट

है तो मैं ये बात करती थी परमात्मा से कि वो सुप्रीम सर्जन है, तो जैसे हम किसी डॉक्टर को बताते

हैं कि आज क्या क्या ऑपरेशन है, तो इस प्रकार मैं परमात्मा से अपनी रूह-रिहान करती थी |

अच्छा मुझे जहाँ problems आती थी, problems तो आनी ही है, तो मैं बता देती थी कि आज

मेरे सामने ये-ये problems हैं, या स्टाफ़ की shortage है | तो कई बार ऐसे हो जाता था कि

पता नहीं मैं ऐसे कहूँ कि आज तो स्टाफ़ की बहुत shortage है, आप ही सुप्रीम सर्जन, परमात्मा

हो, आपको ही हैंडल करना है आज का दिन| काफ़ी सारे अनुभव हैं मेरे इस अध्यात्मिक जीवन के

कि किस प्रकार से .. अपने प्रोफेशन में भी देखा कि परमात्मा की मदद से आगे बढ़े हैं | जैसे मैने

देखा कि परमात्मा को जितना-जितना हम याद करते हैं, उतना हमारी इनर पॉवर डेवेलप होती जाती है,

जो हमे समस्याओं को फेस करने में बहुत मदद करती है |

 

रुपेश भाई :  कोई ऐसी सिचुएशन आपको याद आ रही है कि बहुत क्रिटिकल सा सिचुएशन हो गया

था और उस समय मैने ईश्वर को याद किया था, और अध्यात्म के माध्यम से वो सिचुएशन सहज ही

solve हो गई |

 

बी.के. रूपा बहनजी : दो साल पहले 2016 में एक ट्रेनिंग प्रोग्राम था, हाई altitude मेडिकल

रेस्क्यू नाम से, माना पर्वतीय शिलो पर कैसे हमे मेडिकल रेस्क्यू करनी है ! जो भी आपदाएं आती हैं

उस समय पर | तो उस समय मैने कहा कि हम भी माउंट आबू पर रहते हैं, हमारा भी हॉस्पिटल है

तो मुझे भी इस ट्रेनिंग को करना चाहिए | क्योंकि हाई altitude का है | और ये ट्रेनिंग होने वाली

थी उत्तराखंड औली में, और वहाँ ITBP (Indo-Tibetian Border Police) के जवानों के साथ ये

ट्रेनिंग six sigma के तरफ़ से होने वाली थी | तो वहाँ मैने ट्रेनिंग के लिए अपना नाम रजिस्टर करवाया,

जब 1 week ही रहा था ट्रेनिंग के लिए, उस समय मुझे मेसेज आया कि इस ट्रेनिंग का जो ड्रेस कोड है

वो ब्लैक ट्रैक सूट है | तो मैने उनसे कहा कि मैं जिस संस्था से जुड़ी हूँ वहाँ हम सिर्फ़ white सारी ही

पहनते हैं | तो मैने उनसे कहा कि जो demonstration पार्ट है वो नहीं अटेंड करूंगी, पर थ्योरी पार्ट

सारे अटेंड करूंगी | उन्होंने भी मुझे परमिशन दे दी | तो जब वहाँ demonstration पार्ट चल रहा था,

उसमे था रेप्लिंग करना, कैसे रस्सी के सहारे पर्वतों से नीचे उतरना है | तो ऐसे सारा demonstration

चल रहा था | तो एक जवान ने मुझे ऐसे ही कहा कि मैडम आप कहते हो कि मैडिटेशन आप करते हो

जिससे आपकी इनर पॉवर डेवेलोप होती है, तो क्या आप उतर नहीं सकोगे  रस्सी के सहारे ! तो मैने

कहा उतर सकती हूँ, क्यों नहीं ! बस आप मुझे सारी में करने की परमिशन दीजिये, तो उसने भी कहा

हाँ | फ़िर उस समय मैं परमात्मा का नाम लेकर उतरी | फर्स्ट day तो मैं easily उतर गई, रस्सी के

सहारे पहाड़ों से | फ़िर वहाँ के जो IG थे उन्होंने कहा courage (हिम्मत) देखते हुए, कि आपका

courage तो बहुत अच्छा है पर आप साडी में ऐसा मत कीजिये | उन्होंने मुझे ट्रैक सूट गिफ्ट किया, white

ट्रैक सूट | next day जब हम कर रहे थे तो उस पहाड़ की हाइट उससे भी ज़्यादा थी | जब हम कर

रहे थे तो अचानक जो रस्सी चेस्ट पर बांधी हुई थी वो एकदम टाइट हो गई | मैं साँस ही नहीं ले पाई |

एक सेकंड के लिए मैने आंखें बंद करके परमात्मा को याद किया, मुझे लगा बस the end हो रहा है मेरा |

मैने बस ईश्वर को याद किया और मुझे पता नहीं कैसे मेरे मुह से ये शब्द निकले कि चेस्ट की रस्सी बहुत

टाइट है उसे loose कीजिये | उस समय मैं एकदम मिडिल में थी, मतलब मुझे ऊपर भी नहीं खींच सकते

थे और नीचे भी नहीं ला सकते थे | और फ़िर मैने ईश्वर को याद करके आंखें बंद कर ली | फ़िर मैने देखा

कि उन्होंने जैसे ही मेरी रस्सी loose की, वैसे ही मैं आराम से नीचे उतर गई | तो ये बहुत बड़ा एक्सपीरियंस

रहा मेरे जीवन का | ऐसे कई सारे अनुभव हैं जिसमे अगर हम एक परमात्मा को याद करके, ईश्वर को याद

करके हम कार्य करते हैं तो उसमे हमे सफ़लता ज़रूर मिलती है |

 

रुपेश भाई : मतलब कार्य की शुरुआत से पहले भी उसका ध्यान करना है और कार्य करते हुए भी | हॉस्पिटल

में भी कितने सारे पेशेंट्स आते हैं, आपकी देख-रेख में कितने सारे काम होते हैं, तो क्या कभी ऐसा हुआ कि

पेशेंट बहुत तकलीफ़ में था.. क्योंकि आप अध्यात्म के मार्ग में हैं, मैडिटेशन करती हैं, तो क्या कोई खास योग

का अभ्यास जो उन्हें मदद करता है, ऐसी कोई अनुभूति रही !

 

बी.के. रूपा बहनजी : कई बार हम पेशेंट और उनकी फैमिली को मैडिटेशन सिखाते हैं, हमारे यहाँ मैडिटेशन

रूम है, और स्पेशल स्पिरिचुअल एंड काउंसलिंग डिपार्टमेंट है | तो हमने देखा कई बार पेशेंट से ज़्यादा पेशेंट के

फैमिली को मदद मिलती है | ये हम देखते हैं कि जब पेशेंट बीमार होकर आता है तो सिर्फ़ पेशेंट बीमार नहीं

होता है साथ में उसका पूरा परिवार बीमार होता है | या तो वो financial कंडीशन की वजह से बीमार हो जाते हैं,

कई बार उनके पास मैन-पॉवर नहीं होता है | और हम तो इस जगह पर बैठे हुए हैं तो हम देखते हैं कि कई

गरीब-गरीब लोग आते हैं.. हमारा जितना नार्मल हीमोग्लोबिन होना चाहिए, फीमेल के लिए होता है 12 ग्राम, मेल

का तो 12 से ऊपर होता है.. तो कई ऐसे भी मेल आते हैं जिनका हीमोग्लोबिन 2 ग्राम तक रहता है | आप

इमेजिन कीजिये | फाइनेंसियल कंडीशन की वजह से होस्पिटल में भी कोई व्यक्ति आता है तो वो पहले ही घर में

बहुत tolerate (सहन करना) कर चुका होता है कि कोई चारा ही नहीं रहता है तो वो होस्पिटल की ओर आता

है| तो हमने देखा कि ऐसे कई पेशेंट्स हैं | दूसरा, हमने देखा कि जंगल का एरिया होने के कारण भालू के bites

वाले भी काफ़ी पेशेंट्स हमारे पास आये हैं | ऐसे कई cases हैं | तो हम पेशेंट्स को मैडिटेशन सिखाते हैं और

उनके परिवार वालों को भी, तो धीरे-धीरे उनकी हीलिंग हो जाती है |

 

रुपेश भाई :  हम आपसे और भी जानेंगे कि मैडिटेशन के माध्यम से कैसे आप उन्हें cure (उपचार) करती हैं !

कैसे अध्यात्म ने आपको और मदद की अपने जीवन में आगे बढने में | आज की सुंदर चर्चा के लिए.. जो अनुभव

आपने हमारे दर्शकों के साथ शेयर किये हैं उसके लिए आपका बहुत बहुत दिल से शुक्रिया |

ओम शांति ||

Like us on Facebook
error: Content is protected !!
Home